क्या नेहरू की चिट्ठियां बनेंगी नया राजनीतिक मुद्दा? राहुल गांधी को PM म्यूजियम ने लिखा पत्र
प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (PMML) सोसाइटी ने राहुल गांधी से अनुरोध किया है कि 2008 में सोनिया गांधी को भेजे गए जवाहरलाल नेहरू के 51 डिब्बों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज वापस किए जाएं। इन दस्तावेज़ों में नेहरू द्वारा एडविना माउंटबेटन, आइंस्टाइन, जयप्रकाश नारायण और अन्य प्रमुख हस्तियों को लिखी गई चिट्ठियां शामिल हैं।
भारतीय राजनीति और इतिहास के पन्नों में ऐसा शायद ही कोई विषय हो, जो नेहरू परिवार से जुड़े बिना चर्चा में आए। इस बार एक नई बहस ने जन्म लिया है। प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय (PMML) के सदस्य और इतिहासकार रिज़वान कादरी ने राहुल गांधी को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने 51 डिब्बों में बंद जवाहरलाल नेहरू के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पत्रों को वापस म्यूजियम में लाने की अपील की है। यह मामला जितना ऐतिहासिक है, उतना ही राजनीतिक भी।
रिज़वान कादरी ने 10 दिसंबर को राहुल गांधी को लिखे अपने पत्र में दावा किया कि यूपीए शासनकाल के दौरान, 2008 में, नेहरू के व्यक्तिगत पत्रों के 51 बक्से सोनिया गांधी के पास भेजे गए थे। इन पत्रों में नेहरू द्वारा एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टाइन, जयप्रकाश नारायण, विजया लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, और अन्य प्रमुख हस्तियों को लिखे गए दस्तावेज शामिल हैं। रिज़वान का कहना है कि ये पत्र न केवल नेहरू परिवार के लिए व्यक्तिगत महत्व रखते हैं, बल्कि भारत के इतिहास और शोध के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
क्या हैं ये 51 डिब्बे?
1971 में, नेहरू परिवार ने नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (NMML) को ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज सौंपे थे। इनमें कई दुर्लभ चिट्ठियां और पांडुलिपियां थीं। लेकिन 2008 में, यूपीए सरकार के दौरान, इन्हें कथित तौर पर वापस लिया गया और सोनिया गांधी के पास रखवाया गया।
इन दस्तावेजों में नेहरू की व्यक्तिगत और आधिकारिक चिट्ठियों का संग्रह है। इनमें एडविना माउंटबेटन जिनसे नेहरू की दोस्ती और व्यक्तिगत संबंधों की चर्चा होती है। अल्बर्ट आइंस्टाइन से वैज्ञानिक और दर्शन के विषयों पर हुई बातचीत। जयप्रकाश नारायणय से स्वतंत्रता संग्राम और समाजवाद पर विचार-विमर्श।पद्मजा नायडू और विजया लक्ष्मी पंडित से उनके परिवार और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े पत्र।इन चिट्ठियों के अध्ययन से भारत के स्वतंत्रता संग्राम, नेहरू की सोच और उस समय की राजनीति को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।
क्या कहता है PMML?
प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी का मानना है कि इन दस्तावेजों को शोधकर्ताओं और विद्वानों के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए। इनका ऐतिहासिक महत्व है और ये भारत के इतिहास का हिस्सा हैं। कादरी ने अपने पत्र में लिखा, "हम यह समझते हैं कि नेहरू परिवार के लिए ये पत्र व्यक्तिगत महत्व रखते होंगे। लेकिन इनकी सार्वजनिक पहुंच से विद्वानों और शोधकर्ताओं को फायदा होगा और भारत के इतिहास को समझने में मदद मिलेगी।"
वैसे इससे पहले भी सितंबर 2024 में रिज़वान कादरी ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर इन दस्तावेजों को वापस करने का अनुरोध किया था। लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने के बाद, उन्होंने राहुल गांधी को पत्र लिखकर उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की। कादरी का कहना है कि विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी की जिम्मेदारी बनती है कि वे इन दस्तावेजों को म्यूजियम में वापस लाने में मदद करें। इस मामले को लेकर भाजपा समर्थक नेहरू परिवार की पारदर्शिता पर सवाल उठाने का मौका मान रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने इसे एक व्यक्तिगत मामले के रूप में देखा है, जो नेहरू परिवार और उनके ऐतिहासिक योगदान से जुड़ा है।
वैसे आपको बता दें कि प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी पहले नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के नाम से जानी जाती थी। 2023 में इसका नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी सोसाइटी’ कर दिया गया। इस सोसाइटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और उपाध्यक्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं।
क्यों हैं ये दस्तावेज महत्वपूर्ण?
भारत के स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता के बाद के समय को समझने में नेहरू के पत्रों का बड़ा योगदान हो सकता है। ये पत्र उस दौर की राजनीति, नेहरू की सोच और उनके संबंधों का गहरा विश्लेषण पेश करते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि इन पत्रों की वापसी से इतिहास के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला जा सकता है।
यह मुद्दा केवल एक राजनीतिक विवाद नहीं है, बल्कि भारत की ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ा एक बड़ा सवाल भी है। क्या नेहरू के व्यक्तिगत पत्र केवल उनके परिवार की संपत्ति हैं, या वे भारत की सामूहिक ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा हैं? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में साफ हो सकेगा।