क्या धरती पर एस्टेरॉयड का प्रकोप फिर से लौटेगा? नई खोज ने बढ़ाई चिंता
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और नासा ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से मंगल और बृहस्पति के बीच 138 नए एस्टेरॉयड खोजे हैं। इन छोटे क्षुद्रग्रहों का आकार 10 से 50 मीटर के बीच है, लेकिन इनकी शक्ति को हल्के में नहीं लिया जा सकता। 1908 की तुंगुस्का घटना और 2013 के चेल्याबिंस्क विस्फोट से यह साबित होता है।
अंतरिक्ष में हुई एक बड़ी खोज ने वैज्ञानिकों को भी चिंतित कर दिया है। दरअसल खगोलविदों ने मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच मौजूद बेल्ट में 138 नए क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉयड) खोजे हैं। यह खोज न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इन एस्टेरॉयड के धरती पर संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंता का विषय बनी हुई है।
इन क्षुद्रग्रहों की खोज में नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। खास बात यह है कि ये सभी एस्टेरॉयड छोटे आकार के हैं, लेकिन इनकी शक्ति को कम नहीं आंका जा सकता। जैसे की पहले भी रूस में 1908 और 2013 में हुई घटनाएं यह साबित कर चुकी हैं कि छोटे एस्टेरॉयड भी धरती के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं।
कैसे हुई यह महत्वपूर्ण खोज?
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के खगोलविदों ने टेलीस्कोप की नई तकनीक का उपयोग कर इन एस्टेरॉयड की खोज की। पहले, केवल बड़े आकार के क्षुद्रग्रहों का पता लगाना संभव था, लेकिन तकनीकी सुधार के बाद अब छोटे-छोटे क्षुद्रग्रहों का भी आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस खोज में "शिफ्ट एंड स्टैक" नामक तकनीक का उपयोग किया गया, जो धुंधली और कमजोर वस्तुओं को स्पष्ट रूप से पहचानने में मदद करती है।
लेकिन अब सवाल यह उठता है कि धरती पर इनसे कितना खतरा है, दरअसल विशेषज्ञों का कहना है कि इन नए क्षुद्रग्रहों का आकार 10 से 50 मीटर के बीच है। छोटे आकार के बावजूद, ये एस्टेरॉयड धरती के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। इसका अंदाजा रूस में 1908 और 2013 में हुई घटनाओं से लगाया जा सकता है।
1908 की तुंगुस्का घटना
30 जून 1908 को रूस के साइबेरिया में एक एस्टेरॉयड धरती के वायुमंडल में फट गया था। यह घटना तुंगुस्का नदी के पास हुई थी। इस विस्फोट में 185 हिरोशिमा बमों के बराबर ऊर्जा निकली थी। इससे 8 करोड़ पेड़ धराशायी हो गए थे और 2,150 वर्ग किलोमीटर का जंगल पूरी तरह खत्म हो गया था। घटना का प्रभाव इतना बड़ा था कि इसने पूरे क्षेत्र को समतल मैदान में बदल दिया।
2013 का चेल्याबिंस्क उल्का पिंड
रूस में ही 2013 में एक और घटना हुई, जब चेल्याबिंस्क नामक उल्का पिंड फट गया। यह 60 फीट चौड़ा एस्टेरॉयड था, जिसने 5 लाख टन TNT के बराबर ऊर्जा छोड़कर पूरी दुनिया को झकझोर दिया था। इसके कारण 1,600 से अधिक लोग घायल हुए थे और कई इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थीं।
रूस की इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि छोटे एस्टेरॉयड भी विनाशकारी हो सकते हैं। वर्तमान में खोजे गए एस्टेरॉयड आकार में लगभग उतने ही बड़े हैं जितने 2013 में चेल्याबिंस्क घटना के समय थे। यह समानता इन्हें धरती के लिए संभावित खतरे के रूप में पेश करती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन एस्टेरॉयड की गति और दिशा पर नजर रखना जरूरी है, क्योंकि किसी भी दिशा परिवर्तन से वे धरती की ओर बढ़ सकते हैं।
इस खोज के प्रमुख शोधकर्ता अर्टेम बर्डानोव ने कहा कि यह खोज खगोलीय पिंडों के अध्ययन के लिए एक नया अध्याय खोलती है। शिफ्ट एंड स्टैक तकनीक के माध्यम से कमजोर और धुंधले क्षुद्रग्रहों को ट्रैक करना अब आसान हो गया है। यह तकनीक अन्य खगोलीय पिंडों के हस्तक्षेप को हटा देती है, जिससे माप और विश्लेषण अधिक सटीक हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन क्षुद्रग्रहों के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि वे कैसे बने, उनका व्यवहार कैसा है, और वे धरती पर किस प्रकार का प्रभाव डाल सकते हैं। इस नई खोज के बाद, खगोलविदों का ध्यान इन एस्टेरॉयड की दिशा और गति पर है। नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां इन पर सतर्कता से नजर रख रही हैं। वैज्ञानिक यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि किसी भी संभावित खतरे का समय रहते समाधान निकाला जा सके। इसके अलावा, अंतरिक्ष मिशन के जरिए इन एस्टेरॉयड की संरचना और प्रभाव को और गहराई से समझने की योजना बनाई जा रही है।
138 नए एस्टेरॉयड की खोज न केवल खगोल विज्ञान के लिए एक बड़ी सफलता है, बल्कि यह धरती पर संभावित खतरों की चेतावनी भी देती है। रूस में हुई घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि छोटे एस्टेरॉयड भी बड़े पैमाने पर विनाशकारी हो सकते हैं। इसलिए, इन खगोलीय पिंडों की लगातार निगरानी और अध्ययन बेहद जरूरी है। वैज्ञानिकों की यह खोज हमें अंतरिक्ष के रहस्यों को समझने के साथ-साथ धरती को सुरक्षित रखने की दिशा में भी आगे बढ़ा रही है।