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Keshav Prasad Maurya: बीजेपी का वो चेहरा जिसने सरकार और संगठन को मजबूत करने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी

केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाते हैं। उनकी लगन और तेज़ दिमाग़ ने न केवल यूपी की राजनीति को बदल दिया, बल्कि एक मजबूत सरकार की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने अखिलेश यादव जैसे विरोधियों के ऑफर को नकारते हुए पार्टी के संगठन को मजबूत किया। मौर्य का मानना है कि एक सशक्त संगठन ही मजबूत सरकार की नींव रखता है।
Keshav Prasad Maurya:  बीजेपी का वो चेहरा जिसने सरकार और संगठन को मजबूत करने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी

केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) उत्तर प्रदेश की राजनीतिक शतरंज की बिसात का वो मोहरा, जिसके आगे विरोधियों की एक नहीं चलती।यूपी की सियासत की वो मज़बूत कड़ी जिसने अखिलेश यादव जैसों के लालची ऑफ़र को भी सिरे से नकार दिया। ये वही केशव हैं जिन्होंने अपनी लगन, तत्परता और तेज़ दिमाग़ से न सिर्फ़ यूपी की राजनीती को बदलकर रख दिया, बल्कि एक मज़बूत संगठन के पुरोधा के तौर पर काम करते हुए मज़बूत सरकार भी उत्तर प्रदेश को देने में बड़ा योगदान दिया। ये वही केशव हैं जिन्होंने केंद्र में बीजेपी की पहली सरकार बनाने में सबकुछ झोंक दिया, इसीलिए केशव बड़े ही उत्साह में कहते हैं संगठन जितना मज़बूत होगा, सरकार उतनी ही दमदारी से चलेगी ।

तो चलिए आज बताते हैं कि कैसे केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) बीजेपी का वो चेहरा बन गए जिन्होंने सरकार और संगठन को मजबूत करने में कोई कमी नहीं छोड़ी, साथ ही पिछड़े वर्ग को भी भगवा पार्टी के साथ लाकर खड़ा कर दिया ।मैं पिछड़े वर्ग से आता हूं, मैं कमजोर हूं, इसलिए मुझपर हमला किया जाता है।केशव मौर्य जब ये बोलते हैं तो लगता है कि वो पिछड़े होने के नाते राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं, लेकिन सच्चाई इससे परे है, वो कैसे यही समझना बेहद जरुरी है ।

दरअसल, अभी तक उत्तर प्रदेश की राजनीती में ज्यदातर पिछड़े वर्ग में यादवों को ही ओबीसी माना जाता था। जिसका लाभ भी उन्हें खूब मिला, यादवों के अलावा ओबीसी जातियों को बहुत तवज्जो नहीं मिली। जबकि आंकड़े कहते हैं कि ओबीसी में सिर्फ 12 फ़ीसदी यादव ही नहीं है, उनके अलावा 40 फ़ीसदी गैर यादव ओबीसी, 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी है।

ऐसे में जब केशव कहते हैं कि, मैं पिछड़े वर्ग से आता हूं, मैं कमजोर हूं, इसलिए मुझपर हमला किया जाता है। तो वो केवल ख़ुद के लिए नहीं कहते बल्कि अपने पूरे समाज के लिए कहते है, जिनका मज़ाक़ बनाने की कोशिश करते है अखिलेश यादव, लेकिन केशव ने इस परिपाटी को बदलकर रख दिया और यादव के अलावा जिन ओबीसी ने 2012 में सपा को चुना था ।उन्हें केशव ने 2014 लोकसभा चुनाव आते-आते बीजेपी की तरफ़ लाकर खड़ा कर दिया, नतीजा ये हुआ कि, 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 80 में 71 सीटें जीती, केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी, मोदी प्रधानमंत्री बन गए।

यानि पीएम मोदी को पहली बार देश की कुर्सी पर बैठाने में केशव का बड़ा योगदान था। ओबीसी वोटबैंक के सहारे केशव ख़ुद सांसद भी बन गए, फिर 2017 आया, यूपी विधानसभा चुनाव, बीजेपी की जीत के आगे विपक्षी हवा हो गए। केशव की वजह से ओबीसी ने 2017 में भी बीजेपी का साथ दिया, क्योंकि वो उस वक़्त बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे। हालांकि योगी मुख्यमंत्री बने, विरोधियों ने अफ़वाह उड़ाई की केशव का हक़ मार लिया गया। योगी-केशव के बीच तनातनी की ख़बरें आई, लेकिन इन सबसे केशव को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, वो निरंतर संगठन के लिए काम करते रहे। अब बारी भी 2019 लोकसभा चुनाव की, केशव पर एक बार फिर ज़िम्मेदारी थी बीजेपी को यूपी से जीताने की, फिर क्या था, एक सच्चे सिपाही की तरह केशव पूरे जोश और जूनून के साथ कार्यकर्ताओं को लेकर मैदान में उतर गए। नतीजों ने फिर बता दिया कि केशव का करिश्मा यूपी में क़ायम हैं, क्यों ओबीसी वर्ग फिर बीजेपी के साथ खड़ा था और 62 सीटें जीत बीजेपी ने केंद्र में दूसरी बार सरकार बनाई, 2014, 2017, 2019 के लगातार तीन चुनाव में बीजेपी को यूपी के ओबीसी वर्ग ने सिर आंखों पर बिठाया तो उसनें सबसे बड़ा योगदान केशव मौर्य का ही था।

लेकिन अभी भी केशव का काम ख़त्म नहीं हुआ था, क्योंकि 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव था, तैयारियाँ ज़ोर शोर पर थी, योगी के नेतृत्व में बेहतरीन जीत हुई। केशव का भी अहम योगदान रहा था, केशव की वजह से ओबीसी वोटबैंक छिटकने का नाम नहीं ले रहा था। लेकिन कहते हैं कि, महत्वाकांक्षाएं सबसे में होती हैं, 2014 से 2022 तक लगातार जिस केशव के लिए ओबीसी वर्ग ने वोट किया उसे शायद लगने लगा कि अब केशव यूपी कुर्सी पर होने चाहिए। विपक्ष ने इसे मुद्दा बना लिया, और अखिलेश मॉनसून ऑफ़र देकर केशव के समर्थकों को ये बताने की कोशिश करने लगे कि उनके साथ अन्याय हुआ है। यही से योगी और केशव की कथित खींचतान सामने आई, जिसका ख़ामियाज़ा 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उठाना पड़ा और यूपी में 80 में से बीजेपी को सिर्फ़ 33 सीटें मिली। ऐसे में लगा कि योगी की कुर्सी चली जाएगी, लगातार बवाल बढ़ता गया। योगी बनाम केशव की कथित लड़ाई को विरोधियों ने भुनाना शुरु कर दिया। लेकिन इन सबके बीच सबकुछ ठीक करने के लिए कौन खड़ा हुआ, केशव प्रसाद मौर्य।



केशव ने एक झटके में विरोधियों को बहस नहस कर दिया और फिर से एक बार उन्होंने बता दिया कि वो एक सच्चे सिपाही की तरह संगठन और सरकार के लिए काम करते रहेंगे। केशव मौर्य के काम करने के इसी तरीक़े ने उन्हें केंद्र का भी चहेता बना रखा है, और ये बात भी सच हैं कि, उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौर्य, कुशवाहा जैसी पिछड़ी बिरादरी को आज पूछा जा रहा है तो उसमें केशव मौर्य का अहम रोल है। वो पिछड़ी विरादरी की मुखर आवाज़ बने हुए हैं, मंडल कमीशन के बाद भी जिस तरह से ओबीसी के नाम पर यादव बिरादरी ही आगे रही। उस परिपाटी को केशव ने ख़त्म किया और सबको एक नज़र में लाकर खड़ा किया ।


ऐसे में ये कहना ग़लत नहीं होगा कि, कल्याण सिंह के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पास पिछड़ी बिरादरी का सबसे बड़ा नेता अगर कोई मिला है तो है केशव प्रसाद मौर्य। जिनके मजबूत किरदार ने पार्टी को भरोसा दिया है कि, केशव हैं तो मज़बूती हैं 

यानि, केशव प्रसाद मौर्य: बीजेपी का वो चेहरा जिसने सरकार और संगठन को मजबूत करने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी।

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