क्या सच में संसद वक्फ की जमीन पर बनी है, AIUDF चीफ बदरुद्दीन के दावें के पीछे का सच क्या है?
हाल ही में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने एक विवादित दावा किया कि दिल्ली के संसद भवन से लेकर वसंत विहार और एयरपोर्ट तक का पूरा क्षेत्र वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर बना है। इस दावे ने न केवल राजनीतिक बल्कि धार्मिक क्षेत्रों में भी हलचल मचा दी है। अजमल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह वक्फ की 9.7 लाख बीघा जमीन पर कब्जा करने का प्रयास कर रही है। साथ ही, उन्होंने सरकार द्वारा पेश किए गए वक्फ संशोधन विधेयक 2024 का कड़ा विरोध किया है, इसे मुस्लिम समाज के हितों के खिलाफ बताया है।
वक्फ संपत्ति और वक्फ बोर्ड की भूमिका
वक्फ संपत्ति वह संपत्ति है जो इस्लामी कानून के अनुसार धार्मिक या समाज सेवा के लिए समर्पित की जाती है। इसका उपयोग मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, या अन्य सामाजिक उद्देश्यों के लिए होता है। वक्फ बोर्ड इसकी देखरेख करता है और सुनिश्चित करता है कि संपत्ति का उपयोग उचित तरीकों से हो रहा है। भारत में वक्फ संपत्तियों को लेकर कई बार विवाद उठते रहे हैं, जिनमें अतिक्रमण और अवैध कब्जे के आरोप प्रमुख रहे हैं।
बदरुद्दीन अजमल का दावा है कि संसद भवन समेत कई अहम इलाकों की जमीन वक्फ की है, ने देशभर में विवाद को बढ़ा दिया। वक्फ संपत्तियों के अधिकारों पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि, इस दावे की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। अजमल के इस बयान के पीछे कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मुद्दा धार्मिक भावनाओं को भड़काने के उद्देश्य से उठाया गया है। वक्फ संपत्तियों के बारे में दावे और कानूनी विवादों के बीच यह एक और प्रमुख मामला बन सकता है, जिससे आने वाले समय में और कानूनी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक 2024: विरोध और समर्थन
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 का मकसद वक्फ संपत्तियों की प्रबंधन व्यवस्था में सुधार लाना और उसे अधिक पारदर्शी बनाना है। इस विधेयक में कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं जो वक्फ बोर्ड की जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे। लेकिन विपक्षी दलों और खासकर मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया है। उनका मानना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों पर सरकारी कब्जे का रास्ता खोल सकता है।
वैसे आपको बता दें कि नई संसद का उद्घाटन 2023 में हुआ, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शिलान्यास के साथ शुरू हुआ था। यह इमारत देश के लोकतंत्र के केंद्र के रूप में देखी जाती है और भारत की नई पहचान का प्रतीक है। हालांकि, जमीयत उलेमा के प्रमुख के इस दावे के बाद, सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह निर्माण वक्फ की जमीन पर किया गया है। अभी तक इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन इस मुद्दे ने धार्मिक और राजनीतिक विवाद को हवा दे दी है। कुछ लोग इसे राजनीति से प्रेरित बयान बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे गंभीरता से ले रहे हैं और जांच की मांग कर रहे हैं।
वहीं, भाजपा के नेताओं का कहना है कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार और गड़बड़ी को खत्म करने के लिए लाया गया है। दिल्ली हज समिति की अध्यक्ष कौसर जहां ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का यह कदम मुस्लिम महिलाओं और पिछड़े वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए है। इससे वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आएगी।"
यह पहली बार नहीं है जब वक्फ संपत्ति को लेकर विवाद हुआ है। भारत के कई हिस्सों में वक्फ की जमीनों पर कब्जा और अवैध निर्माण के आरोप लगते रहे हैं। हाल ही में वक्फ संपत्तियों पर विवाद का एक ताजा उदाहरण पटना के गोविंदपुर गांव से भी सामने आया है, जहां सुन्नी वक्फ बोर्ड ने गांव को अपनी संपत्ति घोषित किया है। इस गांव में लगभग 95 प्रतिशत हिंदू आबादी है, और यह विवाद वहां के लोगों के बीच तनाव पैदा कर रहा है। वक्फ बोर्ड का दावा है कि गांव के पास स्थित एक मजार के चारों ओर की जमीन कब्रिस्तान की है, और हिंदू निवासियों को यह इलाका खाली करना चाहिए।
यह मामला सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक मोड़ भी ले रहा है। अजमल के दावे ने विपक्षी दलों को केंद्र सरकार के खिलाफ एक मुद्दा दे दिया है। हालांकि, अभी तक इस पर कोई ठोस कानूनी कार्यवाही नहीं हुई है, लेकिन इस दावे ने वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बदरुद्दीन अजमल का दावा और वक्फ संशोधन विधेयक दोनों ही आने वाले समय में बड़े मुद्दे बन सकते हैं। वक्फ संपत्तियों पर कब्जे के आरोप और इसके लिए लाए गए विधेयक पर देशभर में गहन चर्चा हो रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवाद का भविष्य क्या होता है और क्या वक्फ संपत्तियों को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच कोई समझौता हो सकता है।