Bangladesh में 3 लाख बिहारी मुस्लिम का सच दिल दुखा देगी
बांग्लादेश के बिहारियों की कहानी
बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा को देखते हुए अब ऐसी आशंका जतायी जा रही है कि भारत में 1 करोड़ हिंदू शरणार्थी घुसपैठ करेंगे। इसी के बीच आज कहानी उन लोगों की जो भारत को अलविदा कहकर बांग्लादेश में रह रहे थे। 3 दिसंबर, 1971 को भारत से लगभग 60-70 हजार बिहार और उत्तर प्रदेश का परिवार बांग्लादेश में जाकर बस तो गया, लेकिन आज भी हर एक छोटी-छोटा सुविधाओं के लिए तरस रहें है। आज हम बात करेंगे उन्हीं बिहारियों और UP वालों की जो बांग्लादेश में जाकर तो रह रहे हैं, लेकिन आज भी उन्हें वो जगह नहीं मिल पायी जिसके वो हक़दार है।
बांग्लादेश कैसे पहुंचे बिहारी मुसलमान ?
अब इतिहास की तरफ़ बढ़ते हैं और आपको बताते हैं कि बांग्लादेश में आख़िर बिहार और UP के इतने सारे लोग कैसे पहुँचे। दरअसल साल 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तब इसके दो टुकड़े हुए।भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना। इसके बाद जब 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना तब भी कई मुसलमान बांग्लादेश को अपने धर्म का देश समझ कर वहां पलायन कर गए। बिहार और बांग्लादेश के बीच की दूरी काफ़ी कम थी। इसलिए बिहार में रहने वाले मुसलमान कश्मीर से सटे पाकिस्तान जाने के बजाए बांग्लादेश जाना मुनासिब समझा।
उपेक्षित जीवन यापन करने को मजबूर बिहारी मुसलमान !
बांग्लादेश तो चले गए लेकिन इन्हें कहा पता था कि जिस खुबसुरत ज़िंदगी का सपना लिए ये भारत छोड़कर जा रहें है। वो सपना सपना ही रह जाएगा। सामने जो आएगा वो होगा इनका डरावना सच। वहाँ पहुँचने के बाद इनके साथ सौतेलों वाला व्यवहार होने लगा। नौकरी के नाम पर मिली मज़दूरी और आशियाने के नाम पर मिला जेनेवा कैंप।
जेनेवा कैंप के बारे में थोड़ी जानकारी देना चाहूँगी। बाहर से आए शरणार्थियों को बांग्लादेश में रहने को कैंप मिलता है। इस कैंप की संख्या 60 के लगभग है। जिसमें 3 लाख से ज़्यादा शरणार्थी रहते है।
यह वही मुसलमान हैं जिनपर 71 की जंग में पाकिस्तान का सपोर्ट करने का आरोप लगा था। और इसी वजह से इन्हें आज तक उस देश की नागरिकता नहीं मिल पाई है। बांग्लादेश में रहने वाले मुसलमानों को बंगाली मुसलमान कहा जाता है। क्योंकि ये आपस में बोलचाल के लिए बंगाली भाषा का उपयोग करते है। वहीं बिहार से गए मुसलमान हिंदी या उर्दू में बातचीत करते है। और इनकी भाषा ही इनके लिए श्राप साबित हो गई। इनके भाषा के कारण इनसे नफ़रत किया जाने लगा। ये नफरता की आग जो 71 में लगी वो आज तक नहीं बुझ पाई।
बिहारी मुसलमानों के साथ दोयम व्यवहार !
पलायन करने के सालों बाद भी बिहार, यूपी और कुछ हद तक प. बंगाल के मुसलमानों को कभी भी बांग्लादेशी समझा ही नहीं गया। जिस वजह से इन मुसलमानों को मुख्यधारा से भी नहीं जोड़ा गया। इनके साथ हमेशा से दुर्व्यवहार होता रहा और इन सबकी एक ही वजह सामने आई। वो थी इनका अलग भाषी होना। बांग्लादेशी में रहने वाले मुसलमानों को हमेशा इस बात का डर था की ये जो मुसलमान उत्तर प्रदेश और बिहार से आए है, वो उनके संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे। और यही vajah रही कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी के कार्यों में भेदभाव किया जाने लगा। जोॉ आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। बिहार के मुसलमानों से आज तक छोटे दर्ज़े का काम करवाया जाता है। इन्हें आज तक आगे बढ़ने नहीं दिया।
बिहारी मुसलमानों का संघर्ष जारी !
बिहारी मुसलमानों का संघर्ष 71 से ही जारी है। यह मानवाधिकार के लिए यहाँ बनने वाली सरकारों के सामने कई बार अपनी माँग को लेकर गुहार लगा चुके हैं। लेकिन इनको कभी भी नहीं सुना गया। 2008 में इनके लिए एक आशा कि किरण जागी। बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने उन बिहारियों को नागरिकता देने की बात कही जो 1971 के दौरान नाबालिक थे, या उसके बाद पैदा हुए थे। वहीं 2019 में शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद जेनेवा कैंप में बसे बिहारी मुसलमानों के प्रति थोड़ी सी नरमी दिखाई जाने लगी। कहा जाता है कि 2019 के मार्च में उतरी ढाका के नए मेयर और पार्षदों के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान शेख हसीना ने मंच से कहा था कि उनकी सरकार जेनेवा कैंप में रह रहे बिहारी मुसलमानों का जीवन स्तर सुधारना चाहती है। बिहारियों के लिए फ़्लैट बनाने के लिए ज़मीन भी तलाश की जा रही है। जहाँ वो अच्छे से अपना जीवन यापन कर सकें। प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के रहते हुए इनके लिए आवास बनाने का फैसला तो लिया गया। आवास के लिए ज़मीन तलाशने की बात तो कही गई थी। लेकिन ये पेपर पर ही रह गया और समय के साथ साथ ठंडे बस्ते में चला गया।
पाकिस्तान से अलग हुए बांग्लादेश को आज 53 सालों का वक्त बीत चुका है। लेकिन यहाँ पर आज भी बिहार से गए हुए मुसलमानों को नहीं अपनाया गया। इन मुसलमानों को जिंदगी गुजारने के लिए न तो रहने के लिए सही जगह मिली न ही अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी नौकरी। शेख़ हसीना के पद छोड़ने के बाद अब इन पर और भी ज़्यादा खपत ख़तरा मंडराने लगा है अब इन मुसलमानों और इनके परिवारों का क्या होगा यह सोचने का विषय है।