वोटिंग डाटा की रिपोर्ट में क्यों हो देरी, सुप्रीम कोर्ट का जवाब सुन विपक्ष में सन्नाटा
राजनीतिक पार्टियों का दावा है कि चुनाव वाले दिन वोटिंग प्रतिशत कुछ और होता है और एक हफ्ते बाद कुछ और। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर कर मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करने का आदेश दे।
2024 के नतीजो को सामने देख विपक्ष बौखलाहट से सारे पैमाने तोड़ चुका है । 300 से ज्यादा सीट जीतने का दावा करने वाले विपक्ष ने तीसरे चरण के मतदान के बाद से ही ईवीएम का रोना शुरु कर दिया है ।मतदान से हर चरण के बाद विपक्ष कोई नई याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जाता है ।चुनाव आयोग को संदेह के घेरे में खड़ा करने की कोशिश करता है ।जबकि सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को फटकार लगा चुका है ।सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि आप चुनाव आयोग के हर कदम पर संदेह नहीं कर सकते है। लेकिन विपक्ष है कि मानने को तैयार नही है ।वीवीपैट पर्चियों के 100 फीसदी मिलान की याचिका पर मुंह की खाने के बाद विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक और याचिका दाखिल की थी ।जिस पर फिर विपक्ष ने मुंह की खाई है ।दरअसल इस बार ADR ने सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका लगाई है कि चुनाव आयोग मतदान का सही प्रतिशत, सही संख्या अपनी वेबसाइट पर अपलोड करे ।और साथ ही फॉर्म 17C की प्रतिया भी अपलोड की जाए । ADR का मानना था कि कोर्ट ऐसा आदेश चुनाव आयोग को दे।लेकिन कोर्ट ने ऐसा कोई भी आदेश देने से इंकार कर दिया ।
तो चलिए पहले आपको पूरा मामला बता देते है कि विपक्ष सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा है ।क्या है फॉर्म 17C जिसे लेकर सारा विवाद गहराया हुआ है। दरअसल फॉर्म 17C में देश में हर एक मतदान केंद्र के वोटों का रिकॉर्ड किया जाता है ।इसमें मतदान केंद्र के कोड नंबर और नाम, वोटर्स की संख्या , उन वोटर्स की संख्या जिन्होंने वोट नहीं डालने का निर्णय लिया, उन वोटर्स की संख्या जिन्हें मतदान करने की अनुमति नहीं मिली, दर्ज किए गए वोटों की संख्या , खारिज किए गए वोटों की संख्या, वोटों के खारिज किए जाने की वजह, स्वीकार किए गए वोटों की संख्या, डाक मतपत्रों के बारे में डाटा शामिल होता है ।ये सारे डाटा मतदान अधिकारियों की ओर से दर्ज किया जाता है और उस बूथ के पीठासीन अधिकारी द्वारा इसे आंकड़े को जांचा जाता है ।इस फॉर्म 17C का रोल काउंटिंग के दिन भी अहम होता है ।जब काउंटिंग पूरी हो जाती है ।तब इस फार्म से साथ वोटों का मिलान किया जाता है । तो यहां सवाल उठता है कि क्या ऐसे में वोटों में कोई हेरफेर हो सकता है ।जबकि हर एक बूथ के हर फॉर्म पर उम्मीदवारों के भी सिग्नेचर होते है ।अब आप यहां ये भी समझ लीजिए कि विवाद क्या है।और क्यों ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है ।
क्या है फॉर्म 17C विवाद
19 अप्रैल को जब लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हुआ, तो उसका डाटा आने में 11 दिन की देरी हुई ।तीन चरणों के मतदान में 4-4 दिन की देरी हुई ।पांचवे चरण की वोटिंग का फाइनल डाटा आने में 3 दिन गए ।और इसी को लेकर विपक्ष का कहना है कि ये डाटा 48 घंटो के भीतर आ जाना चाहिए ।इसी विवाद को सुलझाने के लिए विपक्ष का कहना है कि फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए ।लेकिन चुनाव आयोग इसके लिए तैयार नहीं है ।ADR और महुआ मोइत्रा की तरफ से ये याचिका दाखिल की गई थी ।और इस याचिका को लेकर चुनाव आयोग ने कहा है कि याचिका सुनवाई योग्य ही नहीं है। ये कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का क्लासिक केस है । इन याचिकाकर्ताओं पर भारी जुर्माना लगाया जाए। ऐसे लोगों का इस तरह का रवैया हमेशा चुनाव की शुचिता पर सवालिया निशान लगाकर जनहित को नुकसान पहुंचा रहा है । जबकि कानून के मुताबिक फॉर्म 17C को ईवीएम वीवीपीएटी के साथ ही स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। चुनाव आयोग की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी पुछा कि चुनाव शुरु होने के बाद ही ऐसी याचिका क्यों लगाई जाती है। आगे कोर्ट ने कहा कि हम बहुत तरह की जनहित याचिकाएं देखते हैं। कुछ पब्लिक इंटरेस्ट में होती हैं कुछ पैसे के इंटरेस्ट में होती हैं! ।लेकिन हम आपको ये कह सकते हैं कि आपने ये याचिका सही समय और उचित मांग के साथ दायर नहीं की है ।कोर्ट अगर कह दे की आपकी मांग उचित नहीं है ।तब विपक्ष क्या करेगा ।विपक्ष कुछ नहीं करेगा ।विपक्ष फिर से कोई नई याचिका लेकर कोर्ट में जाएगा। दुनिया को ये दिखाने की कोशिश करेगा कि भारत में चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से नहीं हो रहे है ।शायद विपक्ष जानता है कि चुनाव तो वो जीतने वाले नहीं है ।कम से कम सत्ता पक्ष को घेरने के लिए चुनाव आयोग को ही कटघरे में खड़ा कर दो ।और ये तब है जब सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि हर चीज को संदेह की नजर से नहीं देखा जा सकता। अगर कुछ अच्छा हुआ है तो उसकी सराहना भी होनी चाहिए ।लेकिन विपक्ष अपना ही राग अलाप रहा है ।वो कोर्ट की भी सुनने को तैयार नही है ।जो कि सही रवैया नहीं है। जब चुनाव आयोग मशीन में गड़बड़ी दिखाने के लि बुलाता है तब विपक्ष चुनाव आयोग के बुलावे पर नहीं जाता लेकिन मोदी को विलेन दिखाने के चक्कर में अपनी ही संस्थाओं की दुनिया में खिल्ली उड़ाने पर उतारू है। लेकिन जैसे हर बार विपक्ष को कोर्ट में मुह की खानी पड़ती है ।उसके बाद क्या यें अपनी हरकतों से बाज आएंगे ।अपनी राय हमे कमेंट करके जरुर बताएं।