कांग्रेस की "पदयात्रा" पर लालू यादव ने नजर लगाई! कन्हैया कुमार ने इस यात्रा से दूरी बनाई! राहुल गांधी को लगा झटका!
कन्हैया कुमार का सुपौल के पदयात्रा में शामिल न होना। कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। कन्हैया कुमार की अनुपस्थिति लालू प्रसाद यादव के प्रेशर पॉलिटिक्स से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, बिहार में विपक्षी दल के रूप में राजद एक मजबूत चेहरा है। लालू और उनके बेटे तेजस्वी की जोड़ी हर एक चुनाव में काफी निर्णायक रही है।

बीते कल यानी 28 मार्च को बिहार के सुपौल में कांग्रेस की पदयात्रा निकाली गई। इस पदयात्रा का नारा था। "पलायन रोको,नौकरी दो" इस यात्रा को बड़े ही जोश के साथ रवाना किया गया। इस दौरान पार्टी के कई प्रमुख युवा नेता भी नजर आए। इनमें सबसे ज्यादा नजर कन्हैया कुमार पर थी। लेकिन कन्हैया कुमार तो नजर ही नहीं आए। उनकी गैरहाजिरी में एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी और कांग्रेस जिलाध्यक्ष विमल कुमार यादव ने इस यात्रा का नेतृत्व किया। कन्हैया कुमार के इस यात्रा में न आने से हर कोई हैरान रह गया। लोगों के बीच एक सवाल सा उठने लगा कि क्या कन्हैया कुमार खुद अपनी इच्छा से नहीं आए या फिर इसके पीछे कोई और बड़ी वजह है। कुछ लोग का तो यह भी कहना है कि इसके पीछे प्रेशर पॉलिटिक्स काम कर रही है। बता दें कि इस पदयात्रा के शुरुआती चरण से ही कन्हैया कुमार जुड़े हुए हैं। इस यात्रा की शुरुआत बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के भितिहरवा गांधी आश्रम से हुई थी। कन्हैया कुमार का जबरदस्त भाषण और सरकार को घेरने की क्षमता ने उन्हें कांग्रेस के बीच एक बड़े चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया है। लेकिन शुक्रवार को उनके इस यात्रा में न दिखाई देना। कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। क्या कन्हैया ने सच में जानबूझकर इससे दूरी बनाई थी या फिर उनकी रणनीति का हिस्सा था ? ताकि वह कांग्रेस के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत बना सके। लेकिन कन्हैया कुमार की रणनीति कांग्रेस को बिहार में कमजोर कर सकता है। दरअसल,कांग्रेस बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में लगी हुई है। इसमें कांग्रेस ने कन्हैया कुमार के कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी दी है। ऐसे में उनकी इस यात्रा से गैरमौजूदगी कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है। वह भी तब जब विपक्षी दल प्रचार-प्रसार के लिए इसका नेगेटिव इस्तेमाल कर सकते हैं।
क्या सच में कन्हैया कुमार के ऊपर लालू यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स ?
कन्हैया कुमार का सुपौल के पदयात्रा में शामिल न होना। कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। कन्हैया कुमार की अनुपस्थिति लालू प्रसाद यादव के प्रेशर पॉलिटिक्स से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, बिहार में विपक्षी दल के रूप में राजद एक मजबूत चेहरा है। लालू और उनके बेटे तेजस्वी की जोड़ी हर एक चुनाव में काफी निर्णायक रही है। लेकिन दूसरी तरफ देखा जाए। तो तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार दोनों ही बिहार की राजनीति के युवा चेहरे हैं। इन दोनों के द्वारा समय-समय पर बिहार की बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए देखा जा सकता है। दूसरी तरफ लोग यह भी कह रहे हैं कि बिहार में कन्हैया कुमार की युवाओं के बीच बन रही मजबूत पकड़ से लालू यादव चिंतित है। उन्हें कन्हैया की बढ़ती लोकप्रियता खुद के लिए खतरा लग रही है।
पिछले कई महीनो से कांग्रेस और राजद में तनाव के संकेत
बीते कई महीनों से कांग्रेस और राजद के बीच टकराव देखने को मिल रहा है। दोनों ही पार्टियों के तरफ से यह भी जाहिर हो चुका है कि आने वाले बिहार चुनाव में दोनों ही अलग-अलग चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।
दरअसल,जब 2025 में कन्हैया कुमार ने पदयात्रा की शुरुआत की थी। उस दौरान कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में खबर आई थी कि लालू और तेजस्वी इस यात्रा को पसंद नहीं कर रहे हैं। क्योंकि 2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा था। ऐसे में इस बार यही मुद्दा कन्हैया कुमार लेकर चल रहे हैं। 2025 चुनाव की जो रणनीति है। वह कांग्रेस और राजद की मिलती-जुलती नजर आ रही है। कन्हैया द्वारा यह मुद्दा लालू और तेजस्वी को कमजोर कर सकता है। ऐसे में हो सकता है कि लालू ने कन्हैया कुमार पर कोई दबाव डाला हो। ताकि वह इस यात्रा से दूर रहे। इसके पीछे महागठबंधन में सीट बंटवारे और नेतृत्व को मजबूत करने की है। हालांकि, लालू प्रसाद यादव द्वारा कन्हैया कुमार को इस यात्रा से रोकना सिर्फ एक थ्योरी के रूप में है। अभी तक इसका सच सामने नहीं आया है। अगर ऐसा कुछ होता। तो अब तक किसी न किसी नेता का बयान जरूर सामने आता। जिस तरीके से यात्रा चली है। ऐसे में कहीं से भी यह प्रतीत नहीं हुआ कि पार्टी पर किसी तरह का दबाव था। लेकिन हम सब जानते हैं कि बिहार में लालू की चालाकियां कई बार सामने आई हैं।
क्या कांग्रेस के अंदर चल रही अंतर्कलह ?
कन्हैया का इस यात्रा से अचानक से दूरी बनाना। कांग्रेस के अंदर गुटबाजी का भी नतीजा हो सकता है। बिहार कांग्रेस इस वक्त दो धड़े में बंटा हुआ है। एक तरफ कन्हैया कुमार और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु हैं । तो दूसरी तरफ अखिलेश प्रसाद सिंह है।जिन्हें हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाया गया है। कन्हैया कुमार राहुल गांधी के काफी ज्यादा भरोसेमंद हैं। ऐसे में राहुल गांधी का कन्हैया पर भरोसा भी कई बड़े नेताओं को असहज महसूस करा रहा है। यह भी हो सकता है कि कई नेताओं ने प्लान के तहत अनुपस्थिति में उनके छवि को नुकसान पहुंचाने का प्लान किया हो। कन्हैया की गैर मौजूदगी बिहार कांग्रेस के लिए कई स्तरों पर बड़ा नुकसान हो सकती है। इससे कांग्रेस की एकता और संगठनात्मक पर असर पड़ सकता है।
महागठबंधन के भविष्य के लिए खतरे की घंटी
कांग्रेस की एकता और संगठनात्मक पर जो असर पड़ रहा है। वह विपक्षी दलों खासतौर से जेडीयू और बीजेपी को मौका देता है। इससे वह कांग्रेस की कमजोरी को पेश कर पाएंगे। वहीं अगर सच में यह लालू की प्रेशर पॉलिटिक्स है। तो यह आने समय में महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी है। कांग्रेस 2025 विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर खुद की पहचान बनाना चाह रही है। लेकिन उसे आरजेडी से सावधान रहना पड़ेगा। कन्हैया कुमार की पदयात्रा से दूरी कई और बड़ी वजह भी हो सकती है। उनका इस पदयात्रा में शामिल न होना सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। हालांकि आने वाले समय में जब क्लियर हो जाएगा कि यह कोई प्रयोग था या फिर कोई बड़ा खेल करने की तैयारी है। लेकिन कुछ भी हो इससे 2025 के चुनावी परिणाम कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकते हैं।