कनाडा-भारत विवाद: हरेन्द्र निज्जर की हत्या पर ट्रूडो के झूठ की खुली पोल
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयान से जुड़े हरेन्द्र निज्जर केस में एक बड़ा खुलासा सामने आया है। हाल ही में पुलिस चीफ द्वारा दिए गए बयान ने ट्रूडो के आरोपों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। पुलिस चीफ के अनुसार, इस मामले में पुख्ता सबूतों की कमी है। यह बयान उस समय आया है जब भारतीय समुदाय और कनाडा सरकार के बीच पहले से ही तनातनी का माहौल है।
कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और उस पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों से भारत-कनाडा के संबंधों में एक नया मोड़ आ गया है। पीएम ट्रूडो ने भारत पर सीधे तौर पर इस हत्या में शामिल होने के गंभीर आरोप लगाए, जिसके बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव चरम पर पहुँच गया। हालांकि, हाल ही में कनाडा के रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) के कमिश्नर माइक डुहेम ने एक बयान देकर सभी को चौंका दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि उनके पास भारत की संलिप्तता के पुख्ता सबूत नहीं हैं। इस बयान ने ट्रूडो के आरोपों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
ट्रूडो के आरोप और भारत का कड़ा प्रतिकार
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भारतीय राजनयिकों पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया। इस दावे ने भारतीय अधिकारियों को भी हैरान कर दिया। भारत सरकार ने इन आरोपों को निराधार और झूठा बताया और कड़ी प्रतिक्रिया दी। भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा पर आरोप लगाए जाने के बाद भारत ने उच्चायुक्त समेत छह राजनयिकों को कनाडा से वापस बुला लिया। इस घटना ने दोनों देशों के राजनयिक संबंधों में खटास पैदा कर दी, जिससे वैश्विक मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे पर चर्चाएँ शुरू हो गईं।
कौन था हरदीप सिंह निज्जर?
हरदीप सिंह निज्जर एक खालिस्तानी समर्थक था, जिनका जुड़ाव खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) से था। भारत सरकार द्वारा उसे आतंकवादी घोषित किया गया था और उस पर कई आपराधिक मामलों का आरोप था। वहीं, कनाडा में सिख समुदाय का एक वर्ग उसे मानवाधिकार कार्यकर्ता मानता था। 18 जून, 2023 को वैंकूवर में गुरुद्वारा साहिब की पार्किंग में अज्ञात हमलावरों द्वारा उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई, जो एक विवादास्पद घटना बन गई।
पुलिस और ट्रूडो के बयानों में विरोधाभास
आरसीएमपी के कमिश्नर माइक डुहेम ने अपने बयान में कहा कि उनके पास भारत की संलिप्तता को लेकर ठोस सबूत नहीं हैं। उनका कहना है कि "जाँच प्रक्रिया में सबूतों के आधार पर बात करना आवश्यक है, और यह जाँच कभी किसी दिशा में जा सकती है।" डुहेम का यह बयान ट्रूडो के उन बयानों का विरोधाभास पेश करता है, जिनमें उन्होंने भारत को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया था। इस तरह के बयान कनाडा पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर भी संदेह उत्पन्न कर रहे हैं, जिससे यह प्रश्न उठता है कि क्या ट्रूडो ने बिना पर्याप्त सबूतों के ही यह आरोप लगाए थे।
कनाडाई मीडिया में इस विषय को लेकर चर्चाओं का माहौल गर्म है। एक इंटरव्यू में डुहेम ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा किया कि मामले की जाँच अभी पूरी नहीं हुई है और कई कोणों पर काम किया जा रहा है। मीडिया द्वारा इस मामले की कवरेज से कनाडा की जनता और सिख समुदाय के बीच विभाजन बढ़ रहा है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता पर असर पड़ा है। जनता में अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या सरकार के आरोप सच है या यह महज राजनयिक रणनीति का हिस्सा है?
अंतरराष्ट्रीय मंच पर विवाद
इस विवाद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। अमेरिकी विदेश विभाग और अन्य देशों ने भी इस मामले पर नजर रखी है। भारतीय समुदाय और अन्य विदेशी संगठनों ने भी कनाडा सरकार से निष्पक्ष और न्यायसंगत जाँच की मांग की है, ताकि राजनीतिक आरोपों का सच सामने आ सके। इस विवाद ने भारत और कनाडा के आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों पर भी असर डाला है।
कनाडा की पुलिस का बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि मामले की जाँच अभी अधूरी है। यदि पुख्ता सबूत नहीं मिलते हैं तो ट्रूडो को इस मामले पर पुनः विचार करना पड़ सकता है। भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक संबंधों को सुधारने के लिए दोनों पक्षों को राजनयिक संवाद और समझौता की आवश्यकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि किसी भी देश के प्रधानमंत्री के लिए बिना प्रमाण के इस प्रकार के गंभीर आरोप लगाना कितना जोखिम भरा हो सकता है।