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लोकसभा में पेश 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल, विपक्ष ने क्यों जताया विरोध?

'वन नेशन, वन इलेक्शन' विधेयक संसद में पेश होते ही देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। इस बिल का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के खर्च और प्रशासनिक रुकावटों को खत्म किया जा सके। जहां सरकार इसे लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे संविधान और संघीय ढांचे पर हमला मान रहा है।
लोकसभा में पेश 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल, विपक्ष ने क्यों जताया विरोध?
भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नई दिशा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को 17 दिसंबर 2024 को लोकसभा में पेश किया। यह विधेयक संविधान में संशोधन के जरिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसे केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा संसद में पेश किया गया। हालाँकि, जैसे ही यह विधेयक पेश हुआ, विपक्ष ने इसके खिलाफ तीखा विरोध जताते हुए इसे संविधान के बुनियादी ढांचे पर हमला बताया।
क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मकसद?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुख्य उद्देश्य भारत में चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाना, बार-बार होने वाले चुनावों से बचना और इससे जुड़े भारी खर्च को कम करना है। केंद्र सरकार का दावा है कि इस मॉडल के जरिए प्रशासनिक कामकाज पर पड़ने वाले चुनावी प्रभाव को रोका जा सकेगा। साथ ही, बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों में जो रुकावट आती है, उसे भी टाला जा सकेगा। 1952 से 1967 तक भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते थे। लेकिन 1967 के बाद राज्य सरकारों के कार्यकाल में अनियमितता और विधानसभा भंग होने के चलते यह व्यवस्था टूट गई। अब इसे फिर से बहाल करने का प्रयास किया जा रहा है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए संविधान में बड़े बदलाव की जरूरत है। इसके लिए निम्नलिखित अनुच्छेदों में संशोधन प्रस्तावित हैं:

अनुच्छेद 83 और 172: लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल से जुड़े प्रावधान।
अनुच्छेद 85 और 174: संसद और विधानसभाओं की बैठक बुलाने के नियम।
अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन के प्रावधान।

इन बदलावों के जरिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को संतुलित करना होगा, ताकि एक साथ चुनाव संभव हो सके।
विपक्ष का विरोध, क्या हैं तर्क?
जैसे ही यह विधेयक संसद में पेश किया गया, विपक्षी दलों ने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), समाजवादी पार्टी (SP), और आजाद समाज पार्टी समेत कई दलों ने इस पर आपत्ति जताई। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इसे संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह केंद्र और राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन है। वहीं, टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी ने इसे "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं" से प्रेरित बताया। विपक्ष का तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने से राज्यों की स्वायत्तता खत्म होगी। इसके अलावा, चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े किए गए हैं।

हालांकि सरकार इस विधेयक को ऐतिहासिक कदम मान रही है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा।
ईवीएम और वीवीपैट की कमी: चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए करोड़ों ईवीएम और वीवीपैट की जरूरत होगी। इन्हें तैयार करने और जांचने में लंबा समय लगेगा।
संविधान संशोधन: विधेयक को पारित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। साथ ही, 15 से अधिक राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी लेना भी आवश्यक है।
वोटर जागरूकता: अलग-अलग राज्यों में चुनावी मुद्दे और प्राथमिकताएँ अलग होती हैं। एक साथ चुनाव होने से स्थानीय मुद्दे पीछे छूट सकते हैं।

क्या हैं फायदे?

सरकार और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के समर्थकों का कहना है कि यह विधेयक लोकतंत्र को मजबूत करेगा।
बार-बार होने वाले चुनावों पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। एक साथ चुनाव से यह खर्च बचेगा।
चुनावों के चलते लागू होने वाली आचार संहिता के कारण सरकारी कामकाज प्रभावित होता है। इससे बचा जा सकेगा।
एक साथ चुनाव होने से जनता को बार-बार मतदान करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना है।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को कानून बनने और लागू होने में लंबा समय लग सकता है। चुनाव आयोग के अनुसार, सभी तैयारियाँ पूरी करने और संसाधन जुटाने में कम से कम 10 साल का समय लगेगा। साथ ही, इस पर आम सहमति बनाना भी बड़ी चुनौती होगी। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ भारत के चुनावी परिदृश्य को बदलने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है। लेकिन इसके लिए व्यापक तैयारी, संवैधानिक संशोधन और राजनीतिक सहमति की जरूरत होगी।
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