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संसद में कौन पूरी करेगा Smriti Irani की कमी, क्या फिर से Modi भेजेंगे संसद

सद में बात जब भी राहुल गांधी को मुंहतोड़ जवाब देने की आती थी तो। स्मृति ईरानी ही वो केंद्रीय मंत्री थीं जो हर मोर्चे पर उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देती थीं। इसी बात से समझ सकते हैं कि इस बार संसद में मोदी सरकार को स्मृति ईरानी की कमी जरूर खलेगी। लेकिन ये कमी दूर करने के लिए अभी भी पीएम मोदी के पास मौका है।
संसद में कौन पूरी करेगा Smriti Irani की कमी, क्या फिर से Modi भेजेंगे संसद
कभी क्योंकि सास भी बहू थी। जैसे मशहूर टीवी सीरियल से तुलसी का किरदार निभाने वालीं स्मृति ईरानी के बारे में कौन जानता था कि कभी यही तुलसी राजनीति की ऐसी धुरी बन जाएंगी।  जिनके बिना संसद तो संसद। राजनीति भी अधूरी नजर आएगी। क्योंकि जब वो संसद में दहाड़ती थीं तो दशकों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस भी सन्नाटे में चली जाती थी। जब वो संसद में दहाड़ती थीं।  तो गांधी परिवार भी बौखला जाता था। 



संसद में कुछ ऐसा था बीजेपी की तेज तर्रार नेता स्मृति ईरानी का भौकाल। लेकिन अब संसद में ये दहाड़ नहीं सुनाई देगी। क्योंकि कभी राहुल गांधी को अमेठी में चुनाव हराकर इतिहास रचने वालीं स्मृति ईरानी इस बार के लोकसभा चुनाव में अमेठी की जंग हार गईं।  जिसकी वजह से उन्हें मोदी सरकार में कोई मंत्री पद नहीं मिला। और सरकारी आवास भी खाली करना पड़ा।  लेकिन जो लोग स्मृति ईरानी को जानते हैं। वो ये बात भी अच्छी तरह से जानते होंगे कि। ये वो स्मृति ईरानी हैं। जो एक हार से टूटने वाली नहीं हैं। अगर एक हार से टूटना ही था तो साल 2014 में मिली हार के बाद ही अमेठी छोड़ कर चली जातीं।  लेकिन स्मृति ईरानी ने हार के बावजूद अमेठी का साथ देना बेहतर समझा। और साल 2014 में मिली चुनावी हार के बावजूद अमेठी छोड़ कर नहीं गईं। यहीं की होकर रह गईं।  जिसका असर ये हुआ साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वो हो गया। जो कभी नहीं हुआ। पहली बार राहुल गांधी अपनी पारिवारिक लोकसभा सीट अमेठी में बुरी तरह से चुनाव हार गये। और फिर इस हार के बाद अमेठी में चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पाए। इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने केएल शर्मा को उतार दिया था।  जिनसे स्मृति ईरानी चुनाव तो हार गईं। लेकिन हौंसला नहीं हारीं। चुनाव हारने के बावजूद अमेठी की जनता के साथ खड़ीं स्मृति ईरानी ने विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा था कि। हार और जीत में मेरे साथ खड़े रहने वालों का मैं हमेशा आभारी रहूंगी, आज जश्न मनाने वालों को बधाई और जो लोग पूछ रहे हैं  'कैसा जोश है?' मैं कहती हूं- जोश अभी भी हाई है, सर।


एक तरफ राहुल गांधी हैं जो। एक बार अमेठी में हारने के बाद दोबारा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। तो वहीं दूसरी तरफ स्मृति ईरानी हैं जो साल 2014 में चुनावी हार के बावजूद अमेठी में रहीं।  2019 में मिली चुनावी जीत के बाद भी अमेठी में रहीं। और 2024 के चुनाव आते-आते तो स्मृति ईरानी इसी अमेठी में घर बनवाकर यहीं की होकर रह गईं।  यानि जो लोग पूछ रहे हैं कि चुनावी हार के बाद दिल्ली वाला सरकारी बंगला खाली करने वालीं स्मृति ईरानी अब कहां रहेंगी। उन्हें ये जवाब है कि दिल्ली वाला बंगला नहीं है तो क्या हुआ। उनका नया पता अमेठी वाला घर होगा। और यहीं रह कर लोगों की सेवा करेंगी। तो वहीं बात करें स्मृति ईरानी के अबतक के सियासी सफर की तो। आपको बता दें।



स्मृति ईरानी का सियासी सफर।

स्मृति ईरानी बचपन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक का हिस्सा रहीं हैं।
स्मृति ईरानी के दादा RSS स्वयंसेवक और मां जनसंघी थीं।
अटल राज में स्मृति ईरानी साल 2003 में BJP में शामिल हुईं।
साल 2004 में BJP ने महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष बनाया।
साल 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक से स्मृति चुनाव लड़ीं।
कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल से स्मृति ईरानी चुनाव हार गईं।
साल 2010 में स्मृति ईरानी को BJP राष्ट्रीय सचिव बनाया गया।
साल 2010 में ही स्मृति ईरानी को महिला मोर्चा की कमान मिली।
साल 2011 से 2019 तक स्मृति ईरानी राज्य सभा सांसद रहीं।
2014 में अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ीं लेकिन राहुल से हार गईं।
2019 में दोबारा अमेठी से लड़ीं और राहुल गांधी को हरा दिया।
2024 में अमेठी चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार केएल शर्मा से हार गईं।



बीजेपी में रहते हुए अपनी मेहनत और संघर्ष के दम पर फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वालीं स्मृति ईरानी आज एक ऐसी नेता हो गईं हैं। जिन्हें लगातार दो बार मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री  बनाया गया।  यहां तक कि जब भी राहुल गांधी से जुड़ा कोई मसला होता था।  सबसे पहले स्मृति ईरानी ही मोर्चा संभालती थीं। फिर वो चाहे संसद की बात हो।  या अमेठी के मैदान की। स्मृति ईरानी कांग्रेसी राहुल गांधी को मुंहतोड़ जवाब देने में कभी पीछे नहीं रहीं।  यहां तक कि जब कांग्रेसियों ने उनकी बेटी को टारगेट करते हुए उन पर व्यक्तिगत हमला किया। उस वक्त भी स्मृति ईरानी खामोश नहीं रहीं। अकेले दम पर पूरी कांग्रेस के छक्के छुड़ा कर रख दिये थे।


बात बेटी की आई। तब भी स्मृति ईरानी परिवार के लिए चट्टान की तरह खड़ी रहीं।  और कांग्रेसियों की बखिया उधेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बात जब देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सम्मान की आई।  तब भी स्मृति ईरानी ने संसद में अकेले दम पर सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए गदर काट दिया था।

दिन रात अडानी अंबानी करने वाले राहुल गांधी ने जब मोदी सरकार को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश की। तब भी किसी चट्टान की तरह स्मृति ईरानी संसद में खड़ी रहीं।  और राजस्थान से लेकर बंगाल तक। कांग्रेस एंड कंपनी की बखिया उधेड़ कर रख दी थी।

इसी संसद में जब कांग्रेस ने मणिपुर के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की।  तो उस वक्त भी यही स्मृति ईरानी थीं। जिन्होंने भरी संसद में अकेले ही मोर्चा लेते हुए मणिपुर के मसले पर पूरी कांग्रेस को चुन चुन कर मुंहतोड़ जवाब दिया।

लोकसभा हो।  या फिर राज्य सभा। सदन हो या सड़क।  हर वक्त स्मृति ईरानी मोदी सरकार के साथ किसी चट्टान की तरह खड़ीं रहीं। और हर मोर्चे पर कांग्रेस को मुंहतोड़ जवाब देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब स्मृति ईरानी का ये तेवर।  ये दहाड़।  ये रौद्र रूप।  संसद में नजर नहीं आएगा।  क्योंकि स्मृति ईरानी इस बार लोकसभा चुनाव हार गईं। जिसकी वजह से पीएम मोदी ने भी उन्हें इस बार अपनी सरकार में  मंत्री नहीं बनाया। ऐसे में सवाल उठता है कि।



संसद में अब कौन पूरी करेगा स्मृति ईरानी की कमी ?
संसद में अब कौन दहाड़ेगा मोदी विरोधियों पर ?
संसद में कौन देगा राहुल गांधी को करारा जवाब ?


संसद में बात जब भी राहुल गांधी को मुंहतोड़ जवाब देने की आती थी तो। स्मृति ईरानी ही वो केंद्रीय मंत्री थीं जो हर मोर्चे पर उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देती थीं।  इसी बात से समझ सकते हैं कि इस बार संसद में मोदी सरकार को स्मृति ईरानी की कमी जरूर खलेगी। लेकिन ये कमी दूर करने के लिए अभी भी पीएम मोदी के पास मौका है।वो चाहें तो राज्य सभा के जरिये स्मृति ईरानी को संसद भेज सकते हैं। जहां सोनिया गांधी भी बैठती हैं।  जिससे फिर एक बार स्मृति ईरानी सदन में दहाड़ सकेंगी। और मौका मिलने पर सोनिया के सामने ही कांग्रेस को उधेड़ सकेंगी। वैसे आपको क्या लगता है। स्मृति ईरानी जैसी तेज तर्रार नेता को राज्य सभा भेजने के साथ ही मोदी सरकार में भी जगह दी जानी चाहिए। 
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