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‘मुफ्त की रेवड़ी’ देश को बना रही खोखला, बंद हो ऐसी राजनीति

भारत सरकार कोविड महामारी से लेकर अब तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है और अगले 4 सालों तक मुफ्त में ही देते रहेगी, राज्य सरकारें भी दिल खोल के दान कर रही है। जैसे मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त बस सेवा और मुफ्त पैसा |
‘मुफ्त की रेवड़ी’ देश को बना रही खोखला, बंद हो ऐसी राजनीति
मुफ्त में मिली हुई वस्तु किसे नहीं पसंद! यदि मुफ्त में कुछ भी मिले तो उसे प्राप्त करने के लिए लंबी कतार लग जाती है। लोग उस दानवीर का गुणगान करने लगते हैं। ठीक ऐसा ही कुछ हुआ है भारतीय राजनीति में, और इसका खामियाजा भुगत रहा है अर्थव्यवस्था और आम नागरिक। 

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया का कहना है कि राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर ज्यादा खर्च कर रही है। अब देखा जाए तो मुफ्त की रेवड़ी बांटने में केंद्र सरकार भी पीछे नहीं है। 

भारत सरकार कोविड महामारी से लेकर अब तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है और अगले 4 सालों तक मुफ्त में ही देते रहेगी, राज्य सरकारें भी दिल खोल के दान कर रही है। जैसे मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त बस सेवा और मुफ्त पैसा |

अब बात आती है कि इससे नुकसान कितना है और फायदा कितना है? 


चूंकि सरकार अपनी मनमर्जी से पैसा तो छाप नहीं सकती फिर पैसा आ कहां से रहा है? तो यह पैसा होता है आम नागरिक का, जो टैक्स के रूप में सरकार को देती है। इस टैक्स का उपयोग किया जाना चाहिए था पब्लिक वेलफेयर के लिए- सड़क बनाने के लिए, विद्यालय बनाने के लिए, अस्पताल बनाने के लिए, रेलवे बनाने के लिए और जिन्हें जरूरत हो उनकी मदद करने के लिए, लेकिन वास्तविक रूप से जनता के टैक्स के पैसों का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टी अपनी फायदे के लिए कर रही हैं, अपना वोट बैंक बनाने के लिए कर रही हैं |

जो पार्टी विपक्ष में होती है वह सत्ता में वापस आने के लिए जनता में मुफ्त की रेवड़ी बांटने लगती है और लोग आकर्षित भी होते हैं और इसका नुकसान यह हो रहा है कि राज्य और हमारा देश कर्ज में डूबता जा रहा है। इसका उदाहरण है हिमाचल प्रदेश - अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो गई है कि राज्य के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी 2 महीने तक अपने वेतन-भत्ते नहीं लेने का ऐलान किया है, राज्य सरकार के 2 लाख से अधिक कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिली है, ना ही पेंशनभोगियों के खाते में पेंशन की रकम पहुंची है। राज्य सरकार के ऊपर 86,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है |

इस कर्ज का मुख्य कारण 350 यूनिट मुफ्त बिजली योजना, महिलाओं के लिए 1500 रुपए प्रति माह की योजना जैसी कई मुफ्त की योजनाएं हैं। यदि वहां की सरकार इस पर कंट्रोल नहीं करती है तो हिमाचल प्रदेश का हाल भी श्रीलंका जैसा हो सकता है |
तो क्या मुफ्त में वस्तु या सेवा देना सरकार को बिल्कुल बंद कर देना चाहिए? नहीं, क्योंकि आज भी हमारे देश में बहुत ऐसे लोग हैं जिनके पास ना तो रहने के लिए खुद का मकान है और ना उन्हें दो वक्त रोटी मिल पाती है। अब जिन्हें दो वक्त की रोटी तक नहीं मिल पाती उनसे शिक्षा और  स्वास्थ्य के बारे में बात करना बेईमानी होगी। 

सरकार को मुफ्त की रेवड़ी सबको ना देकर जिन्हें सच में जरूरत हो उन्हें देना चाहिए।

 
1985 से लेकर अब तक इंदिरा आवास योजना (प्रधानमंत्री आवास योजना)  जारी रहने के बावजूद हमारे देश में आज भी गरीब लोग सड़क किनारे सोने को मजबूर हैं। 

80 करोड़ लोगों को मुफ्त की राशन मिलने के बावजूद भी एक वर्ष में लगभग 25 लाख लोगों की मृत्यु भूख की वजह से भारत में होती है। यह संख्या देखकर सरकार से सवाल तो बनती है कि आखिर क्यों?
लेखक: वेंकटेश कुमार
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