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Proba-3 Mission: ISRO ने रचा इतिहास! प्रोबा-3 की हुई सफल लॉन्चिग, जाने क्या है इसरो के इस रॉकेट की खासियत

5 दिसंबर शाम 4 बजकर 4 मिनट पर इसरो ने प्रोबा-3 की सफल लॉन्चिंग कर दी है। इसकी लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से एक से PSLV-XL रॉकेट से हुई। इसमें दो रॉकेट है। एक का नाम ऑक्लटर और दूसरा कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट है।
Proba-3 Mission: ISRO ने रचा इतिहास! प्रोबा-3 की हुई सफल लॉन्चिग, जाने क्या है इसरो के इस रॉकेट की खासियत
इसरो ने एक बार फिर से पूरी दुनिया में भारत का झंडा लहराया है।इसरो के रॉकेट सैटेलाइट्स प्रोबा 3 को 5 दिसंबर शाम 4 बजकर 4 मिनट पर लॉन्च कर दिया गया है। इसरो के मुताबिक 26 मिनट की उड़ान के बाद अंदर इसरो का रॉकेट सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में स्थापित कर देगा। बता दें कि इस रॉकेट की लॉन्चिग 4 दिसंबर को ही होनी थी। लेकिन किसी कारणवश इसे अगले दिन यानी 5 दिसंबर के लिए टाल दिया गया था। 

क्या है इसरो का प्रोबा-3? 


बता दें कि प्रोबा-3 दुनिया का पहला प्रेसिशन फॉर्मेशन फ्लाइंग सैटेलाइट है। इसका कुल वजन 550 किलोग्राम है। इसमें एक नहीं बल्कि दो सैटेलाइट है। पहले सैटेलाइट का नाम कोरोना स्पेसक्राफ्ट और दूसरे का नाम  ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट है। इस मिशन में इसरो PSLV-C59 रॉकेट को उड़ा रहा है। इनमें C59 एक रॉकेट कोड है। जानकारी के लिए बता दें कि यह PSLV की 61वीं उड़ान है। वहीं XL वैरियंट की यह 26वीं उड़ान थी। इस रॉकेट की ऊंचाई 145.99 मीटर है। यह 4 स्टेज का है। इसकी लॉन्चिंग के समय वजन 320 किलोग्राम का हो जाता है। यह रॉकेट 
प्रोबा-3 सैटेलाइट को 600 X 60,530 किलोमीटर वाली अंडाकार ऑर्बिट में डालेगा। 

क्या है कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट की खासियत? 


कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट सैटेलाइट 310 किलोग्राम वजनी है। यह सैटेलाइट सूरज की तरफ अपना मुंह करके खड़ा रहेगा। यह लेजर और विजुअल के हिसाब से अपना टारगेट तय करेगा। यह ASPIICS यानी 
310 किलोग्राम वजनी है। इसमें ASPIICS यानी एसोसिएशन ऑफ स्पेसक्राफ्ट फॉर पोलैरीमेट्रिक और इमेंजिंग इन्वेस्टिंगेशन ऑफ कोरोना ऑफ द सन लगा है। यह सैटेलाइट सूरज के अंदरूनी और बाहरी कोरोना के बीच की गैप स्टडी करेगा। जैसे ग्रहण में चंद्रमा सूरज के सामने आता है। ठीक उसी तरह यह भी सामने आएगा। 

ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट की क्या है खासियत? 


आपको बता दें कि ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट का वजन 240 किलोग्राम है। जिस तरीके से ग्रहण के समय सूरज के सामने चंद्रमा और  पीछे धरती रहती है। ठीक उसी प्रकार यह स्पेसक्राफ्ट भी कोरोनाग्राफ के पीछे ही रहेगा। इसके अंदर DARA लगा होगा। जो कोरोना से मिलने वाले डेटा का स्टडी करेगा। DARA का मतलब (डिजिटल एब्सोल्यूट रेडियोमीटर साइंस एक्सपेरीमेंट) है। 

दोनों सैटेलाइट 150 मीटर की दूरी पर धरती का चक्कर लगाएंगे 


ऑक्लटर और कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट दोनों एक साथ एक ही लाइन में 150 मीटर की दूरी पर धरती का चक्कर लगाएंगे। इस दौरान दोनों सूरज के कोरोना की स्टडी करेंगे। आपको बता दें कि यहां दो तरह के कोरोना होते हैं। जिनकी स्टडी कई सैटेलाइट्स कर रहे हैं। इनमें हाई कोरोना और लो कोरोना शामिल है। इसके अलावा यह सोलर हवाओं और कोरोनल मास इजेक्शन की भी स्टडी करेगा।  
इसकी मदद से वैज्ञानिक अंतरिक्ष के मौसम और सौर हवाओं पर रिसर्च कर सकेंगे। इससे   यह पता चल सकेगा कि आखिर सूरज का डायनेमिक्स क्या है। इसकी वजह से हमारी धरती पर क्या असर पड़ेगा।
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