सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के 6 आरोपियों को बरी किया! फैसला सुनाते वक्त क्या कहा जज ने ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते वक्त कहा कि किसी मामले में सिर्फ मौके पर मौजूद होना या वहां से गिरफ्तारी होना। यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वे गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे। उस वक्त सिर्फ 6 लोग नहीं बल्कि 1000 से ज्यादा लोग गैर कानूनी भीड़ का हिस्सा थे।

गुजरात के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के 6 आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है। जस्टिस पी.एस.नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट 2016 के उस फैसले को खारिज कर दिया। जिसमें गोधरा कांड के बाद साल 2002 में हुए दंगों में 6 लोगों को बरी करने के फैसले को पलट दिया गया था।
फैसला सुनाते वक्त क्या कहा सुप्रीम कोर्ट के जज ने ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते वक्त कहा कि किसी मामले में सिर्फ मौके पर मौजूद होना या वहां से गिरफ्तारी होना। यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वे गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे। उस वक्त सिर्फ 6 लोग नहीं बल्कि 1000 से ज्यादा लोग गैर कानूनी भीड़ का हिस्सा थे।
धीरूभाई,लालभाई चौहान और 5 अन्य को सुनाई गई थी 1 साल की सजा
बता दें कि धीरूभाई,लालभाई चौहान और 5 अन्य को 1 साल की सुनाई गई थी। जिसमें कथित तौर पर भीड़ ने वडोद गांव में एक कब्रिस्तान और एक मस्जिद को घेर लिया था। सभी अपीलकर्ता आरोपियों को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में अपीलकर्ता उसी गांव के निवासी थे। जहां पर यह दंगा भड़का था। उसके बाद निचली अदालत ने 19 आरोपियों को बरी कर दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने 6 को सजा सुनाई थी। इसमें एक आरोपी की मामला लंबित के दौरान मौत हो गई थी। अपीलकर्ताओं समेत 7 लोगों को एफआईआर में नामजद किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के 2003 के फैसले को बहाल करते हुए बरी किया
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को बरी करते हुए कहा कि "दोषी भूमिका के अभाव में मौके पर उनकी गिरफ्तारी घटना की संलिप्ता में पाए जाने के लिए निर्णायक नहीं है। वह भी तब जब उनके पास कोई विध्वंस या भड़काऊ सामग्री नहीं मिली है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने गोलीबारी की। जिसके बाद लोग इधर-उधर भागने लगे। ऐसे मौके पर निर्दोष व्यक्ति को भी अपराधी समझ लिया जाता है। ऐसे में अपीलकर्ताओं की मौके से गिरफ्तारी उनके दोषी होने की गारंटी नहीं है। सामूहिक झड़पों में अदालत के ऊपर यह जिम्मेदारी होती है। खासतौर से सावधान रहने की जरूरत होती है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को दोषी न ठहराया जाए। उन गवाहों की गवाही पर भरोसा करने से बचना चाहिए।
ऐसे लोग केवल एक दर्शक के अलावा कुछ नहीं होते
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब कोई अपराध खासतौर से जब स्थान सार्वजनिक होता है। उस वक्त जिज्ञासावस लोग घटना को देखने के लिए घर से बाहर निकलते हैं। वह जानने की कोशिश करते हैं कि आसपास क्या हो रहा है। ऐसे लोग सिवाय एक दर्शक होने के अलावा कुछ नहीं होते। केवल उन व्यक्तियों को दोषी ठहराना सुरक्षित हो सकता है। जिनके खिलाफ प्रत्यक्ष कृत्य का आरोप लगाया गया हो। ऐसी में दोष सिद्धि तभी कायम रहती है। जब इसका समर्थन कुछ निश्चित संख्या में गवाहों द्वारा किया जाए।