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भारत-चीन समझौता: जानें पेट्रोलिंग प्वाइंट्स को लेकर क्या LAC पर कम होगा तनाव, जानें क्या होगा इसका असर?

भारत-चीन समझौता: भारत और चीन के बीच पेट्रोलिंग प्वाइंट्स विवाद ने सीमा पर तनाव को बढ़ा दिया, खासकर 2020 में गलवान घाटी की घटना के बाद। दोनों देशों के सैनिकों के बीच लगातार टकराव और क्लेम लाइन पर विवाद ने स्थिति को गंभीर बना दिया। हाल ही में, एक समझौते के तहत, दोनों सेनाएं एक-दूसरे के पेट्रोलिंग प्वाइंट्स तक पहुंचने की सहमति पर पहुंची हैं, जिससे सीमा पर तनाव कम करने और सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इस समझौते का उद्देश्य LAC पर सुरक्षा और स्थिरता को मजबूत करना है।
भारत-चीन समझौता: जानें पेट्रोलिंग प्वाइंट्स को लेकर क्या LAC पर कम होगा तनाव,  जानें क्या होगा इसका असर?
भारत-चीन समझौता: भारत और चीन, जो एशिया के दो सबसे ताकतवर देश माने जाते हैं, 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से अब एक बाद फिर से ऐतिहासिक मोड़ पर आ खड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया मुलाकात से यह संकेत मिला है कि दोनों देशों की सेनाएं 2020 से पहले की स्थिति में लौटने का प्रयास कर रही हैं। इस कदम का मुख्य उद्देश्य सीमा पर तनाव को कम करना और गश्त को फिर से पुराने स्तर पर लाना है। आइए इस पूरे मसले की गहराई में जाकर समझते हैं कि क्या इसका मतलब है और इसका असर क्या होगा।
एलएसी (LAC) और सीमा विवाद
भारत और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद का केंद्र एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) है। यह सीमा जहां तक दोनों देशों की सेना गश्त लगाती हैं, वह निर्धारित करती है। लेकिन इस रेखा को लेकर दोनों देशों के अलग-अलग दावे हैं। इसी वजह से कई बार सैनिकों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रही है। विशेष रूप से 2020 के गलवान संघर्ष ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया था। उस समय, भारत और चीन के बीच गंभीर संघर्ष हुआ था, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बन गई थी।
पेट्रोलिंग प्वाइंट और क्लेम लाइन का मसला
इस ताजा समझौते का केंद्र डेपसांग और डेमचौक के क्षेत्र हैं, जहां गश्त को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद था। समझौते के बाद दोनों सेनाएं इन क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए तैयार हो गई हैं। डेपसांग में भारत की सेना पेट्रोलिंग प्वाइंट 10, 11, 12, और 13 तक गश्त कर सकेगी, जो गलवान घटना के बाद रोक दी गई थी। चीन की सेना वाई जंक्शन और बॉटल नेक जैसे क्षेत्रों में मौजूद थी, जहां से अब उसे पीछे हटना पड़ेगा।

क्लेम लाइन वह सीमा होती है, जहां तक दोनों देशों का दावा होता है कि यह उनकी सीमा है। 2020 के बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे की सीमा में घुसने से सैनिकों को रोक दिया था। अब इस समझौते के तहत यह तय हुआ है कि दोनों सेनाएं अपनी-अपनी क्लेम लाइन तक पहुंचने में स्वतंत्र होंगी।
समझौते का क्या होगा प्रभाव
अगर यह समझौता सफलतापूर्वक लागू होता है, तो यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक और सैन्य जीत साबित हो सकती है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद पहली बार दोनों देश इस तरह से वापस अपनी-अपनी जगह पर लौट रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह होगा कि दोनों देशों की सेनाएं फिर से अपनी-अपनी पुरानी स्थिति में लौट जाएंगी, जिससे टकराव की संभावनाएं कम हो जाएंगी।
डेपसांग और डेमचौक का महत्व
डेपसांग और डेमचौक क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहां पेट्रोलिंग प्वाइंट्स को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। डेपसांग के पेट्रोल प्वाइंट 10 से 13 और डेमचौक के दक्षिणी हिस्से में सेनाएं अपनी-अपनी गश्त नहीं कर पा रही थीं। अब, समझौते के बाद दोनों पक्ष अपनी पुरानी स्थिति पर लौटने के लिए सहमत हुए हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्पष्ट किया कि समझौते से 2020 में उत्पन्न विवादों का समाधान हो रहा है।

इस समझौते का एक हिस्सा "डिसएंगेजमेंट" है, जिसका मतलब है कि दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे से दूरी बनाएंगी और संघर्ष के संभावित क्षेत्रों से पीछे हटेंगी। इसके बाद, "डीइंडक्शन" की प्रक्रिया होगी, जिसमें दोनों देशों की अतिरिक्त तैनाती की गई सेनाएं वापस जाएंगी। इसका मतलब है कि लद्दाख में तैनात दोनों देशों की 50,000 से ज्यादा सेनाएं फिर से शांति काल की स्थिति में लौटेंगी।
भारत की शक्ति और चीन का रुख
यह समझौता बताता है कि भारत ने पिछले साढ़े चार सालों में अपनी सैन्य स्थिति को मजबूत किया है और चीन के विस्तारवादी कदमों का कड़ा जवाब दिया है। चीन की सेना अब समझ चुकी है कि भारत की सीमा पर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा। भारत ने कूटनीतिक और सैन्य दृष्टि से चीन को पीछे हटने पर मजबूर किया, जो इस समझौते का सबसे बड़ा संकेत है।

भारत और चीन के बीच यह समझौता अगर पूरी ईमानदारी से लागू होता है, तो यह दोनों देशों के लिए एक नया अध्याय साबित हो सकता है। एलएसी पर तनाव कम होगा, और दोनों देश अपने-अपने पेट्रोलिंग प्वाइंट्स तक गश्त लगा सकेंगे। यह केवल सैन्य दृष्टि से ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक दृष्टि से भी एक बड़ी उपलब्धि है। एशिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच शांति की बहाली पूरी दुनिया के लिए एक सकारात्मक संदेश होगी।
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