Waqf कानून के विरोध में चली थीं विरोध प्रदर्शन करने, पुलिस ने भेज दिया 10 लाख का नोटिस !

यूपी पुलिस पर दस लाख रुपये का नोटिस भेजने का आरोप लगा रहीं कांग्रेस नेता सैयद उजमा परवीन ने सोशल मीडिया पर लिखा:
"वक्फ बिल के खिलाफ बोलने पर पाबंदी। मुझे प्रशासन द्वारा नोटिस भेजी गई और जेल भेजने की धमकी दी गई। नोटिस में 10 लाख रुपये जुर्माना वसूलने की धमकी। मेरा कुसूर सिर्फ इतना है कि मैंने वक्फ अमेंडमेंट बिल और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई। मुझे नोटिस थमाया गया, वाह रे इंसाफ!"
वक्फ कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहीं कांग्रेस नेता उजमा परवीन को जैसे ही पुलिस ने दस लाख रुपये का नोटिस थमाया, वह इस कदर बौखला गईं कि सोशल मीडिया पर ही एक वीडियो जारी करते हुए पूछा:
"लोकतंत्र में क्या इतना अधिकार नहीं है कि इंसान अपनी आवाज उठा सके? क्या हम अपने हक के लिए लड़ भी नहीं सकते? क्या यहां राजशाही, तानाशाही चल रही है?"
सीएए विरोध के नाम पर सड़क घेरने वाली कांग्रेस नेता उजमा परवीन को लगा कि वक्फ बिल के विरोध के नाम पर एक बार फिर सड़क घेर सकती हैं, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने दस लाख रुपये का नोटिस भेज दिया और चेतावनी भी दे दी कि वक्फ बिल के विरोध के नाम पर सड़क घेरना बर्दाश्त नहीं होगा।
वैसे भी यूपी में कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों का अंजाम क्या होता है, यह बात सीएम योगी पहले ही समझा चुके हैं।
"जैसे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अफवाह फैलायी गई कि यह कानून मुसलमानों की नागरिकता छीन लेगा, लेकिन हकीकत यह है कि आज तक एक भी मुसलमान की नागरिकता नहीं छीनी गई। उसी तरह से अब वक्फ संशोधन कानून को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है कि यह कानून मोदी सरकार मुसलमानों के खिलाफ लाई है। और इस तरह की अफवाह फैलाने का काम भी कुछ नेता और मुस्लिम संगठनों के मौलाना ही कर रहे हैं। हालांकि आम मुसलमान इसका कोई विरोध नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि जिस तरह से सीएए का विरोध करने के लिए उन्हें गलत जानकारी दी गई, उसी तरह से अब वक्फ बिल के खिलाफ एजेंडा चलाया जा रहा है। लेकिन आम मुसलमान समझ गया है कि इस बिल से हमारा भले ही कोई फायदा न हो, पर वक्फ की संपत्तियां शायद कब्जा मुक्त हो जाएं।"
शायद यही वजह है कि 4 फरवरी को राज्यसभा से वक्फ बिल पास हुआ और 5 फरवरी को जुमे की नमाज थी, लेकिन इसके बावजूद मस्जिदों से बिल के विरोध करने की कोई आवाज नहीं आई। और कई जगह तो खुद मुसलमान मिठाई बांटते हुए भी नजर आए।
तो क्या इसका मतलब यह है कि मोदी सरकार की पहुंच मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने लगी है?