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जिस PDA ने सपा को जिताया, Akhilesh ने उसी PDA के साथ ‘खेला’ कर दिया

जब यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी देने का वक्त आया तो, ना ही अल्पसंख्य समुदाय से किसी नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया और ना ही दलित और पिछड़ा समुदाय के किसी नेता को ये जिम्मेदारी दी गई, ब्राह्मण समाज से आने वाले माता प्रसाद पांडेय को नेता विपक्ष बना दिया, जिसके बाद से ही अखिलेश पर ये आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने पीडीए को बेवकूफ बनाया है !
जिस PDA ने सपा को जिताया, Akhilesh ने उसी PDA के साथ ‘खेला’ कर दिया
Akhilesh Yadavजिस पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक समुदाय को पीडीए बताकर उनका वोट हासिल करने के लिए सपाई मुखिया Akhilesh Yadav ने पूरे लोकसभा चुनाव में जोरशोर से प्रचार किया। और उन्हीं की वोट के दम पर पांच सीटों से सीधे 37 सीटों पर पहुंचे। लेकिन जब यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी देने का वक्त आया तो। ना ही अल्पसंख्य समुदाय से किसी नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। और ना ही दलित और पिछड़ा समुदाय के किसी नेता को ये जिम्मेदारी दी गई। ब्राह्मण समाज से आने वाले माता प्रसाद पांडेय को नेता विपक्ष बना दिया। जिसके बाद से ही अखिलेश पर ये आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने पीडीए को बेवकूफ बनाया है।


दरअसल साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में मिली करारी के बाद से ही सपाई मुखिया अखिलेश यादव विधानसभा में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी संभालते थे। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट से चुनाव लड़ने वाले अखिलेश यादव पीडीए के दम पर जीत हासिल कर लोकसभा पहुंच गये। जिसकी वजह से विधानसभा में नेता विपक्ष का पद खाली हो गया था। और ये कयास लगाए जा रहे थे कि शिवपाल यादव को ये जिम्मेदारी मिलेगी। या फिर पिछड़ा।  दलित। अल्पसंख्यक यानि पीडीए समाज के किसी नेता को नेता विपक्ष बनाया जाएगा। लेकिन अखिलेश यादव ने तो चाचा शिवपाल के साथ साथ पीडीए के साथ भी खेल कर दिया। और ।

नेता विपक्ष की जिम्मेदारी सपा विधायक माता प्रसाद पांडेय को दे दी। कमाल अख्तर को अखिलेश ने मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी दे दी। महबूब अली को अखिलेश यादव ने अधिष्ठाता की जिम्मेदारी दे दी। राकेश कुमार वर्मा को उप सचेतक की जिम्मेदारी दी गई

जिस पीडीए यानि पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक की बात अखिलेश यादव करते हैं। उनमें से अल्पसंख्यक समुदाय के दो नेताओं को विधानसभा में जिम्मेदारी दी जबकि पिछड़ा समाज के एक नेता को उप सचेतक बनाया। तो वहीं सबसे बड़ा पद नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडेय को दे दिया। दलित समाज को सिर्फ झुनझुना थमा दिया गया। जिस पर बुरी तरह भड़कीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश तो लताड़ते हुए एक पोस्ट में लिखा।

"सपा मुखिया ने लोकसभा आमचुनाव में खासकर संविधान बचाने की आड़ में यहां PDA को गुमराह करके उनका वोट तो जरूर ले लिया, लेकिन यूपी विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाने में जो इनकी उपेक्षा की गई, यह भी सोचने की बात है, जबकि सपा में एक जाति विशेष को छोड़कर बाकी PDA के लिए कोई जगह नहीं"

तो वहीं योगी सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सपा पर निशाना साधते हुए कहा। "कांग्रेस के मोहरा सपा बहादुर अखिलेश यादव जी की नेता प्रतिपक्ष चुनते ही असलियत सामने आने से सपा में PDA चालीसा पढ़ने वाले पिछड़ों दलितों के समर्थन से चुनकर आए नेताओं में मायूसी है, भाजपा में सबका साथ विकास और सम्मान है, 2027 में 2017 दोहराना है, कमल खिला है फिर खिलाना है"

बात यहीं खत्म नहीं होती। माता प्रसाद पांडेय को नेता विपक्ष बनाए जाने के साथ ही जिन दो मुस्लिम और एक पिछड़े समाज के नेता को विधानसभा में जिम्मेदारी दी गई है।उस पर तंज कसते हुए परवेज अहमद नाम के एक शख्स ने लिखा। सपाई तन्खैये कह रहे हैं- विधानसभा में 4 में से दो मुसलमान बनाये गए, अब सबकी भूमिका बता दें ताकि तनखइयों को विधिक ज्ञान हो जाए, अंध भक्त मुसलमान इस मनोनयन का सच भी जान जाए।

नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडेय को कैबिनेट मंत्री का दर्जा, मंत्री को मिलने वाली सुविधा, प्रोटोकॉल, स्टाफ, विधानसभा की कार्रवाई के दौरान किसी विषय और किसी भी समय बोलने का असीमित अधिकार मिलता है, यूपी में सभी संवैधानिक पदों की नियुक्ति समिति में अनिवार्य सदस्य के साथ ही पीआरओ नियुक्त करने का अधिकार भी मिलता है।

मुख्य सचेतक कमाल अख्तर का काम ये है कि जब दल के राष्ट्रीय या प्रदेश अध्यक्ष निर्देशित करें तब विधायकों को आने का व्हिप जारी कर दे, विधायकों के प्रश्न देखकर उसकी जानकारी दल मुखिया से साझा करें और पटल पर भेज दें इन्हें कोई सुविधा नहीं मिलती। अधिष्ठाता महबूब अली का काम विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अगर सदन में उपलब्ध नहीं है तब अधिष्ठाता के रूप में सदन चलाना है, इन्हें सिर्फ विधायक को मिलने वाली सुविधा मिलती है, कोई विशेषाधिकार नहीं है उपसचेतक राकेश कुमार वर्मा का काम यही है कि मुख्य सचेतक की गैरहाजिरी में व्हिप जारी करना, ना तो कोई सुविधा मिलती है और ना ही कोई अधिकार होता है।

विधनसभा में जिन नेताओं को अखिलेश यादव ने जिम्मेदारी दी है। उनके कामकाज और मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बताने के साथ ही परवेज अहमद ने अखिलेश के फैसले पर खुश होने वाले मुसलमानों पर तंज मारते हुए कहा इसी को कहते हैं सियासी दरी उठाना, अब भी मुसलमानों को सियासी दरी उठाने का अर्थ समझना। वैसे आपको क्या लगता है। क्या वाकई अखिलेश यादव ने पीडीए से वोट लेकर उन्हें धोखा दिया है।
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