10 साल से तारीख पर तारीख… सुप्रीम कोर्ट में जहर खाकर किया सुसाइड अटेम्प्ट!
दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट परिसर में उस समय हड़कंप मच गया जब एक व्यक्ति ने चूहे मारने की दवा खाकर आत्महत्या की कोशिश की। यह शख्स पिछले 10 सालों से अपनी पत्नी को न्याय दिलाने के लिए लड़ रहा था, लेकिन तारीख पर तारीख मिलने के अलावा कुछ नहीं हुआ।

भारत की सबसे बड़ी अदालत के परिसर में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब एक व्यक्ति ने चूहे मारने की दवा खाकर आत्महत्या की कोशिश की। यह व्यक्ति कोई आम आदमी नहीं था, बल्कि एक ऐसा इंसान था, जो बीते 10 सालों से अपनी पत्नी को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रहा था। उसकी पत्नी के साथ एक दर्दनाक हादसा हुआ था, लेकिन उसके बाद भी उसे इंसाफ नहीं मिला। अंततः वह इतने गहरे अवसाद में चला गया कि उसने सुप्रीम कोर्ट के लॉन में खुद की जान लेने की कोशिश की।
अचानक कोर्ट परिसर में मची अफरातफरी
यह घटना तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट के परिसर में लोग अपने-अपने मामलों की सुनवाई के लिए आए थे। तभी एक व्यक्ति ने अचानक ज़हर खा लिया और कुछ ही देर में उसकी हालत बिगड़ने लगी। देखते ही देखते कोर्ट परिसर में मौजूद लोगों में अफरातफरी मच गई। सुरक्षाकर्मियों ने फौरन दिल्ली पुलिस को सूचित किया और उसे तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया।
पुलिस ने जब इस व्यक्ति से पूछताछ की, तो उसकी दर्दनाक कहानी सुनकर अधिकारी भी हैरान रह गए। उसने बताया कि वह हरियाणा का रहने वाला है और पिछले एक दशक से वह अपनी पत्नी के लिए न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है। शख्स ने पुलिस को बताया कि उसकी पत्नी के साथ 10 साल पहले एक भयानक अपराध हुआ था। किसी ने उसकी अस्मिता को तार-तार कर दिया था। यह हादसा उसकी पत्नी के लिए असहनीय साबित हुआ। समाज के तानों, मानसिक आघात और अपमान से वह इतनी टूट गई कि उसने खुदकुशी कर ली। उस दिन से लेकर अब तक वो अपनी पत्नी को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रहा था। उसने पुलिस के पास जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन उसके बाद से अब तक बस तारीख पर तारीख मिल रही थी। अपराधी खुलेआम घूम रहे थे, जबकि वह अकेला न्याय की उम्मीद के साथ जूझ रहा था।
वह हर सुनवाई में जाता, अपनी उम्मीद को मजबूत करने की कोशिश करता, लेकिन हर बार उसे सिर्फ अगली तारीख मिलती। उसके पास कोई और विकल्प नहीं बचा था। आखिर में निराश होकर उसने यह खौफनाक कदम उठाने का फैसला किया।
क्या अब मिलेगी न्याय की रोशनी?
इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या किसी को न्याय पाने के लिए इतना लंबा इंतजार करना चाहिए कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाए? क्या भारत की न्याय प्रणाली इतनी धीमी है कि एक पीड़ित व्यक्ति को इंसाफ मिलने में 10 साल से ज्यादा लग जाते हैं?
यह घटना न सिर्फ एक व्यक्ति की निराशा की कहानी है, बल्कि यह पूरे सिस्टम पर एक गंभीर सवाल भी खड़ा करती है। सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था के भीतर इस तरह की घटना होना यह दर्शाता है कि न्याय में देरी कभी-कभी अन्याय से भी ज्यादा तकलीफदेह हो सकती है।
सरकार और प्रशासन की चुप्पी कब टूटेगी?
अब इस मामले में पुलिस और सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। आखिर वह कौन से कारण थे, जिनकी वजह से अपराधियों को अब तक सजा नहीं मिली? क्या पुलिस ने जांच में लापरवाही बरती? क्या अदालत की प्रक्रिया में कुछ ऐसा है, जो पीड़ित को न्याय से दूर कर देता है? अगर यह व्यक्ति सच में मर जाता, तो क्या उसके बाद प्रशासन जागता?
अब यह देखना होगा कि इस घटना के बाद पुलिस और न्यायालय इस मामले को कितनी गंभीरता से लेते हैं। क्या अब इस व्यक्ति की आवाज सुनी जाएगी? या फिर यह मामला भी किसी फाइल में दबकर रह जाएगा?