जानिए जियाउल हक हत्याकांड की पूरी कहानी, जिसके चलते मुलायम के करीबी रहे राजा भैया से अखिलेश यादव हो गये दूर
उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक राजा भैया एक ऐसा नाम है जिनकी हर सियासी दल के मुखिया से नजदीकियां रही है। आज हम चर्चा उन वजहों पर करेंगे जिसके चलते मुलायम सिंह के बेहद करीबी रहे राजा भैया कैसे अखिलेश यादव से दूर हो गए।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक राजा भैया एक ऐसा नाम है जिनकी हर सियासी दल के मुखिया से नजदीकियां रही है। आज हम चर्चा उन वजहों पर करेंगे जिसके चलते मुलायम सिंह के बेहद करीबी रहे राजा भैया कैसे अखिलेश यादव से दूर हो गए। दरअसल आज से लगभग 11 साल पहले प्रतापगढ़ के कुंडा में एक हत्याकांड हुआ जो पूरे देश में चर्चा का विषय रहा। यहां पर उत्तर प्रदेश पुलिस में सर्किल ऑफिसर रहे जिया उल हक की सरेआम गांव में हत्या कर दी गई थी। यह हत्या साधारण तरीके से नहीं बल्कि ग्रामीण की उग्र भीड़ ने पहले को जिया उल हक को लाठी डंडों से पीटा फिर उन्हें गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया था। उस वक्त उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री थे। प्रदेश की सियासत में इस मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि कुंडा से विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे राजा भैया को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। क्षेत्राधिकारी की हत्या का आरोप राजा भैया और उनके करीबियों पर भी लगा था हालांकि जब सीबीआई जांच हुई तो इस मामले में राजा भैया को क्लीन चिट मिल गई। यही वह हत्याकांड माना जाता है। जिसके चलते राजा भैया और अखिलेश यादव के रिश्तों के बीच ऐसी दूरियों हुई जो आज तक खत्म नही हो पाई है।
क्या था पूरा मामला ?
दरअसल 2 मार्च 2013 को प्रतापगढ़ जिले के कुंडा तहसील के बलीपुर गांव के प्रधान रहे नन्हे सिंह यादव की हत्या हुई थी। इस हत्या के बाद ग्राम प्रधान के समर्थक बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया और हथियार लेकर बलीपुर गांव पहुंच गए। गांव में बढ़ते बवाल को देखते हुए कुंडा के कोतवाल सर्वेश मिश्रा अपनी टीम के साथ प्रधान के घर जाने का सोचे लेकिन उग्र भीड़ के कारण वह बहुत नहीं पाए लेकिन क्षेत्राधिकार जिया उल हक गांव में पीछे के रास्ते से प्रधान के घर की तरफ बढ़े। गांव में भयंकर बवाल चल रहा था। ग्रामीण लगातार फायरिंग कर रहे थे। इस मंजर को देखकर को जिया उल हक की सुरक्षा में तैनात गाना इमरान और कुंडा एस एस आई विनय कुमार सिंह भी डर के मारे खेत में जाकर छुप गए। इस दौरान गोली लगने से मृतक प्रधान के छोटे भाई सुरेश यादव की भी मौत हो गई थी। अब सुरेश यादव की मौत की सूचना जैसे ही गांव वालों को मिली तो गुस्सा है ग्रामीणों ने को जिया उल हक को घेर लिया। पहले गांव की उग्र भीड़ में जिया उल हक को लाठी डंडों से पिता उन्हें अधमरा किया फिर बाद में उन्हें गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इस क्षेत्र में कई घंटे तक बवाल चला रहा। उसे वक्त कुंडा की घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई थी। इसी घटना ने मुलायम सिंह यादव के करीबी राजा भैया और अखिलेश यादव की बीच दूरियों को जन्म दिया। राजा भैया को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। भारी दबाव के चलते उसे वक्त के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव को प्रतापगढ़ पहुंचना पड़ा था और उन्होंने को के परिवार को न्याय दिलाने का आश्वासन भी दिया था।
अखिलेश यादव ने लिया था बड़ा एक्शन
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के रात में हुए इस हत्याकांड में प्रदेश सरकार की काफी किरकिरी कराई थी। जिसके बाद अखिलेश यादव ने इस पूरे हत्याकांड पर कड़ा एक्शन लेते हुए तत्कालीन एसपी, एसओ समेत कई पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया था।साथ ही अखिलेश सरकार ने इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश भी की थी।इस मामले में सीबीआई ने 2013 में ही क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।इसके ख़िलाफ़ सीओ की पत्नी परवीन अहमद कोर्ट चली गईं। कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट खारिज करते हुए फिर से जांच करने का आदेश दिया।
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने दिया कैसा आदेश
बताते चले कि सीबीआई की विवेश अदालत ने इस मामले में बुधवार को सीओ जियाउल हक हत्याकांड में 10 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हर दोषी पर 19,500 रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया गया है। दंड की कुल रकम एक लाख 95 हजार रुपये का 50 प्रतिशत सीओ जिया उल हक की पत्नी परवीन आजाद को दिया जाएगा। इस केस में सज़ा पाने वाले आरोपियों में फूलचंद्र यादव, पवन यादव, मंजीत यादव, घनश्याम सरोज, रामलखन गौतम, छोटे लाल यादव, राम आसरे, मुन्ना पटेल, शिवराम पासी और जगत बहादुर पटेल उर्फ़ बुल्ले पटेल शामिल हैं। वही एक अन्य आरोपी सुधीर को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
ग़ौरतलब है कि इस केस में जियाउल हक के पिता शमशुल हक और मां हाजरा ने राजा भैया और गुलशन यादव को क्लीन चिट दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस केस में यही दोनों मुख्य साज़िशकर्ता थे। इतना हीं नहीं उन्होंने ये भी कहा की अगर सीबीआई सही तरीक़े से काम करती तो आज शायद ये भी जेल के अंदर होते। बताते चले की इस केस में सीबीआई ने ने 14 आरोपियों के खुलफ चार्जशीट दाख़िल की थी, जिनमे से दो की केस के दौरान मौत हो गई जबकि एक नाबालिग़ के ख़िलाफ़ जेजे बोर्ड में केस दर्ज है। वही 32 गवाह पेश किए थे अभियोजन पक्ष की तरफ़ से।