संभल हिंसा: साजिश या हादसा? रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में होगी न्यायिक जांच, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
संभल में हालिया हिंसा ने पूरे देश को झकझोर दिया। योगी सरकार ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है, जिसमें रिटायर्ड जज, पूर्व आईएएस और आईपीएस शामिल हैं। आयोग यह जांच करेगा कि यह घटना अचानक हुई या साजिश के तहत रची गई थी।
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हालिया हिंसा ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। इस घटना ने राज्य सरकार, प्रशासन, और सामाजिक संगठनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह हिंसा एक साजिश का हिस्सा थी, या महज एक आकस्मिक घटना? योगी सरकार ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है, जो दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
क्या है संभल हिंसा?
संभल में हिंसा तब भड़की जब एक मामूली विवाद ने सांप्रदायिक रूप ले लिया। कुछ स्थानीय संगठनों ने इस विवाद को साजिश करार दिया, जबकि पुलिस प्रशासन ने इसे अचानक हुई घटना बताया। हिंसा के दौरान कई लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। इस घटना ने स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उत्तर प्रदेश गृह विभाग ने इस मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है। इस आयोग में पूर्व आईएएस अधिकारी अमित मोहन प्रसाद और पूर्व आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार जैन को भी शामिल किया गया है। आयोग की जिम्मेदारी होगी घटना के पीछे की सच्चाई का पता लगाना, यह जांचना कि क्या यह घटना किसी साजिश का नतीजा थी। पुलिस और जिला प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना, और साथ ही दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई करना।
घटना के बाद सरकार ने पूरे संभल जिले में धारा 144 लागू कर दी है। शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान ड्रोन कैमरों से निगरानी की व्यवस्था की गई। पुलिस को हर गतिविधि पर कड़ी नजर रखने का निर्देश दिया गया है। सरकार का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का हस्तक्षेप
आपको बता दें कि घटना के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये की सहायता देने का ऐलान किया। संगठन के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने मृतकों के परिजनों से मुलाकात की और पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि प्रशासन निर्दोष लोगों को गिरफ्तार कर जबरन बयान बदलवा रहा है। मदनी ने यह भी कहा कि जमीयत उलेमा सभी घायलों के इलाज का खर्च वहन करेगा और कानूनी लड़ाई में पीड़ितों का साथ देगा। उन्होंने इस घटना को "प्रशासनिक अमानवीयता" करार दिया और इसे न्यायिक स्तर पर चुनौती देने का ऐलान किया।
राजनीतिक और सामाजिक पहलू
संभल की हिंसा ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों ने इस घटना को लेकर सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस, सपा, और बसपा ने इसे प्रशासनिक विफलता करार दिया है। वहीं, बीजेपी सरकार ने दावा किया है कि इस घटना में बाहरी ताकतों का हाथ हो सकता है, जो राज्य की शांति भंग करना चाहती हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह साजिश थी, इस सवाल का जवाब फिलहाल स्पष्ट नहीं है। लेकिन हिंसा के पीछे के कारणों को लेकर कई दृष्टिकोण सामने आए हैं।
स्थानीय विवाद: कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यह घटना एक मामूली विवाद से शुरू हुई, जिसने सांप्रदायिक रूप ले लिया।
राजनीतिक साजिश: कुछ लोगों का मानना है कि यह घटना राजनीतिक उद्देश्य से कराई गई, ताकि चुनावी माहौल में गड़बड़ी पैदा हो।
प्रशासनिक लापरवाही: पुलिस की देरी और उचित कदम न उठाने की वजह से हिंसा ने तूल पकड़ लिया।
हालांकि जांच आयोग का गठन यह सुनिश्चित करता है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो और सच्चाई सामने आए। आयोग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट होगा कि हिंसा अचानक हुई या इसके पीछे कोई गहरी साजिश थी। संभल हिंसा ने न केवल प्रशासन और सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना कितना जरूरी है। न्यायिक जांच से उम्मीद की जा रही है कि यह घटना के पीछे के साजिशकर्ताओं को बेनकाब करेगी और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने का मार्ग प्रशस्त करेगी।