अरुणाचल की चोटी पर रखा दलाई लामा का नाम, चीन ने किया विरोध, जानें पूरा मामला
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में एक पर्वत चोटी का नाम दलाई लामा के नाम पर रखे जाने पर चीन को मिर्ची लग गई है। भारतीय पर्वतारोहण दल ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में एक अनाम चोटी का नाम छठे दलाई लामा के नाम पर रखा। इस बात को लेकर चीन गुस्सा गया है। उसने इसे 'चीनी क्षेत्र' में एक अवैध ऑपरेशन करार दिया।
अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में एक अनाम पर्वत चोटी का नाम छठे दलाई लामा के नाम पर रखे जाने पर चीन ने गहरी नाराजगी जताई है। भारतीय पर्वतारोहण दल द्वारा हाल ही में इस चोटी का नाम 'त्सांगयांग ग्यात्सो चोटी' रखने के बाद से चीन की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई है। दलाई लामा, त्सांगयांग ग्यात्सो, जो 17वीं-18वीं शताब्दी में तवांग में पैदा हुए थे, उन्हें सम्मानित करने के लिए भारत ने यह कदम उठाया है। लेकिन चीन ने इसे ‘चीनी क्षेत्र’ में एक अवैध कदम करार दिया है। चीन और भारत के बीच सीमा विवाद को लेकर पहले से तनाव बना हुआ है, ऐसे में इस घटना ने दोनों देशों के बीच फिर से एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
चीन का विरोध और उसका दावा
चीन ने इस फैसले को अवैध बताते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे वह 'जांगनान' कहता है वह चीन का हिस्सा है। बीजिंग ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश पर अपने पुराने दावों को फिर से दोहराया और भारतीय पर्वतारोहियों के इस अभियान की निंदा की। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने गुरुवार को बयान जारी करते हुए कहा, “भारत द्वारा तथाकथित 'अरुणाचल प्रदेश' की स्थापना करना अवैध है, और वहां इस तरह की गतिविधियां संचालित करना पूरी तरह से निरर्थक है।” चीन के इस विरोध के बावजूद भारत हमेशा अरुणाचल प्रदेश को अपना अभिन्न हिस्सा मानता रहा है। तवांग, जहां छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था, भारत के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, दलाई लामा का तवांग से जुड़ा होना एक महत्वपूर्ण कारण है, जिससे भारत इस क्षेत्र में अपने सांस्कृतिक अधिकारों की पुष्टि करता है।
भारतीय पर्वतारोहण दल का साहसिक अभियान
भारतीय पर्वतारोहण दल, जिसमें 15 पर्वतारोही शामिल थे, जिन्होंने राष्ट्रीय पर्वतारोहण और साहसिक खेल संस्थान (NIMAS) के तहत 6,383 मीटर ऊंची इस अनाम चोटी पर विजय प्राप्त की। इस साहसिक अभियान की अगुवाई कर्नल रणवीर सिंह जामवाल ने की। उनकी टीम ने 15 दिनों की कठिन यात्रा के बाद इस चोटी पर विजय हासिल की।
यह चोटी तकनीकी रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण थी, जहां बर्फ की विशाल दीवारें, खतरनाक दरारें और दो किलोमीटर लंबा ग्लेशियर उनके सामने सबसे बड़ी बाधा थे। चोटी का नाम तवांग में जन्मे छठे दलाई लामा त्सांगयांग ग्यात्सो के सम्मान में रखा गया है, जो अपने समय में मोनपा समुदाय के लिए बुद्धिमत्ता और योगदान के लिए मशहूर थे। कर्नल रणवीर सिंह जामवाल ने इस अभियान को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद कहा, “छठे दलाई लामा के नाम पर इस चोटी का नाम रखना हमारे लिए एक सम्मान की बात है। यह उनकी बुद्धिमत्ता और अरुणाचल प्रदेश के सांस्कृतिक महत्व को स्वीकार करने का प्रतीक है।”
भारत का रुख और चीन से तनाव
भारत के रक्षा मंत्रालय ने भी इस अभियान को एक सकारात्मक कदम बताया और इसे छठे दलाई लामा की बुद्धिमत्ता और उनकी गहरी आध्यात्मिकता के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में देख रहा है। भारतीय सेना और पर्वतारोहण दल के कई सदस्य इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह कदम अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावों का सीधा जवाब है। भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। चीन अरुणाचल प्रदेश को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, जबकि भारत इसे अपने उत्तर-पूर्वी राज्य का अभिन्न अंग मानता है। ऐसे में छठे दलाई लामा के नाम पर चोटी का नामकरण भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक स्थिति को मजबूत करता है।
चीन को क्यों लगी मिर्ची?
चीन की नाराजगी का मुख्य कारण यह है कि तवांग और अरुणाचल प्रदेश में बढ़ती भारतीय गतिविधियों से उसके क्षेत्रीय दावों पर खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है। चीन लंबे समय से तवांग पर अपना दावा करता आ रहा है, और दलाई लामा के नाम पर चोटी का नामकरण चीन के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। चीन का यह मानना है कि इस तरह की घटनाएं उसके क्षेत्रीय हितों के खिलाफ हैं, और वह इसे एक चुनौती के रूप में देखता है।
हालांकि, भारत के लिए यह कदम एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मान्यता का प्रतीक है। तवांग और अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना की लगातार उपस्थिति और पर्वतारोहण अभियानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत अपने क्षेत्रीय दावों को लेकर गंभीर है।