जम्मू-कश्मीर विधानसभा: अनुच्छेद 370 पर हंगामा, विशेष दर्जे की बहाली की मांग और अब्दुल रहीम राथर बने अध्यक्ष
जम्मू-कश्मीर में राजनीति ने एक नया मोड़ लिया है, जहां विधानसभा का पांच दिवसीय सत्र जोरदार बहसों और चर्चाओं से भरपूर रहा। अनुच्छेद 370 पर बहस ने सदन को गरमा दिया, जिसमें पीडीपी ने राज्य के विशेष दर्जे की बहाली की मांग की। वरिष्ठ नेता और सात बार विधायक, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अब्दुल रहीम राथर को सर्वसम्मति से विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया, जो इस सत्र का एक सकारात्मक पहलू रहा।
जम्मू-कश्मीर की राजनीति एक नया मोड़ ले चुकी है। पांच दिवसीय विधानसभा सत्र की शुरुआत के साथ ही अनुच्छेद 370 पर बहस, पीडीपी की मांगें, और अब्दुल रहीम राथर का अध्यक्ष चुना जाना, ये सभी घटनाएं प्रदेश के राजनीतिक भविष्य को लेकर कई संकेत दे रही हैं। आज के सत्र में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अभिभाषण के साथ कार्यवाही का शुभारंभ हुआ, लेकिन जैसे-जैसे सत्र आगे बढ़ा, सदन में बहस और हंगामे का दौर शुरू हो गया।
पीडीपी की अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग से मचा हंगामा
सत्र की शुरुआत में ही पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) के विधायक वहीद पारा ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरोध में आवाज उठाई। उन्होंने प्रस्ताव पेश किया जिसमें पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे की बहाली की मांग की गई थी। पारा के अनुसार, अनुच्छेद 370 के हटने से जम्मू-कश्मीर के लोगों की विशिष्ट पहचान और स्वायत्तता पर गहरा असर पड़ा है, जिसे बहाल किया जाना चाहिए।
इस मांग के बाद विधानसभा में तीखी बहस छिड़ गई। विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस मुद्दे पर पीडीपी का समर्थन किया, जबकि कई अन्य दल इस प्रस्ताव के विरोध में थे। सदन में शोर-शराबे का माहौल बन गया और बहस इतनी गर्म हो गई कि कार्यवाही को कुछ देर के लिए स्थगित भी करना पड़ा।
अब्दुल रहीम राथर बने विधानसभा के पहले अध्यक्ष
जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के पहले अध्यक्ष का चुनाव भी इसी सत्र में हुआ, और चरार-ए-शरीफ से सात बार के विधायक, वरिष्ठ नेता अब्दुल रहीम राथर को अध्यक्ष चुना गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के इस अनुभवी नेता का चुनाव विपक्ष की तरफ से बिना किसी विरोध के हुआ। यह सर्वसम्मति से हुई एक बड़ी उपलब्धि थी। अध्यक्ष चुने जाने के बाद राथर ने अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र की इस प्रक्रिया में शामिल होना उनके लिए सम्मान की बात है। उन्होंने कहा, "इस सदन के सभी सदस्यों का सम्मान बनाए रखना मेरा कर्तव्य है, और मैं इसे पूरी जिम्मेदारी से निभाऊंगा।" उनके इस संदेश ने सभा में लोकतंत्र के प्रति विश्वास को और गहरा किया।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अब्दुल रहीम राथर को उनके अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई दी। मुख्यमंत्री ने उनके अनुभव और सदन की समझ को सराहते हुए कहा, "आप इस सदन के संरक्षक हैं और आपके नेतृत्व में यहां की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को एक नई दिशा मिलेगी।" मुख्यमंत्री की इस बधाई से सदन के वातावरण में सौहार्द और सहयोग का भाव बना रहा, जो कि इस सत्र की सफल शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण था।
अनुच्छेद 370 पर बहस के साथ क्या संकेत मिलते हैं?
जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में अनुच्छेद 370 पर उठी बहस से यह स्पष्ट है कि प्रदेश में इसे लेकर असंतोष अभी भी बना हुआ है। पीडीपी जैसे दल इसे एक भावनात्मक और सांस्कृतिक मुद्दा मानते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने इसे समाप्त करके पूरे भारत में समानता स्थापित करने का प्रयास किया है, लेकिन स्थानीय राजनीतिक दल इसे राज्य की पहचान से जुड़ा मुद्दा मानते हैं।
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा मिला हुआ था, जो उसे एक प्रकार की स्वायत्तता प्रदान करता था। अनुच्छेद के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का संविधान और ध्वज समाप्त हो गया, और अब प्रदेश के कानून भी देश के बाकी हिस्सों के समान ही हैं।
विधानसभा में आगे की चुनौतियां
विधानसभा में अनुच्छेद 370 को लेकर एक बार फिर बहस की शुरुआत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब्दुल रहीम राथर के सामने सदन की गरिमा बनाए रखने और अनुशासन स्थापित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। पीडीपी और अन्य दलों की अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग को लेकर असंतोष का सामना करना और सत्ता पक्ष के साथ एक संतुलन बनाकर रखना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी। अध्यक्ष राथर का कहना है कि वे पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता से सदन का संचालन करेंगे। उन्होंने कहा कि पीडीपी के सदस्य वहीद पारा ने हंगामा करने से पहले कोई आधिकारिक नोटिस नहीं दिया था, जिससे सदन के बाकी सदस्य भी तैयार नहीं थे।
इस सत्र में जम्मू-कश्मीर विधानसभा का यह नया रूप एक नई उम्मीद की किरण लेकर आया है। लोकतंत्र की प्रक्रिया में भाग लेने और आपसी संवाद की इस प्रक्रिया में हर सदस्य अपनी भूमिका निभा रहा है। अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर मतभेद अवश्य हैं, लेकिन अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर के नेतृत्व में एक सकारात्मक दिशा की संभावना जताई जा रही है।