सुप्रीम कोर्ट का बाल विवाह पर बड़ा फैसला, कहा-बाल विवाह कानून पर कोई समझौता नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2024 को अपने फैसले में कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को पर्सनल लॉ से प्रभावित नहीं किया जा सकता। यह फैसला बाल विवाह रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें कोर्ट ने नाबालिगों के अधिकारों की सुरक्षा और बाल विवाह कानून के सख्त क्रियान्वयन पर जोर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2024 को बाल विवाह पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006) को पर्सनल लॉ के माध्यम से प्रभावित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों की शादी उनकी स्वतंत्र इच्छा के खिलाफ होती है और यह उनके जीवनसाथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन करती है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम और इसका महत्व
भारत में बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक समस्या रही है, जिसका प्रभाव विशेष रूप से नाबालिग लड़कियों पर पड़ता है। 2006 का बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1929 के पुराने कानून की जगह लेकर, देश में बाल विवाह को समाप्त करने का प्रयास करता है। इस अधिनियम के तहत, 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी अवैध मानी जाती है। यह कानून समाज के हर वर्ग में एक समान रूप से लागू होता है, चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म या जाति से संबंध रखता हो।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने कहा कि बाल विवाह कानून के क्रियान्वयन को पर्सनल लॉ के तहत प्रभावित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि कम उम्र में शादी न केवल नाबालिगों की स्वतंत्रता का हनन करती है, बल्कि उन्हें अपने जीवनसाथी चुनने के अधिकार से भी वंचित कर देती है।
पर्सनल लॉ बनाम बाल विवाह कानून
भारत में विभिन्न समुदायों के पर्सनल लॉ के तहत कई मान्यताएं और परंपराएं चलती हैं, जिनमें बाल विवाह को कुछ हद तक स्वीकार्यता मिलती रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार की शादियां नाबालिगों के अधिकारों के विपरीत होती हैं, और ऐसे मामलों में कानून को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि पर्सनल लॉ से जुड़ा यह मुद्दा संसदीय कमिटी के पास लंबित है, इसलिए वह इस पर टिप्पणी नहीं करेगा।
कोर्ट ने बाल विवाह रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए
विशेष ट्रेनिंग की जरूरत: सभी सरकारी अधिकारियों और एजेंसियों को बाल विवाह से जुड़े मामलों के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाए।
समाज की स्थिति के अनुसार रणनीति: हर समुदाय के लिए अलग-अलग रणनीति तैयार की जाए।
दंडात्मक उपायों की सीमाएँ: दंड के आधार पर ही सफलता नहीं मिलेगी; बल्कि समाज को शिक्षित करना जरूरी है।
नाबालिगों की सुरक्षा: बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर प्राथमिक ध्यान दिया जाए।
बाल विवाह की सामाजिक और कानूनी चुनौतियाँ
बाल विवाह न केवल नाबालिगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, और स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, बल्कि यह उनके भविष्य पर भी गहरा असर डालता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके बावजूद बाल विवाह की समस्या को खत्म करने के लिए कानूनी और सामाजिक दोनों स्तरों पर और अधिक प्रयासों की जरूरत है।
बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई केवल कानून के जरिए नहीं जीती जा सकती, बल्कि समाज को जागरूक करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसके लिए जरूरी है कि लोग यह समझें कि नाबालिगों की शादी उनके अधिकारों का हनन है, और यह उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मजबूत संदेश देता है कि बाल विवाह को किसी भी परिस्थिति में मान्यता नहीं दी जा सकती और पर्सनल लॉ के पीछे छिपकर इसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। अब समय है कि हम इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने के लिए कानून और समाज दोनों स्तरों पर मजबूत कदम उठाएं।