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जब तक हिंदू सहिष्णुता की चादर ओढ़े रहेगा सनातन धर्म इसी तरह बदनाम होगा | Tirumala

जिस हिंदुस्तान में हिंदू नवरात्रि के नौ दिन प्याज लहसुन भी खाने से परहेज करता है उन हिंदुओं को बाला जी के प्रसाद में चर्बी का तेल मिलाकर खिलाया गया लेकिन इसके बावजूद लगता है किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता, इसीलिये चारों तरफ जैसे सन्नाटा पसरा हुआ है क्योंकि हिंदू सहिष्णुता की चादर ओढ़े बैठा है ?
जब तक हिंदू सहिष्णुता की चादर ओढ़े रहेगा सनातन धर्म इसी तरह बदनाम होगा | Tirumala
जिस हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा हिंदू रहते हैं। लगता है वो हिंदुस्तान भी अब हिंदुओं के लिए सुरक्षित नहीं रहा। इसीलिये अब तक तो यही होता रहा कि राम नवमी का जुलूस हो। मूर्ति विसर्जन हो। या फिर कांवड़ यात्रा। हिंदू अपने ही हिंदुस्तान में बिना पत्थरबाजी के कोई धार्मिक यात्रा नहीं निकाल सकते। और अब तो जैसे हद ही हो गई। जिस हिंदुस्तान में हिंदू नवरात्रि के नौ दिन प्याज लहसुन भी खाने से परहेज करता है। उन हिंदुओं को बाला जी के प्रसाद में चर्बी का तेल मिलाकर खिलाया गया। लेकिन इसके बावजूद लगता है किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। इसीलिये चारों तरफ जैसे सन्नाटा पसरा हुआ है। क्योंकि लोगों के पास आईफोन के लिए लंबी लाइन लगाने का वक्त है। लेकिन अपने धर्म के अपमान के खिलाफ आवाज उठाने का वक्त नहीं है। दिन रात मुसलमानों को कोसने वालों कम से कम उनसे ये बात तो सीख ही सकते हैं। कैसे अपने धर्म के अपमान के खिलाफ वो सड़कों पर उतर जाते हैं।


जिस तिरुपति मंदिर का लड्डू प्रसाद हर दिन लाखों हिंदुओं को दिया जाता है। उस प्रसाद में ही सुअर की चर्बी का तेल मिलाकर हिंदुओं को खिलाया गया। लेकिन इसके बावजूद साधु संतों के अलावा कहीं किसी हिंदू ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। तो वहीं महाराष्ट्र में रामगिरि महाराज के एक बयान के खिलाफ हजारों मुसलमान सड़कों पर उतर आए। यही होता है अपने धर्म के लिए लड़ना। लेकिन यहां तो हिंदू जैसे मानो सहिष्णुता की चादर ओढ़ कर सोए हुए हैं। इसीलिये वैष्णो देवी की यात्रा पर जाते हैं तो कोई जिहादी बस पर बम फोड़ देता है। धार्मिक यात्रा निकालते हैं तो कोई जिहादी पत्थर बरसाता है। और स्टालिन जैसे नेता तो हिंदू धर्म की तुलना डेंगू मलेरिया से करने में एक बार भी नहीं सोचते। यहां तक कि जिस अयोध्या में सैकड़ों साल के इंतजार के बाद भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हुआ। उस राम मंदिर पर कांग्रेस के दलित नेता उदित राज बुल्डोजर चलाने जैसा बयान देने की हिम्मत दिखाते हैं। हर साल पराली जलाने से उठने वाले धुएं की वजह से पूरी दिल्ली गैस चैंबर बन जाती है तब किसी को कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन दिवाली पर एक दिन पटाखा फोड़ने से लोगों को इतनी दिक्कत होती है कि दिल्ली में पटाखा ही बैन कर दिया जाता है। ये सब क्यों होता है।  जानते हैं। क्योंकि उन्हें भी ये बात पता है कि हिंदू तो सहिष्णुता की चादर ओढ़े हुए है वो कुछ नहीं कहेगा।और जब पवन कल्याण जैसा कोई हिंदू तिरुपति बालाजी के प्रसाद में सुअर की चर्बी का तेल मिलाने के खिलाफ आवाज उठाता है तो प्रकाश राज जैसे हिंदू ही उसके विरोध में आवाज उठाने लगते हैं। और कहने लगते हैं अरे भाई क्यों इस मुद्दे को सेंसेशनल बना रहे हैं।जब सनातन धर्म में ही ऐसे ऐसे लोग पड़े हों तो फिर हमें जाकिर नाईक या फिर जयचंदों की क्या जरूरत है।और अगर आपको लगाता है कि ऐसे मामलों में सरकार कोई एक्शन लेगी तो। गुरु भूल जाइये कि ऐसा कुछ होने वाला है। क्योंकि इस देश में मस्जिद में मुसलमानों की चलती है। चर्चों में इसाईयों की चलती है। लेकिन मंदिरों में हिंदुओं की नहीं चलती। मंदिरों पर सरकारों का कब्जा है। क्योंकि देश में तमाम ऐसे मंदिर हैं जहां हर साल लाखों करोड़ों रुपये का दान आता है।जो सरकार को मिलता है। और सरकार उसे अपने हिसाब से खर्च करती है। कहीं कहीं तो मंदिरों से टैक्स भी वसूला जाता है जिसके विरोध में हिंदुओं के सबसे बड़े अध्यात्मिक गुरुओं में से एक स्वामी रामभद्राचार्य ने खुद ये ऐलान किया कि 1857 में जो स्थिति मंगल पांडेय की थी, आज वही स्थिति हमारी हो गई है इसलिए हम कह रहे हैं कि मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण नहीं होना चाहिए सरकार मंदिरों पर अधिग्रहण समाप्त करें।

साधु संतों की ये कोई नई मांग नहीं है। लंबे अरसे से साधु संत सरकार से मंदिरों का अधिग्रहण छोड़ने की मांग कर रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद सरकार टस से मस नहीं हो रही है। यहां तक कि पिछले दस सालों से केंद्र की सत्ता में बीजेपी है। जो खुद को हिंदुओं की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। मोदी योगी जैसे नेताओं को हिंदुओं का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। लेकिन इसके बावजूद बीजेपी सरकार मंदिरों से अधिग्रहण नहीं छोड़ रही है। मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के पक्ष में सरकार मंदिरों के उचित प्रबंधन और विकास का हवाला देती है। अगर ऐसा है तो फिर आंध्र प्रदेश के जिस सबसे अमीर तिरुपति बालाजी के मंदिर का लड्डू प्रसाद लाखों भक्तों तक दूर दूर जाता है।उस लड्डू में सुअर की चर्बी का तेल क्यों मिलाया जाता था। क्या लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी की जांच करने के लिए एक मशीन भी तिरुपति मंदिर के लिए सरकार नहीं खरीद सकती थी। अगर तिरुपति मंदिर के पास खुद की मशीन होती तो कम से कम प्रसाद में इस्तेमाल होने वाले घी की जांच तो हो सकती थी। जिससे पहले ही दिन ये घिनौनी हरकत पकड़ी जा सकती थी। लेकिन लगता है मंदिरों पर कुंडली मारकर बैठी सरकारों को बस मंदिरों को मिलने वाले लाखों करोड़ों दान से मतलब है। मंदिरों की व्यवस्था और हिंदुओं की आस्था से नहीं।  बात यहीं खत्म नहीं होती।  यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी मंदिरों पर सरकारों का कब्जा अनुचित बता चुका है। साल 2019 में ही सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस एसए बोबडे ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मामले में कहा था कि। मैं नहीं समझ पाता कि सरकारी अफसरों को क्यों मंदिर का संचालन करना चाहिए?' उन्होंने अपनी टिप्पणी में तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए कहा था कि सरकारी नियंत्रण के दौरान वहां अनमोल मूर्तियों की चोरी की अनेक घटनाएं होती रही हैं, ऐसी स्थितियों की वजह भक्तों के पास अपने मंदिरों के संचालन का अधिकार न होना है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में तमिलनाडु के प्रसिद्ध नटराज मंदिर पर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का आदेश दिया था। देश की सबसे बड़ी अदालत की टिप्पणी के बावजूद सरकारें मंदिरों से अपना नियंत्रण नहीं छोड़ रही हैं। खुद पीएम मोदी साल 2023 के अक्टूबर महीने में जब तेलंगाना में रैली करने गये थे तो तमिलनाडु सरकार पर मंदिरों पर कब्जा करने का आरोप लगाया था। 


पीएम मोदी ने सियासी फायदा लेने के लिए तमिलनाडु सरकार पर तो आरोप लगा दिया लेकिन क्या आपको पता है आज की तारीख में हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती विभाग के तहत 38,635 हिंदू धार्मिक संस्थान आते हैं, जिनमें 36,595 हिंदू मंदिर हैं। जिनमें गुजरात का सोमनाथ मंदिर, उत्तराखंड का केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर, ओडिशा का जगन्नाथ मंदिर, मध्य प्रदेश का महाकाल मंदिर भी शामिल है। ये उन राज्यों में है जहां बीजेपी की सरकार है। यानि मंदिरों पर सरकारी कब्जा करने के मामले में बीजेपी भी पीछे नहीं है। इतना ही नहीं तमिलनाडु जैसा राज्य जहां के मंत्री हिंदू धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से करते हैं उस तमिलनाडु सरकार के कंट्रोल में हिंदुओं के 36000 से ज्यादा मंदिर और 56 मठ हैं और जिस केरल की वामपंथी सरकार धर्म को अफीम मानती है उस वामपंथी सरकार के कंट्रोल में केरल के तीन हजार से भी ज्यादा मंदिर हैं। तो क्या अब वक्त आ गया है कि जिस तरह से मस्जिद मुसलमानों के पास है।  चर्च इसाईयों के पास है। उसी तरह से तमाम राज्यों की सरकारों को मंदिरों से अपना कब्जा छोड़ कर उसे हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। जिससे कम से कम हिंदू भी अपने मंदिरों की सुरक्षा और व्यवस्था खुद संभाल सकें। 
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