वक्फ बोर्ड बिल पर मचा बवाल: JPC के पास लाखों पत्र, विदेशी ताकतों की संलिप्तता की आशंका
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर बनाए, पारदर्शिता बढ़ाने के लिए वक्फ बोर्ड बिल पर सुझाव मांगे गए थे, जिसके बाद अब तक वक्त समिति को एक करोड़ पच्चीस लाख पत्र मिले हैं. इसके पीछे उन्हें एक परेशान करने वाला ढर्रा नजर आ रहा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
वक्फ बोर्ड बिल को लेकर सुझाव मांगे गए थे। इन सुझावों के जरिए सरकार एक ऐसा बिल बनाना चाहती थी, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर बनाए, पारदर्शिता बढ़ाए, और संभावित विवादों को कम करे। लेकिन वक्फ बोर्ड बिल को लेकर संसद की संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee - JPC) को लाखों पत्र मिलने से मामला गरमा गया है।
दरअसल समिति के पास अब तक करीब एक करोड़ पच्चीस लाख पत्र जमा हो चुके हैं। ये पत्र JPC द्वारा वक्फ बोर्ड बिल पर जनता से मांगे गए सुझावों के जवाब में भेजे गए है। इतने बड़े पैमाने पर पत्र मिलना सामान्य घटना नहीं है, और इसे लेकर समिति के सदस्य निशिकांत दुबे ने गहरी चिंता व्यक्त की है। दुबे ने समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को लिखे पत्र में कहा है कि इस तरह की संख्या में पत्रों का आना संदेहास्पद है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
आखिर कहां से आ रहे हैं ये पत्र?
अब सवाल यह है कि आखिर ये पत्र किसने भेजे हैं और कहां से आ रहे हैं? JPC का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में पत्रों को देखकर यह कहना मुश्किल है कि ये केवल भारत से ही आए हैं। हो सकता है कि कुछ पत्र विदेशों से भी भेजे गए हों, जो किसी संगठित अभियान का हिस्सा हो सकते हैं। दुबे ने पत्रों की इस बाढ़ के पीछे विदेशी ताकतों और इस्लामी कट्टरपंथियों की संभावित भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि कुछ संगठनों और कट्टरपंथियों ने जानबूझकर इस मुद्दे को भड़काने और वक्फ बोर्ड बिल पर जनता की राय को प्रभावित करने के लिए यह अभियान चलाया हो सकता है।
भारत, लंबे समय से आतंकी गतिविधियों और विदेशी हस्तक्षेप का सामना कर रहा है। यह आशंका है कि कुछ संगठनों ने जानबूझकर इतने पत्र भेजे ताकि वक्फ बिल पर चल रही चर्चाओं को प्रभावित किया जा सके और संसदीय प्रक्रिया को बाधित किया जा सके। इसके पीछे का मकसद भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करना और समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण करना हो सकता है।
विदेशी ताकतों और इस्लामी कट्टरपंथियों की संलिप्तता?
इन पत्रों के संदर्भ में एक और चिंताजनक बात सामने आई है, वह है विवादित इस्लामी प्रचारक जाकिर नाइक और उसके नेटवर्क की भूमिका। दुबे ने संकेत दिया है कि इतनी बड़ी संख्या में मिले पत्रों के पीछे जाकिर नाइक और उसके विदेशी नेटवर्क का हाथ हो सकता है। जाकिर नाइक, जिस पर भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगे है। इसके अलावा, बांग्लादेश के जमात-ए-इस्लामी और अफगानिस्तान के तालिबान जैसे संगठनों का भी नाम सामने आ रहा है। ये संगठन, जिन्हें कट्टरपंथी और आतंकवाद समर्थक माना जाता है, भारत को अस्थिर करने और समाज में विभाजन की स्थिति पैदा करने के लिए काम कर रहे हैं। यह आशंका है कि इन संगठनों ने वक्फ बोर्ड बिल पर भ्रामक प्रचार किया हो और इस बहाने भारत की राजनीतिक स्थिरता पर हमला करने की योजना बनाई हो।
इसके साथ ही, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और चीन की भूमिका भी इस मामले में संदिग्ध मानी जा रही है। दुबे ने संकेत दिया है कि यह संभव है कि पाकिस्तान और चीन के चरमपंथी संगठनों ने इस मुद्दे को भड़काने के लिए इन पत्रों को भेजने का प्रयास किया हो। भारत में लंबे समय से आईएसआई और चीन जैसी विदेशी ताकतें अस्थिरता फैलाने के प्रयास कर रही हैं, और यह घटना भी उसी सिलसिले की कड़ी हो सकती है।
JPC के सदस्य दुबे ने यह स्पष्ट किया है कि समिति को इस मामले में पूरी स्वतंत्रता और निष्पक्षता से काम करने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि अगर विदेशी ताकतें संसदीय प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास कर रही हैं, तो यह भारत के लोकतंत्र पर सीधा हमला है। संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत, संसद की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना आवश्यक है, जिसमें समितियों का कामकाज भी शामिल है। दुबे ने इस मामले की जांच कराने के लिए गृह मंत्रालय से आग्रह किया है। उन्होंने मांग की है कि गृह मंत्रालय इस मामले की गहराई से जांच करे, ताकि पता लगाया जा सके कि इन पत्रों के पीछे कौन से संगठन या व्यक्ति शामिल हैं। उनका कहना है कि जांच के नतीजे सार्वजनिक किए जाने चाहिए, ताकि वक्फ बोर्ड बिल पर होने वाली चर्चा की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।