ग्लेशियल झीलों से बचाव के लिए मोदी सरकार का मास्टर प्लान
पिछले साल सिक्किम में ग्लेशियल झील के टूटने से आई बाढ़ ने तबाही मचा दी थी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और तीस्ता IV पनबिजली संयंत्र नष्ट हो गया। इस भयानक घटना ने सरकार को गहरी सोच में डाल दिया, और तब से केंद्र सरकार ने हिमालय क्षेत्र की ग्लेशियल झीलों के बढ़ते खतरे का समाधान निकालने का संकल्प लिया है।
पिछले साल सिक्किम में हुई ग्लेशियल झील की बाढ़ ने तबाही मचाई थी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे और तीस्ता IV पनबिजली संयंत्र को भारी नुकसान हुआ था। इस विनाशकारी घटना ने सरकार और जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर इन खतरनाक बर्फीली झीलों से कैसे निपटा जाए ताकि ऐसी घटनाएं भविष्य में रोकी जा सकें। इसी उद्देश्य से केंद्र सरकार ने ग्लेशियल झीलों की मैपिंग और उनके जोखिम को कम करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की है।
क्या है ग्लेशियल झील की बाढ़ (GLOF) का खतरा?
ग्लेशियल झील आउटबर्स्ट फ्लड यानी ग्लोफ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसमें अचानक किसी ग्लेशियर से पानी का तेज प्रवाह होता है। यह तब होता है जब ग्लेशियर पिघलने से झीलें बनती हैं और किसी कारण से उनका बांध टूट जाता है। बर्फ के पिघलने की वजह से झीलों का जल स्तर बढ़ जाता है, और जब ये पानी अचानक बाहर निकलता है, तो निचले क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। यह स्थिति खासकर हिमालय क्षेत्र के राज्यों में बड़ी समस्या बन गई है।
सरकार की नई योजना संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग
इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण समिति (एनडीएमए) के नेतृत्व में 'ग्लोफ शमन के लिए रणनीतियां' नामक एक कार्यशाला आयोजित की, जिसमें हिमालय क्षेत्र की करीब 7,500 ग्लेशियल झीलों का अध्ययन किया गया। इनमें से लगभग 200 झीलों को अत्यधिक जोखिम वाली सूची में रखा गया है, और इनमें से 100 झीलों को केंद्रीय जल आयोग ने सबसे ज्यादा खतरनाक माना है।
इनमें हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख के कई क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियल झीलें शामिल हैं। सबसे ज्यादा जोखिम सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में पाया गया है, जहां लगातार वैज्ञानिक रूप से निगरानी की जा रही है ताकि इस खतरे को कम किया जा सके।
प्रमुख संवेदनशील परियोजनाएं और उनका जोखिम
ग्लेशियल झीलों से जुड़े खतरे के कारण पनबिजली परियोजनाओं पर भी असर पड़ रहा है। इस वक्त देश में 47 पनबिजली परियोजनाएं ऐसी हैं, जो ग्लोफ के जोखिम से घिरी हुई हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश की बैरा सियूल (180 मेगावाट), एसजेवीएन की नाथपा झाकड़ी (1,500 मेगावाट), और अन्य निजी परियोजनाएं भी शामिल हैं।
उत्तराखंड में 9 ऐसी परियोजनाएं हैं जिन पर ग्लोफ का खतरा मंडरा रहा है, जिनमें विष्णुप्रयाग और तपोवन विष्णुगाड प्रमुख हैं। इसी तरह, जम्मू-कश्मीर में 5 और अरुणाचल प्रदेश में 3 परियोजनाएं हैं जो बर्फीली झीलों के संभावित प्रकोप से प्रभावित हो सकती हैं।
ग्लेशियरों की निगरानी और उन्हें समझने के लिए सरकार ने कई वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की मदद ली है। आईआईटी भुवनेश्वर के ग्लेशियर विशेषज्ञ असीम सत्तार के अनुसार, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के संकेत मिल रहे हैं, जो यह बताता है कि आने वाले समय में ग्लोफ गतिविधि का प्रभाव पूर्वी हिमालय के अलावा हिंदुकुश और मध्य हिमालय क्षेत्र तक बढ़ सकता है। इससे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर असर पड़ सकता है।
ग्लोफ का खतरा न केवल स्थानीय लोगों बल्कि पनबिजली परियोजनाओं, सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे के लिए भी घातक साबित हो सकता है। इसलिए, सरकार ने सभी संवेदनशील क्षेत्रों में ग्लेशियर की झीलों पर कड़ी निगरानी रखने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा, ऐसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को जागरूक किया जा रहा है ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके। एनडीएमए द्वारा तैयार की गई सूची में ग्लेशियल झीलों को खतरे के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है।
श्रेणी-1: ये झीलें सबसे अधिक जोखिम वाली मानी जाती हैं। सिक्किम में एक श्रेणी-1 झील पाई गई है।
श्रेणी-2: इसमें 16 झीलें शामिल हैं, जिनमें से 11 सिक्किम में और 3 हिमाचल प्रदेश में हैं।
श्रेणी-3: इस श्रेणी में 69 झीलें आती हैं, जिनमें से 27 सिक्किम, 12 जम्मू-कश्मीर और 11 लद्दाख में स्थित हैं।
श्रेणी-4: ये झीलें अपेक्षाकृत कम जोखिम वाली मानी जाती हैं। सिक्किम में 11 श्रेणी-4 झीलें हैं।
सरकार ने ग्लेशियरों के पिघलने की निगरानी के लिए एडवांस्ड तकनीक जैसे सैटेलाइट इमेजिंग, ड्रोन सर्विलांस और मौसम पूर्वानुमान के जरिए स्थिति पर नजर रखने की योजना बनाई है। इसके अलावा, हाइड्रोमेट्रिक उपकरणों के जरिए झीलों के जलस्तर में बदलाव का समय रहते पता लगाने के लिए सेंसर भी लगाए जा रहे हैं। ग्लोफ जैसी आपदाओं से बचने के लिए सरकार ने स्थानीय प्रशासन और एनडीएमए के सहयोग से आपदा प्रबंधन केंद्र भी स्थापित किए हैं, जहां स्थानीय लोगों को आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
सिक्किम की तबाही ने पूरे हिमालय क्षेत्र के लोगों और सरकार को झकझोर कर रख दिया। अब सरकार और स्थानीय प्रशासन का पूरा ध्यान संवेदनशील क्षेत्रों में वैज्ञानिक रूप से तैयारियों पर है। यह अभियान न केवल हिमालयी राज्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि पनबिजली परियोजनाओं और अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा में भी सहायक होगा।