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ड्रग्स, राजनीति और चुनाव: क्या ड्रग्स केस को चुनावी मुद्दा बनाकर देखना सही है?

ड्रग्स, राजनीति और चुनाव: क्या ड्रग्स केस को चुनावी मुद्दा बनाकर देखना सही है? । 5600 करोड़ की ड्रग्स की सप्लाई कोई साधारण मामला नहीं है। जब ड्रग्स जैसे गंभीर मुद्दे पर राजनीति के स्तर पर बयानबाजी होती है, तो यह केवल एक-दूसरे पर आरोप लगाने का खेल नहीं रह जाता, बल्कि यह समस्या के वास्तविक समाधान से ध्यान भटकाने की एक कोशिश भी लगती है।

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05 Oct 2024
( Updated: 05 Dec 2025
03:03 PM )
ड्रग्स, राजनीति और चुनाव: क्या ड्रग्स केस को चुनावी मुद्दा बनाकर देखना सही है?
हाल ही में दिल्ली से 5600 करोड़ रुपये की ड्रग्स की जब्ती और 500 किलो कोकेन का पकड़ा जाना गंभीर चिंता का विषय है। यह मामला सिर्फ ड्रग्स के अवैध कारोबार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके साथ जुड़े राजनीतिक संबंधों ने इसे और पेचीदा बना दिया है। ड्रग्स माफिया का सरगना वीरेंद्र बसोया, जो दुबई में बैठकर इस रैकेट को संचालित कर रहा है, उसका राजनीतिक प्रभाव भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि उसकी बहू एक पूर्व विधायक की बेटी है, जो उसके रसूख को और अधिक गहरा बनाता है।

इस मामले ने और जोर तब पकड़ा जब एक और ड्रग सप्लायर तुषार गोयल के कांग्रेस से कथित संबंध सामने आए। तुषार गोयल 20 साल तक कांग्रेस का हिस्सा रहा और उसकी तस्वीरें कांग्रेस नेताओं दीपेंद्र हुड्डा और के.सी. वेणुगोपाल के साथ वायरल हुईं। इससे राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया।

हालांकि तुषार गोयल का कांग्रेस से जुड़ाव सामने आने के बाद, बीजेपी ने इसे हरियाणा चुनाव से जोड़ते हुए राहुल गांधी और कांग्रेस से सवाल पूछे। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने तुषार गोयल की तस्वीरें दीपेंद्र हुड्डा और के.सी. वेणुगोपाल के साथ जारी करते हुए कांग्रेस से स्पष्टीकरण की मांग की। उन्होंने दावा किया कि तुषार गोयल के फोन में दीपेंद्र हुड्डा का मोबाइल नंबर भी मिला है, और दोनों की कई तस्वीरें भी सामने आई हैं। इस पर त्रिवेदी ने तंज कसते हुए कहा, "कांग्रेस बताए कि यह रिश्ता क्या कहलाता है?"

कांग्रेस ने भी इस पर सफाई देते हुए कहा कि सिर्फ किसी नेता के साथ फोटो खिंचवाने से संबंध साबित नहीं होते। कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा ने कहा, "नेताओं के साथ फोटो तो कोई भी खिंचवा सकता है। क्या हर किसी का बैकग्राउंड जांचना संभव है?" उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आरोपी की तस्वीर बीजेपी के नेता अनिल जैन के साथ भी है, तो क्या इसका मतलब यह है कि बीजेपी का भी उससे संबंध है?
क्या इसे सिर्फ हरियाणा चुनाव से जोड़ना सही है?
राहुल गांधी ने हरियाणा चुनाव के दौरान ड्रग्स का मुद्दा उठाया, लेकिन उन्होंने केवल अडानी पोर्ट पर पकड़ी गई पुरानी ड्रग्स की खेप पर बात की। हालांकि, ताजा दिल्ली ड्रग्स मामले में कांग्रेस के एक सदस्य का नाम सामने आने के बावजूद उन्होंने इस पर कुछ नहीं कहा। जिसके बाद कहना गलत नहीं होगा लेकिन यह चुप्पी कहीं न कहीं संदेह पैदा करती है। लेकिन सवाल अब यह है कि क्या यह केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा था? क्या राहुल गांधी ने जानबूझकर दिल्ली के मामले पर कुछ नहीं कहा क्योंकि इसमें कांग्रेस से जुड़े लोगों का नाम आ रहा है?

राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप को देखकर यह तो साफ है कि ड्रग्स माफिया और राजनीतिक संबंधों का मामला बेहद पेचीदा है। 5600 करोड़ की ड्रग्स की सप्लाई कोई साधारण मामला नहीं है। जब ड्रग्स जैसे गंभीर मुद्दे पर राजनीति के स्तर पर बयानबाजी होती है, तो यह केवल एक-दूसरे पर आरोप लगाने का खेल नहीं रह जाता, बल्कि यह समस्या के वास्तविक समाधान से ध्यान भटकाने की एक कोशिश भी लगती है। ड्रग्स माफिया का राजनीतिक संबंध होना बेहद गंभीर है, और इस पर निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

राजनीतिक दलों के लिए यह जरूरी है कि वे इस मुद्दे को व्यक्तिगत या चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल करने के बजाय, समस्या की जड़ तक पहुंचें। ड्रग्स माफिया का काम सिर्फ अवैध धंधा चलाने तक सीमित नहीं है, यह समाज की बुनियाद को कमजोर करता है, युवाओं को नशे की चपेट में लाता है और देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करता है। ऐसे में जिम्मेदार नेतृत्व की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।

वैसे आपको बताते चले कि दिल्ली में जो 5000 करोड़ रुपये का ड्रग्स रैकेट पकड़ा गया, उसका नाम है म्याऊं-म्याऊं। इस रैकेट का मास्टरमाइंड वीरेंद्र बसोया है, जो दुबई में बैठकर भारत में ड्रग्स का कारोबार चलाता है। इस ड्रग्स रैकेट के तार पुणे, मुंबई, और अन्य प्रमुख शहरों तक फैले हुए थे। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इस मामले में अब तक पांच गिरफ्तारी की है और पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।

वीरेंद्र बसोया का नाम पहली बार 2023 में तब सामने आया जब पुणे पुलिस ने 3000 करोड़ रुपये की म्याऊं-म्याऊं ड्रग्स की बड़ी खेप पकड़ी। इस मामले में बसोया की अहम भूमिका थी। पुणे पुलिस द्वारा नाम उजागर होने के बाद, बसोया ने भारत छोड़कर दुबई में शरण ली, जहां से वह अब भी इस अवैध व्यापार को संचालित कर रहा है। बसोया का नेटवर्क अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैला हुआ है। दिल्ली में ड्रग्स रैकेट के पर्दाफाश के बाद पुलिस की जांच में एक और बड़ा नाम सामने आया, तुषार गोयल। तुषार, बसोया का करीबी है और दोनों मिलकर इस ड्रग्स नेटवर्क को चलाते थे। तुषार को हर ड्रग्स की डिलीवरी के बदले 4 करोड़ रुपये दिए जाते थे। पुलिस ने अब तक पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से एक अमृतसर से और चार दिल्ली से गिरफ्तार किए गए हैं।
ड्रग्स कारोबार का फैलाव
इस ड्रग्स रैकेट का जाल केवल दिल्ली तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका फैलाव मुंबई, पुणे, और भारत के अन्य प्रमुख शहरों में भी था। पुलिस को शक है कि इस नेटवर्क से जुड़े और भी कई बड़े नाम सामने आ सकते हैं। म्याऊं-म्याऊं ड्रग्स, जिसे मेफेड्रोन कहा जाता है, एक सिंथेटिक नशीला पदार्थ है, जिसे इस रैकेट के जरिए भारी मात्रा में भारत में लाया और बेचा जा रहा था। यह ड्रग्स सस्ता होने के बावजूद अत्यधिक नशे का कारण बनता है और इसके प्रभाव हेरोइन और कोकीन जैसे महंगे ड्रग्स से भी घातक हो सकते हैं।

दिल्ली पुलिस अब इस ड्रग्स मॉड्यूल को जड़ से खत्म करने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो गई है। पुलिस की निगाहें अब वीरेंद्र बसोया पर हैं, जो दुबई में शरण लेकर इस पूरे नेटवर्क को ऑपरेट कर रहा था। बसोया को वापस भारत लाने के लिए दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के संपर्क में है, ताकि उसे गिरफ्तार कर देश में उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके।

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