वक्फ संशोधन विधेयक पर मचा घमासान, विपक्ष क्यों कर रहा विरोध?
संसद में पेश किए गए वक्फ संशोधन विधेयक पर राजनीतिक हलकों में जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है। इस बिल का शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने जमकर विरोध किया है। इस विधेयक में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है, जिसे विपक्ष संविधान के खिलाफ बता रहा है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर संसद में घमासान मचा हुआ है। संसद की संयुक्त समिति ने बहुमत से इस विधेयक के मसौदे को स्वीकार कर लिया है, लेकिन विपक्षी दलों में इसे लेकर गहरी नाराजगी देखी जा रही है। खासकर उद्धव ठाकरे की पार्टी, शिवसेना (यूबीटी), ने इस बिल पर असहमति जताई है और इसे राजनीतिक मकसद से लाया गया कदम बताया है।
विधेयक पर शिवसेना का विरोध क्यों?
शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता अरविंद सावंत ने इस बिल को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताते हुए अपनी असहमति दर्ज कराई है। उन्होंने कहा, "यह विधेयक न्याय के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ उठाने के लिए लाया गया है। इसमें संविधान की मूल भावनाओं का सम्मान नहीं किया गया है।" सबसे विवादित बिंदु यह है कि इस बिल में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। इस पर आपत्ति जताते हुए सावंत ने कहा, "अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम होंगे, तो इससे हिंदू मंदिरों की व्यवस्था पर भी असर पड़ेगा। इससे भविष्य में यह मांग उठ सकती है कि हिंदू मंदिरों में भी गैर-हिंदुओं को शामिल किया जाए। यह हमारे धार्मिक अधिकारों पर सीधा हमला है।"
VIDEO | As Waqf Committee is set to adopt its recommendations, Shiv Sena (UBT) leader Arvind Sawant (@AGSawant) says, "I have given the dissent note. Misconception is being spread, the Bill was brought for political objective, not for justice, even the Constitution is not… pic.twitter.com/PNUNPmzAHU
— Press Trust of India (@PTI_News) January 29, 2025
विपक्ष और सरकार के बीच बढ़ता टकराव
वक्फ संशोधन बिल पर संसद में बहस के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। संसद की संयुक्त समिति ने इस विधेयक को सोमवार (27 जनवरी) को मंजूरी दी थी, जिसमें बीजेपी के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को शामिल किया गया, जबकि विपक्षी दलों के संशोधनों को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया। अब यह विधेयक लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपा जाएगा, जिसके बाद इसे संसद के पटल पर रखा जाएगा।
क्या है वक्फ संशोधन विधेयक?
वक्फ अधिनियम 1995 में किए गए इस संशोधन में वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता लाने का प्रस्ताव किया गया है। सरकार का दावा है कि इस विधेयक से वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रुकेगा और इनका बेहतर प्रशासन संभव हो सकेगा। लेकिन विपक्ष इसे धार्मिक और सामाजिक संतुलन बिगाड़ने वाला कदम मान रहा है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस विधेयक से वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में निश्चित रूप से बदलाव आएगा, लेकिन इसे लागू करने से पहले व्यापक बहस होनी चाहिए। संविधान विशेषज्ञ प्रो. अरुण मिश्रा का कहना है, "अगर सरकार वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना चाहती है, तो उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हिंदू धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता बनी रहे। अन्यथा, यह विवाद आगे बढ़ सकता है।"
राजनीतिक दलों की रणनीति
विपक्ष इस विधेयक को लेकर एकजुट होता दिख रहा है। कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इस विधेयक को धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बताया है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "यह बिल धार्मिक संस्थाओं में सरकार के दखल को बढ़ावा देगा और इससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है।" दूसरी ओर, भाजपा का कहना है कि यह विधेयक पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए लाया गया है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, "विपक्ष केवल राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोकना है।"
अब यह विधेयक लोकसभा में पेश किया जाएगा, जहां इसे पास कराने के लिए भाजपा को पूर्ण बहुमत की जरूरत होगी। विपक्ष इसे रोकने के लिए पूरी ताकत लगा सकता है, जिससे संसद में तीखी बहस और हंगामा होने की संभावना है।
वक्फ संशोधन विधेयक केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह भारत की राजनीति और धर्मनिरपेक्षता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। भाजपा इसे पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार के रूप में पेश कर रही है, जबकि विपक्ष इसे धार्मिक मामलों में सरकार के दखल के रूप में देख रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इस पर क्या फैसला होता है और यह देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को किस दिशा में ले जाएगा।