मणिपुर में बिगड़े हालात, 8 नई सुरक्षा कंपनियां पहुंचीं इंफाल, हालात काबू में लाने की कोशिश
मणिपुर, जो कभी अपनी सांस्कृतिक विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता था, अब हिंसा और अस्थिरता का प्रतीक बन चुका है। पिछले साल मई से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय विवादों ने राज्य को हिंसा की चपेट में ले लिया है। इस हिंसा में अब तक 220 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।
मणिपुर, जिसे कभी उत्तर-पूर्व भारत का शांतिपूर्ण राज्य माना जाता था, अब लगातार बढ़ती हिंसा और तनाव का केंद्र बन चुका है। जातीय और राजनीतिक विवादों के चलते राज्य में अस्थिरता गहराती जा रही है। पिछले साल मई से शुरू हुई हिंसा ने यहां की शांति को भंग कर दिया है। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब तक 220 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों परिवार बेघर हो गए हैं।
केंद्र सरकार ने राज्य में हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती को प्राथमिकता दी है। हाल ही में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की 50 नई कंपनियां तैनात करने का निर्णय लिया गया। इसके तहत बुधवार को आठ नई कंपनियां इंफाल पहुंचीं। इनमें से चार कंपनियां सीआरपीएफ की हैं, जिनमें एक महिला बटालियन भी शामिल है। इन्हें संवेदनशील और सीमांत इलाकों में तैनात किया गया है। पिछले सप्ताह ही यहां 11 अन्य कंपनियां भी तैनात की गई थीं। लेकिन राज्य के कई हिस्सों में स्थिति इतनी गंभीर है कि यहां अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। यही नहीं इंफाल घाटी में सुरक्षा कारणों से स्कूल और कॉलेज 23 नवंबर तक बंद कर दिए गए हैं। हिंसा के बढ़ते मामलों के चलते प्रशासन ने घाटी के पांच जिलों- इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, बिष्णुपुर और काकचिंग में 16 नवंबर से ही शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया है।
हिंसा का प्रमुख कारण जातीय विवाद
मणिपुर की हिंसा का मुख्य कारण जातीय विवाद है। मैतेई समुदाय, जो इंफाल घाटी में बहुसंख्यक है, और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समूहों के बीच पिछले साल मई से हिंसा शुरू हुई। यह विवाद तब और बढ़ गया जब जिरीबाम जिले में राहत शिविर से मैतेई समुदाय की तीन महिलाओं और तीन बच्चों के लापता होने की खबर आई। बाद में इन छह लोगों के शव बरामद हुए, जिससे तनाव और अधिक बढ़ गया।
राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा का आलम यह है कि भीड़ ने हाल ही में कांग्रेस और भाजपा कार्यालयों में तोड़फोड़ की। भाजपा के तीन विधायकों और एक कांग्रेस विधायक के घरों को आग के हवाले कर दिया गया। इसके अलावा, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के पैतृक आवास पर भी हमला करने का प्रयास किया गया, जिसे सुरक्षाबलों ने विफल कर दिया।
क्या है मणिपुर हिंसा का समाधान?
राज्य में शांति बहाल करना सरकार और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए जरूरी है कि जातीय विवादों का स्थायी समाधान निकाला जाए। हिंसा प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों की प्रभावी तैनाती और सख्त कदम उठाने के साथ-साथ जनसामान्य के बीच विश्वास बहाल करना अनिवार्य है। मणिपुर में बढ़ती हिंसा केवल राज्य की समस्या नहीं है, यह पूरे देश के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जातीय विवाद और राजनीतिक अस्थिरता ने इस खूबसूरत राज्य को अशांति और भय का प्रतीक बना दिया है। जब तक प्रशासन, सुरक्षाबल और स्थानीय समुदाय एकजुट होकर समाधान की दिशा में नहीं बढ़ते, तब तक इस संकट से उबरना मुश्किल है।
यह समय है जब मणिपुर को बाहरी और आंतरिक दोनों स्तरों पर समर्थन की आवश्यकता है। शांति की बहाली न केवल मणिपुर के लिए, बल्कि पूरे देश की एकता और अखंडता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।