"कानून बहुसंख्यकों से चलता है" जस्टिस यादव के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में यह बयान दिया था कि "भारत बहुसंख्यकों की इच्छा के हिसाब से चलेगा", जो देशभर में चर्चा का विषय बन गया। उनके इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और मामले की इन-हाउस जांच की मांग की। कई राजनीतिक और कानूनी नेताओं ने इसे संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयान ने भारतीय न्यायपालिका और राजनीति में गहरी हलचल मचा दी है। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में बयान दिया, "हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के हिसाब से चलता है," जो तुरंत राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गया। उनके इस बयान को संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न के रूप में देखा जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट से पूरी जानकारी मांगी है। मीडिया रिपोर्ट्स और CJAR (कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स) द्वारा दायर की गई शिकायतों ने इस विवाद को और भी गंभीर बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बयान को संविधान के प्रति एक न्यायाधीश की जिम्मेदारी और उसके पद की गरिमा के खिलाफ माना है।
क्या है CJAR की भूमिका?
CJAR ने इस मामले को गहराई से उठाया है और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को एक पत्र लिखकर मामले की इन-हाउस जांच की मांग की। CJAR ने कहा कि जस्टिस यादव का यह बयान न केवल अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलता है, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करता है।
राजनीतिक गलियारों में भी इस बयान की जमकर आलोचना हो रही है। राज्यसभा सांसद और सुप्रसिद्ध वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस यादव के बयान को "भारत तोड़ने वाला" करार दिया। सिब्बल ने पूछा कि ऐसे न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे होती है, और उन्होंने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से सख्त कार्रवाई की मांग की। सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि पिछले दशक में इस तरह के बयान क्यों बढ़े हैं। उन्होंने दावा किया कि कुछ न्यायाधीश इस्तीफा देकर सत्ताधारी दल में शामिल हो जाते हैं और फिर उन्हें उच्च पदों पर बिठा दिया जाता है। कपिल सिब्बल ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की घोषणा की। इसके लिए वह दिग्विजय सिंह, विवेक तन्खा, और अन्य राजनीतिक सहयोगियों से चर्चा कर रहे हैं। सिब्बल का कहना है कि ऐसे बयान देने वाले न्यायाधीशों को कुर्सी पर बने रहने का अधिकार नहीं है।
क्या कहता है संविधान?
भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय का वादा करता है। जस्टिस यादव का यह बयान न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गहरी चोट करता है। हालांकि इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट की निगाहें टिकी हुई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट जस्टिस यादव के खिलाफ क्या कदम उठाता है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव का "कानून तो बहुसंख्यकों से चलता है" बयान भारतीय न्यायपालिका और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह विवाद भारतीय समाज में बढ़ती ध्रुवीकरण की समस्या को भी उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस मुद्दे को नई दिशा देगा और यह तय करेगा कि भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता कितनी मजबूत है।