जिन शरणार्थियों को Germany ने दी नागरिकता अब वही बने मुसीबत, क्या भारत सीखेगा सबक ?
दरअसल, साल 2015 में जब सीरिया, अफगानिस्तान और इराक जैसे देश युद्ध से जूझ रहे थे, जिसकी वजह से लाखों की तादाद में मुसलमान अपना देश छोड़कर शरण की आस में यूरोपीय देशों की सीमा पर पहुंच गए थे, तब एंजेला मर्केल जर्मनी की चांसलर हुआ करती थीं। इन शरणार्थियों पर दया दिखाते हुए उन्हें अपनाने को तैयार हो गईं थीं, जिसका असर ये हुआ कि अगले पांच साल में यानि साल 2020 तक ही जर्मनी में दस लाख शरणार्थी पहुंच गए। अब ये आंकड़ा और भी बढ़ गया, जिससे इन शरणार्थियों की एक अच्छी खासी तादाद हो गई। अब यही शरणार्थियों की तादाद मौजूदा जर्मन सरकार को भारी पड़ रही है, क्योंकि इनमें ज्यादातर मुसलमान हैं जो कभी फिलिस्तीन के लिए सड़क पर उतर जाते हैं तो कभी हिजबुल्लाह के समर्थन में बैनर पोस्टर लेकर उतर जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ कुछ ही दिनों पहले जब जर्मनी के हैंबर्ग शहर की सड़कों पर हजारों की तादाद में मुसलमान सड़कों पर उतर आए और अल्लाह हू अकबर नारे के साथ जर्मनी में भी इस्लामवादी खिलाफत के साथ ही शरिया कानून लागू करने की मांग करने लगे।
ये कोई पहली बार नहीं है जब शरणार्थी बनकर जर्मनी आए मुसलमानों ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया और शरिया लागू करने की मांग की। इससे पहले भी समय-समय पर इस तरह के प्रदर्शन होते रहे हैं और ये हाल तब है जब जर्मनी में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं और ईसाई समुदाय बहुसंख्यक है। जरा सोचिए, जब अल्पसंख्यक होकर ये मुस्लिम शरणार्थी जर्मनी में तांडव मचा रहे हैं और शरिया कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं, तो बहुसंख्यक होते तो बेचारे जर्मनी का क्या हाल होता। ये कुछ ऐसा ही है जैसे मेहमान बनकर आए जिन शरणार्थियों को जर्मनी ने रहने के लिए जगह दी और नागरिकता दी, आज वही शरणार्थी मुस्लिम शरिया लागू करने की मांग के बहाने पूरे जर्मनी पर कब्जा करने की फिराक में नजर आ रहे हैं। जर्मनी से आई इन तस्वीरों ने पूरे यूरोप को डरा दिया, क्योंकि यूरोप में जर्मनी जैसे कई देश हैं जिन्होंने मुस्लिम शरणार्थियों को शरण दी है। जिस तरह से जर्मनी का ये हाल है, कहीं ऐसा ना हो कि बाकी देशों का भी आने वाले समय में यही हाल हो।
किसने आयोजित किया ये प्रोटेस्ट? जिस विरोध प्रदर्शन के लिए जर्मनी की सड़कों पर हजारों मुसलमान उतर गए, उस विरोध प्रदर्शन का आयोजन मुस्लिम इंटरएक्टिव नाम के एक समूह ने किया था, जिसके बारे में जर्मन सिक्योरिटी और इंटेलिजेंस एजेंसियों का मानना है कि मुस्लिम इंटरएक्टिव का संबंध हिज्ब उर-तहरीर से है, जो यहूदियों की हत्या को बढ़ावा देने के लिए 2003 में प्रतिबंधित एक संगठन है। वहीं टैग्सपीगल के मुताबिक मुस्लिम इंटरएक्टिव को हैम्बर्ग ऑफिस फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ कॉन्स्टीट्यूशन द्वारा चरमपंथी समूह के रूप में क्लासिफाई किया गया है।
जिस जर्मनी ने इन शरणार्थियों को जगह दी, अब उसी जर्मनी में शरिया कानून लागू करने का ख्वाब देख रहे ये शरणार्थी जर्मनी की मुसीबत बढ़ाने लगे हैं, जिससे कहीं ना कहीं भारत को भी सबक लेना चाहिए। भारत में भी 46 हजार से ज्यादा शरणार्थी रह रहे हैं, वहीं बड़ी संख्या में बांग्लादेश और म्यांमार से आए रोहिंग्या भी अवैध तरीके से भारत में रह रहे हैं। जो भारत आते हैं और फर्जी तरीके से यहां की नागरिकता हासिल करते हैं, फिर भारत के लिए ही मुसीबत बनते हैं। अकेले नॉर्थ ईस्ट के बारे में कहा जाता है कि यहां लाखों की तादाद में अवैध तरीके से रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं। कहीं ऐसा ना हो जो हाल जर्मनी का हो गया है, वही हाल भारत का भी हो जाए।