Nitin Gadkari ने निर्मला सीतारमण को लिखी चिट्ठी, बीजेपी में बवाल हो गया
केंद्रीय सड़ंक एवं परिवहन मंत्री नितिन गड़करी (Nitin Gadkari) या कहे की हाइवे मैन ऑफ इंडिया अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते है। बीजेपी के बड़े नेताओं में से एक है, चीन को पछाड़कर दुनिया का दुसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क बनाने में कामयाबी हासिल करने वाले और अगले पांच सालों में अमेरिका को भी पीछे छोडने का दम भरने वाले नितिन गड़करी ने फिलहाल अपनी ही सरकार से सवाल पूछ लिया है।क्योंकि नितिन गडकरी का कांसेप्ट कलीयर है कि आम जनता को सारी मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए, और बजट में मिलनी चाहिए।
गडकरी की चिट्ठी से बीजेपी में बवाल
लेकिन शायद इस बार के बजट में वो हो नहीं पाया ऐसा आरोप अब तक विपक्ष लगा रहा था।और अब तो नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चिट्ठी लिख दी है।नितिन गडकरी की चिट्ठी ने बीजेपी में खलबली का माहौल पैदा कर दिया है।दरअसल नितिन गडकरी ने लाइफ एंड मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम पर लगने वाली 18 फीसदी जीएसटी हटाने की मांग की है।इसी मांग को लेकर गडकरी ने वित्त मंत्री को पत्र लिखा है।और इसके लिए गड़करी को नागपुर मंडल जीवन बीमा निगम कर्मचारी संघ ने ज्ञापन सौंपा था।अब गडकरी के पास कोई समस्या आए और वो उसके समाधान के लिए काम ना करें ऐसा शायद नहीं हो सकता।
नितिन गडकरी ने वित्त मंत्री को लिखे पत्र में कहा कि आपसे अनुरोध है कि लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर जीएसटी वापस लेने के सुझाव पर प्राथमिकता के आधार पर विचार करें, क्योंकि ये सीनियर सिटिजन के लिए बोझिल हो जाता है।इसी तरह, हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी इस सेगमेंट के विकास के लिए एक बाधा साबित हो रहा है जो सामाजिक रूप से आवश्यक है।जीवन बीमा पर जीएसटी लगाना जीवन की अनिश्चितताओं पर टैक्स लगाने के समान है।युनियन का मानना है कि जो व्यक्ति परिवार को कुछ सुरक्षा देने के जीवन की अनिश्चितताओं के जोखिम को कवर करता है, उसे उस जोखिम के खिलाफ कवर खरीदने में प्रीमियम पर टैक्स नही लगाया जाना चाहिए।ये जीवन बीमा के जरिए बचत के अंतर उपचार, स्वास्थय बीमा प्रीमीयम के लिए आयकर कटौती को फिर से शुरु करने और सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों के कंसॉलिडेशन की और भी इशारा करता है।
मतलब आसान भाषा में अगर समझे तो जो आम आदमी लाइफ कवर खरीदता है उसपर 18% जीएसटी लगता है।और गडकरी की मांग है उसे खत्म कर दिया जाए।जिससे आम इंसान भी लाइफ कवर खरीद सकें और अपने परिवार को सुरक्षित कर सकें।हालांकि ऐसा नहीं है कि ये मांग पहली बार वित्त मंत्री के सामने रखी गई हो, इससे पहले जून में भी वित्त मंत्री से लाइफ कवर पर लगने वाली जीएसटी को लेकर विचार करने की मांग उठ चुकी है।इंश्योरेंस एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सरकार से व्यक्तिगत मेडिकल पॉलिसीज पर जीएसटी को घटाकर 18 % से 5% करने की मांग की थी।संस्था ने बताया था कि पिछले पांच साल में हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम लगभग दोगुना हो चुका है।
तो यहां सवाल ये भी है कि अगर वित्त मंत्री का ध्यान बजट से पहले ही हेल्थ इंश्योरेंस पर दिलाया गया था, तब भी क्यों उन्होने इस बात का ध्यान नहीं रखा।क्यों एक बार फिर से इस और ध्यान केंद्रित करवाना पड़ा।खैर अगर सरकार देर आए दुरुस्त आए की नीती पर भी काम करती है तो भी ठीक है।नहीं तो ऐसा देखा गया है कि जब तक काम पूरा नहीं होता तब तक गडकरी उसे छोड़ते नहीं है।और साथ ही सरकार को इस मुद्दे पर बेहद संजीदगी से इसलिए भी ध्यान देने की जरुरत है क्योंकि मुद्दा सरकार के ही मंत्री ने उठाया है, सरकार के ही खिलाफ उठाया है तो विपक्ष इस मुद्दे को हाथोहाथ लेगा, सीधा मोदी को घेरने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा।वैसे भी राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर हमलावर है।ऐसे में विपक्ष को एक और मुद्दा देना बीजेपी के लिए घाटक साबित हो सकता है।