सुखबीर बादल को अकाल तख्त ने सुनाई सजा, जानिए उनकी चार बड़ी गलतियां
सुखबीर सिंह बादल को श्री अकाल तख्त साहिब ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को माफी दिलाने जैसे गंभीर धार्मिक अपराधों के लिए दोषी पाया है। उन्हें गुरुद्वारों में सेवा करने, बर्तन धोने, और कीर्तन सुनने की सजा सुनाई गई।
पंजाब की राजनीति में लंबे समय से अहम भूमिका निभाने वाले सुखबीर सिंह बादल और 16 अन्य आरोपियों को श्री अकाल तख्त साहिब ने धार्मिक सजा सुनाई। यह मामला 2015 के बेअदबी कांड और डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को माफी देने के विवाद से जुड़ा है। सुखबीर बादल पर आरोप था कि उन्होंने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामलों में दोषियों को सजा देने में असफलता दिखाई। इसके अलावा, उनके और उनके पिता प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ आरोप थे कि उन्होंने जत्थेदारों पर दबाव बनाकर डेरा प्रमुख को माफी दिलवाई।
अकाल तख्त साहिब, सिख समुदाय की सर्वोच्च धार्मिक संस्था, ने इस मामले में न्याय के लिए 17 लोगों को तलब किया। चार घंटे चली सुनवाई के बाद, तख्त के पांच सिंह साहिबानों ने फैसला सुनाया। सुखबीर बादल को श्री दरबार साहिब और अन्य पवित्र स्थलों में सेवा करने का आदेश दिया गया, जिसमें बर्तन धोना, पहरेदारी करना, और कीर्तन सुनना शामिल है।
सजा का सामाजिक और धार्मिक महत्व
सजा का स्वरूप बेहद प्रतीकात्मक है। सुखबीर सिंह बादल को 3 दिसंबर से विभिन्न गुरुद्वारों में सेवाएं करनी होंगी। पैर में फैक्चर होने के बावजूद उन्हें व्हीलचेयर पर यह दंड भुगतना होगा। यह सजा केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सिख धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों की पुनर्स्थापना का प्रयास है।
वैसे आपको बता दें कि सुखबीर सिंह बादल को श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा चार प्रमुख गलतियों के लिए दोषी ठहराया गया है। ये गलतियां न केवल धार्मिक और नैतिक रूप से गंभीर हैं, बल्कि सिख समुदाय की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाने वाली मानी गईं। दरअसल 2015 में पंजाब में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं सामने आईं। इन घटनाओं ने पूरे सिख समुदाय को आहत किया। सुखबीर सिंह बादल, जो उस समय पंजाब के उप मुख्यमंत्री थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने इन मामलों में दोषियों को सजा दिलाने के लिए उचित कदम नहीं उठाए। यह उनकी सरकार की एक बड़ी असफलता मानी गई।
इसके अलावा सुखबीर पर यह भी आरोप है कि उन्होंने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को माफी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह माफी 2015 में दी गई थी, जब गुरमीत राम रहीम पर सिख भावनाओं को आहत करने के आरोप थे। आरोपों के अनुसार, सुखबीर ने जत्थेदारों पर दबाव बनाया कि वे डेरा प्रमुख को माफ कर दें। यही नहीं सुखबीर पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक व्यक्ति को माफी दिलाने में मदद की, जिसने श्रीगुरु गोविंद सिंह जी जैसे कपड़े पहनकर अमृत छकाने का स्वांग रचा था। यह कार्य सिख धर्म की मर्यादा और परंपराओं के खिलाफ था। सुखबीर बादल ने अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों को अपने आवास पर बुलाकर उनसे ऐसे फैसले करवाए, जो धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से अनुचित माने गए। यह कार्य तख्त की गरिमा और स्वायत्तता का उल्लंघन माना गया।
इन चार गलतियों को देखते हुए, श्री अकाल तख्त साहिब ने सुखबीर सिंह बादल को 'तनखैया' (धार्मिक कदाचार का दोषी) घोषित किया। ऐसे में सजा के तहत, सुखबीर को दरबार साहिब के घंटाघर के पास परंपरागत सेवादार का चोला पहनकर पहरेदारी करनी होगी। उन्हें गले में तख्ती पहननी होगी, जो उनके अपराधों को दर्शाएगी। इसके बाद, वे लंगर घर में बर्तन साफ करेंगे और श्रीसुखमणि साहिब का पाठ करेंगे। यह प्रक्रिया श्री केशगढ़ साहिब, श्री दमदमा साहिब, और अन्य पवित्र स्थलों पर भी दोहराई जाएगी। सुखबीर के अलावा, अन्य आरोपियों को भी अलग-अलग सेवाएं करने का आदेश दिया गया है। इनमें बाथरूम साफ करना, लंगर हॉल में सेवा देना, और कीर्तन सुनना शामिल है। इस सजा का उद्देश्य यह दिखाना है कि धर्म और राजनीति के नाम पर की गई गलतियों का पश्चाताप केवल सेवा और समर्पण के माध्यम से ही हो सकता है।
शिरोमणि अकाली दल पर प्रभाव
श्री अकाल तख्त ने सुखबीर बादल और अन्य दोषियों से इस्तीफा देने और अकाली दल की संरचना में सुधार करने का निर्देश दिया है। यह पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह निर्णय उसके नेतृत्व और कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
यह सजा सिर्फ सिख समुदाय के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सबक है। धार्मिक संस्थाओं का उद्देश्य केवल आध्यात्मिकता नहीं, बल्कि नैतिकता और जिम्मेदारी की भावना भी बढ़ाना है। सुखबीर बादल की सजा यह दिखाती है कि चाहे कितनी भी ऊंची राजनीतिक स्थिति हो, धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से कोई बच नहीं सकता।