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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का भारत पर क्या होगा असर, जानें एस. जयशंकर की बेबाक राय

जयशंकर ने छात्रों के साथ चर्चा में बताया कि भारत और अमेरिका के संबंध पहले से ज्यादा गहरे और परिपक्व हो चुके हैं। हाल के वर्षों में, अमेरिका ने भारत के प्रति नीति में बदलाव किया, अब भारत को रणनीतिक दृष्टिकोण से प्राथमिकता दी जा रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का भारत पर क्या होगा असर, जानें एस. जयशंकर की बेबाक राय
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में पुणे में छात्रों के साथ एक दिलचस्प चर्चा की, जिसमें उन्होंने भारत-अमेरिका संबंधों और चीन के साथ सीमा विवाद पर खुलकर बात की। जयशंकर की टिप्पणियाँ न केवल भारत के भविष्य को लेकर एक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता और सामरिक पहलुओं को भी उजागर करती हैं। आइए विस्तार से समझते हैं उनके बयानों का महत्व और भारत पर इसके प्रभाव।
भारत-अमेरिका संबंधों का नया अध्याय
पिछले कुछ दशकों में भारत और अमेरिका के रिश्तों में काफी सुधार हुआ है। जयशंकर ने इस पर जोर देते हुए कहा कि अमेरिकी प्रशासन ने भारत के प्रति नीति में बदलाव किया है। एक समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत और पाकिस्तान को एक जैसे नजरिए से देखते थे, पर अब यह दृष्टिकोण बदल चुका है। जयशंकर ने इसे अमेरिका के दृष्टिकोण में एक सकारात्मक बदलाव के रूप में देखा। उन्होंने कहा कि इस बदलाव के पीछे दो मुख्य कारण हैं, पहला तकनीकी विकास। यह युग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है और दोनों देशों को इस क्षेत्र में आपसी सहयोग से लाभ हो सकता है। दूसरा भारत की मानव पूंजी, भारत के पास विशाल मानव संसाधन है, जो तकनीकी विकास में सहायक हो सकता है। अमेरिका इसे एक साझेदारी के रूप में देखता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का असर
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत के लिए दोनों नेता (कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप) अच्छे विकल्प हैं। अतीत में अमेरिकी राष्ट्रपति भारत और पाकिस्तान के प्रति समान रवैया रखते थे, लेकिन अब स्थिति बदली है। जयशंकर ने इस बदलाव के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा का उदाहरण दिया, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत हुई।
चीन के साथ सीमा विवाद का हल
जयशंकर ने भारत-चीन सीमा विवाद पर भी चर्चा की और बताया कि 2020 से दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध समाप्त करने के लिए बातचीत चल रही थी। हाल ही में, दोनों पक्षों ने एक समझौते पर सहमति जताई है, जिसमें सीमा पर गश्त के नियम और सैनिकों की वापसी के संबंध में फैसला लिया गया है। जयशंकर ने इसे एक बड़ी कूटनीतिक सफलता बताया और सेना की कड़ी मेहनत की सराहना की। उनका मानना है कि एक दशक में भारत ने अपनी सीमा पर बुनियादी ढाँचा और संसाधन काफी बढ़ाए हैं, जिससे सेना को तैनात करने में मजबूती मिली है।

चीन के साथ व्यापारिक संबंधों के संदर्भ में जयशंकर ने भारत की आत्मनिर्भरता का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि भारत अपनी आपूर्ति श्रृंखला को विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है ताकि चीन पर निर्भरता कम हो सके और रोजगार के अवसर बढ़ सकें। 'आत्मनिर्भर भारत' का सिद्धांत न केवल एक आर्थिक रणनीति है, बल्कि यह एक संपूर्ण आत्मरक्षा पैकेज है, जो भारत को विभिन्न चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा।
भारत की कूटनीति और सेना का संयुक्त प्रयास
एलएसी पर गश्त और सैन्य तैनाती पर जयशंकर ने कहा कि सेना और कूटनीति दोनों ने मिलकर एक मजबूत संयुक्त दृष्टिकोण के साथ काम किया है। उन्होंने इसे एक टीम प्रयास बताया और यह भी बताया कि सरकार ने दूरदराज के इलाकों में बुनियादी ढांचे में काफी सुधार किया है। जयशंकर ने कहा कि भारतीय सेना ने बहुत कठिन परिस्थितियों में भी एलएसी पर अपनी मौजूदगी बरकरार रखी है, और सरकार का इस दिशा में बजट पांच गुना बढ़ा है।

जयशंकर ने छात्रों को बताया कि भारतीय कूटनीति केवल राजनयिक बातचीत तक सीमित नहीं है। यह देश की आत्मनिर्भरता और ताकत बढ़ाने के लिए एक समर्पित प्रयास है। भारत अपनी सैन्य और आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहा है, जिससे वह वैश्विक मंच पर एक सशक्त भूमिका निभा सके। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में, भारत को अपनी क्षमताओं को पहचानने और विकसित करने की जरूरत है ताकि वह अपने हितों की रक्षा कर सके।

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