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हाथरस कांड पर तांडव मचाने वाले विपक्ष को अयोध्या और मोइद पर सांप क्यों सुंघ गया ?

हाथरस कांड पर तांडव मचाने वाले विपक्ष को अयोध्या और मोइद पर सांप क्यों सुंघ गया ?
हाथरस कांड पर तांडव मचाने वाले विपक्ष को अयोध्या और मोइद पर सांप क्यों सुंघ गया ?

याद कीजिए सितंबर 2020 का वो महीना जब हाथरस में वीभत्स कांड हुआ था, एक दलित लड़की के साथ दरिंदगी की हदें पार की गई थी, तब इस देश के विपक्ष ने किस तरीके से योगी सरकार पर हमला बोला था और उनके इस्तीफा की मांग किस तरह की गई थी सबने देखा और सुना था, राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी को लेकर गाजियाबाद से हाथरस पैदल ही निकलने को तैयार थे, हाथरस पहुंच कर सरकार पर जमकर निशाना भी साधा था, जो कि अच्छी बात है, और होना भी यही चाहिए, क्योंकि विपक्ष का यही कर्तव्य है। लेकिन यही राहुल, प्रियंका अब प्रदेश की एक और दलित नाबालिग बेटी पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि अब मामला खुद के कोर वोट बैंक और अखिलेश यादव, अयोध्या के सो कॉल्ड राजा अवदेश के गुर्गे का हैं, जिसका नाम मोईद खान है। 

अब नाम मोईद खान है, समाजवादी पार्टी का नेता है तो फिर भाई बहन कैसे बोल सकते हैं, जबकि अभी 4 जून को अयोध्या में चुनाव जीतने पर यही अखिलेश, राहुल, प्रियंका ऐसे उछल रहे थे, जैसे सरकार बना ली हो, लेकिन जब उसी अयोध्या में समाजवादी मोईद खान एक बच्ची का चीरहरण करता है तो ये सब खामोश हो जाते हैं, इन्हें सांप सूंघ जाता है। न राहुल के मुंह से एक शब्द फूटता है, न प्रियंका, न सुप्रिया श्रीनेत्र, न रागिनी नायक, न ही सुप्रिया भारद्वाज कुछ भी बोलने की हिम्मत जुटा पाती है, रही बात डिंपल यादव की तो मानो ऐसा लग रहा है कि वो संसद में केवल अखिलेश यादव के पीछे बैठ कर 5 साल पूरा करने आईं है, बाकी लुट जाए किसी बहन बेटी की इज्जत उन्हें फर्क नहीं पड़ता। 


हालांकि योगी सरकार ने जब दरिंदे मोइद पर एक्शन लेना शुरू किया, बुलडोजर निकला तो, उसकी संपत्तियों को जमींदोज करने लगा तो यादव परिवार में जैसे मातम पसर गया, अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव ने तुंरत अपना मोबाइल निकाल कर ट्वीट ट्वीट खेलना शुरू कर दिया, और लिखा भी तो क्या ? आरोप के DNA की जांच होनी चाहिए ।, बिल्कुल साहब DNA की जांच होनी चाहिए, लेकिन क्या यही जांच हाथरस कांड पर कराने की मांग आप नहीं कर सकते थे, क्या यही जांच बृजभूषण पर कराने की नहीं कर सकते थे ? तो इसका जवाब मैं बता देता हूं, न अखिलेश, न शिवपाल, न रामगोपाल, किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि, हाथरस कांड और बृजभूषण मामले में जांच की मांग कर लें, क्योंकि आरोप कोई खान, कुरैशी, मक़बूल, सिद्दीक़ी, हसन नहीं था।  


शिवपाल ने जिस तेज़ी में बीजेपी नेताओं के नार्को टेस्ट की मांग की, शायद यही तेज़ी पीड़ित परिवार के साथ खड़े रहने में दिखाते तो समझ आता कि अयोध्या जीतने के बाद वहाँ के लोगों के लिए इनके दिल में थोड़ी जगह है, वहीं अखिलेश यादव जब मोईद पर बोलने का ज़हमत उठाते हैं तो एक ट्वीट करते हुए लिखते हैं, कुकृत्य के मामले में जिन पर भी आरोप लगा है उनका DNA TEST कराकर इंसाफ़ का रास्ता निकाला जाए न कि केवल आरोप लगाकर सियासत की जाए, जो भी दोषी हो उसे क़ानून के हिसाब से पूरी सज़ा दी जाए, लेकिन अगर DNA TEST के बाद आरोप झूठे साबित हों तो सरकार के संलिप्त अधिकारियों को भी न बख्शा जाए, यही न्याय की माँग है। ग़ज़ब है भई हाथरस रेप पीडिता के मामले में आरोपी को सीधे कटघरे में खड़ा कर देना और अयोध्या में जब आरोप लगे तो दुआही देकर DNA टेस्ट की माँग करना। खैर इस देश के विपक्ष का यही दोहरा चरित्र है, जो हाथरस दलित लड़की के साथ दरिंदगी के मामले में तांडव करता है और अयोध्या पर ख़ामोश हो जाता हैं, बिल्कुल ख़ामोश 

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