पूर्व CJI का वो एक फैसला, जिसकी वजह से नाराज हो गए मुस्लिम
ज्ञानवापी परिसर सर्वे पर 2023 का फ़ैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा जाए, जिसमें ASI को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने की मंजूरी दी गई थी, 4 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सर्वे को बिना किसी खुदाई, तोड़-फोड़ न की जाए, तकनीकी के तहत ही सर्वे कराया जाए
ज्ञानवापी परिसर पर तत्कालीन CJI डीवाई चंद्रचूड़ के आदेश देने के बाद लगातार मस्जिदों पर ख़तरा मंडराने लगा, क्योंकि संभल, बदायूं जैसे तमाम जगहों की मस्जिदों पर हिंदू संगठनों ने दावा ठोक दिया, ऐसे में मुस्लिम समुदाय कहने लगा कि, 2023 में ज्ञानवापी परिसर सर्वे पर फ़ैसला देकर CJI चंद्रचूड़ ने रास्ता खोल दिया, इसीलिए अब मस्जिदों पर ज़्यादा दावे किए जा रहे हैं।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पूर्व सीजेआई पर आरोप लगाते हुए कहा….
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की इजाजत देने वाले आदेश की वजह से ही निचली अदालत भी ऐसे फैसले दे रहे हैं, ज्ञानवापी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की भावना के खिलाफ है, इस फैसले ने अन्य धार्मिक स्थलों पर भी सर्वे के लिए रास्ता खोल दिया है।
सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने भी पूर्व CJI चंद्रचूड़ की आलोचना करते हुए बयान दिया और कहा-CJI रहे चंद्रचूड़ ने विवाद बढ़ाया, सुप्रीम कोर्ट को अब इस पर संज्ञान लेना चाहिए और इन सर्वेक्षणों को रोकना चाहिए….
इतना ही नहीं इस मामले में समाजवादी पार्टी ने भी पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ की आलोचना की, सांसद जिया-उर-रहमान बर्क ने कहा…..उनके फैसले से धार्मिक स्थलों के विवाद बढ़ने की संभावना है, सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और इन सर्वेक्षणों को रोकना चाहिए।
इसके अलावा AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा -1991 के कानून के अनुसार पूजा स्थल की स्थिति नहीं बदली जा सकती, फिर इन सर्वे का क्या मतलब है?….
वहीं वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने तत्कालीन CJI चंद्रचूड़ के फ़ैसले पर अदालत में तर्क देते हुए कहा था कि-
अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी का तर्क
यह फैसला 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ है और इससे देश भर में इसी तरह की याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी, इसपर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में किसी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप की पहचान करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, हालांकि, इसी अधिनियम की धारा 4, 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद पूजा स्थलों के रूप में कोई बदलाव करने पर रोक लगाती है, यह प्रावधान धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित करने के लिए जरूरी है, लेकिन धार्मिक चरित्र का निर्धारण किसी अन्य कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है…..
यानि 4 अगस्त 2023 को तत्कालीन CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जो फ़ैसला ज्ञानवापी परिसर को लेकर किया था और सर्वे का आदेश दिया था, मुस्लिम समुदाय उसी फ़ैसले पर ख़फ़ा है और कह रहा है उस एक आदेश ने ही सर्वे की याचिकाओं की बाढ़ ला दी है, मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को दरकिनार किए जाने का भी आरोप लगाया।
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
साल 1991 में कांग्रेस सरकार के समय ये लाया गया था, पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे, अयोध्या का मुद्दा छाया हुआ था, जिसकी वजह से देश की और मस्जिदों में भी मंदिर-मस्जिद विवाद सामने आने लगे थे, जिससे निपटने के लिए कांग्रेस ये कानून लेकर आई, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है, 1947 के समय देश में जिस धार्मिक स्थल की संरचना जैसी थी, उसे वैसा ही रखा जाएगा, धार्मिक स्थल की मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाएगी, धार्मिक स्थल पर दावा करने वाली कोई याचिका आए तो उसे खारिज कर दिया जाए, अयोध्या, काशी, मथुरा को इस एक्ट से बाहर रखा गया था
फ़िलहाल पूर्व चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का ज्ञानवापी पर दिया गया फ़ैसला मुस्लिमों को चुभ रहा है, इसीलिए लगातार मुस्लिम समुदाय उनकी आलोचना कर रहे हैं, हालाँकि, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा है कि, केंद्र के जवाब के बाद ही इसपर सुनवाई का विचार किया जाएगा, जब तक सुनवाई नहीं हो जाती लोअर कोर्ट को फ़ैसला नहीं देंगी और न ही कोई नया मस्जिद मंदिर मामला दर्ज होगा।