रुस में डोभाल, जेनेवा में जयशंकर और लद्दाख से पीछे हटी चीनी सेना !
अब यहां यह समझिए कि जब अजित डोभाल रूस में हैं, तब विदेश मंत्री एस जयशंकर जिनेवा में हैं। दोनों एक साथ अपने सबसे बड़े दुश्मन चीन पर दबाव बनाने का काम कर रहे हैं और कामयाबी भी हासिल की है। क्योंकि इस मुलाकात के बाद चीन ने चार सीमा क्षेत्रों से अपनी सेना वापस बुला ली है। इससे पहले भारत और चीन के बीच 21 बार सैन्य कमांडर लेवल की बैठक हो चुकी है, लेकिन चीन की अकड़ ढीली नहीं हुई। अब यह अकड़ ढीली इसलिए हुई है क्योंकि डोभाल साहब ने पुतिन से मुलाकात के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात की थी। चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से इस बात की पुष्टि करते हुए कहा गया कि दोनों सेनाओं ने चार क्षेत्रों से वापसी की है। सीमा पर हालात सामान्य हैं। इन चार क्षेत्रों में गलवान घाटी भी शामिल है।
अब इस घटनाक्रम में डोभाल साहब और जयशंकर साहब की भूमिका को समझ लीजिए। और यह भी समझ लीजिए कि मामला पहले ही सेट हो चुका था, बस घोषणा अब हुई है। एस जयशंकर ने जिनेवा में कहा था कि सैनिकों की वापसी से जुड़ी समस्याओं का लगभग 75 प्रतिशत समाधान हो गया है, लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ता सैन्यीकरण है। इस बात को ऐसे समझिए कि चीन के पास इस वक्त अमेरिका से भी बड़ी नेवल फोर्स है। मतलब पानी में वह अमेरिका से भी ताकतवर है। अगले पांच साल में चीन का लक्ष्य है कि वह अपने सैन्य बेड़े में 1000 से ज्यादा फाइटर जेट शामिल कर लेगा, और इस वक्त वह पांचवी पीढ़ी के फाइटर बना चुका है। वहीं भारत के पास कुल 42 जेट फाइटर हैं और सिर्फ एक पांचवी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। एलएसी पर दोनों देशों ने सैन्य जखीरा जमा किया हुआ है। जिसका मतलब है कि अगर दोनों देशों के बीच जरा सी भी चिंगारी भड़की तो सब तबाह हो जाएगा। आप जानते हैं कि दोनों देशों के बीच 2020 में जो हुआ उसमें सैनिकों का भारी नुकसान हुआ था, लेकिन फिर भी समाधान नहीं हो सका था। लेकिन अब समाधान हो गया है। चीन घुटनों पर आ गया है। यही है भारत की विदेश नीति। और जो लोग चिल्लाते-चिल्लाते गले की नसें खड़ी कर लेते हैं कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है, ये वही लोग हैं जो भारत की जमीन को पहले चीन को दे चुके हैं। इन लोगों को यह सटीक जवाब है कि भारत का एक इंच भी कोई नहीं ले सकता।