जानिए किन देशों ने EVM पर लगाया है बैन? क्या है इसे लेकर विवाद?
EVM यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, जो चुनावों को तेज और आसान बनाने के लिए डिज़ाइन की गई थी, आज कई देशों में विवादों का केंद्र बन चुकी है। भारत में EVM का इस्तेमाल जोर-शोर से हो रहा है, लेकिन जर्मनी, नीदरलैंड, और आयरलैंड जैसे देशों ने इसे सुरक्षा और पारदर्शिता के मुद्दों के चलते बैन कर दिया।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने दुनिया भर में चुनावों की प्रक्रिया को तेज और सुगम बनाने का वादा किया था। लेकिन इसके इस्तेमाल के बाद कई देशों ने इसे लेकर गंभीर सवाल खड़े किए और यहां तक कि कुछ ने इस पर बैन भी लगा दिया। भारत में EVM का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है और इसे चुनाव आयोग का एक अहम हिस्सा माना जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि दुनिया के कुछ देशों ने EVM को नकार दिया है? आखिर क्यों, और किन वजहों से उन्होंने इसे अलविदा कहा?
1977 में पहली बार भारत में EVM का परीक्षण किया गया, और 1982 में केरल के चुनावों में इसे सीमित तौर पर इस्तेमाल किया गया। इसे कागज़ के बैलेट सिस्टम की जगह लाने के लिए डिज़ाइन किया गया था, ताकि चुनावी प्रक्रिया तेज हो सके और मतगणना में पारदर्शिता आए। कम लागत, समय की बचत, और ह्यूमन एरर में कमी इसके मुख्य फायदों के तौर पर गिनाए गए।
लेकिन तकनीक जितनी उन्नत होती है, उतनी ही जटिल भी। जैसे-जैसे इसका उपयोग बढ़ा, वैसे-वैसे इस पर सवाल भी उठने लगे। भारत के अलावा, कई अन्य देशों ने भी EVM का इस्तेमाल किया, लेकिन उनका अनुभव एक समान नहीं रहा।
किन देशों ने EVM पर बैन लगाया और क्यों?
1. नीदरलैंड: नीदरलैंड ने 2007 में EVM पर बैन लगा दिया। यहां की सरकार ने पाया कि EVM की तकनीक हैकिंग और सुरक्षा खतरों के प्रति संवेदनशील थी। यह सवाल उठने लगे कि क्या इन मशीनों से चुनाव निष्पक्ष रह सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग से जुड़े डाटा को आसानी से बदला जा सकता है, और इस बात ने जनता और सरकार दोनों को चिंता में डाल दिया।
2. जर्मनी: जर्मनी ने 2009 में EVM पर रोक लगाई। जर्मनी की सर्वोच्च अदालत ने इसे असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट का मानना था कि EVM के जरिए चुनाव की पारदर्शिता प्रभावित होती है, क्योंकि आम नागरिक चुनावी प्रक्रिया को समझ नहीं पाता। वहां के मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि उसका वोट सही ढंग से गिना गया है, जो कि EVM में संभव नहीं था।
3. आयरलैंड: आयरलैंड ने EVM को अपनाने की कोशिश की, लेकिन 2006 में इसे पूरी तरह से नकार दिया। उन्होंने EVM मशीनों पर भारी खर्च किया, लेकिन फिर पाया कि इनसे जुड़े मुद्दे पारदर्शिता और सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मतदाता पेपर बैलेट सिस्टम को अधिक भरोसेमंद मानते थे।
4. अमेरिका (कुछ राज्यों में): अमेरिका के कुछ राज्यों ने EVM के इस्तेमाल को लेकर सख्त नियम बनाए हैं। यहां तक कि कई जगहों पर इन्हें पूरी तरह से हटा दिया गया। मुख्य चिंता यह थी कि इन मशीनों को हैक करना आसान था, और इससे चुनाव के नतीजे प्रभावित हो सकते थे।
EVM पर विवाद और आलोचना
EVM को लेकर सबसे बड़ा विवाद इसकी सुरक्षा पर है। आलोचकों का मानना है कि EVM हैकिंग के प्रति संवेदनशील हैं, और इनमें छेड़छाड़ की संभावना रहती है।
हैकिंग का डर: EVM मशीनें, भले ही इंटरनेट से कनेक्टेड न हों, लेकिन इनके हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर में छेड़छाड़ की संभावना बनी रहती है।
वोटर वेरिफाइबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT): यह तकनीक EVM की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाई गई, लेकिन इसके बावजूद, कई बार VVPAT पर्चियों के मिलान में गड़बड़ियां पाई गई हैं।
जनता का विश्वास: कई देशों में जनता को लगता है कि EVM पर उनका नियंत्रण नहीं है। जब वोट कागज़ पर होता है, तो इसे देखा और महसूस किया जा सकता है, लेकिन EVM में यह संभव नहीं।
भारत में EVM का उपयोग 2000 के दशक से व्यापक तौर पर हो रहा है। लेकिन यहां भी इसे लेकर विवाद कम नहीं हैं।
राजनीतिक दलों का विरोध: कई राजनीतिक दल EVM पर सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने इसे दोषपूर्ण बताते हुए बैलेट पेपर की वापसी की मांग की है।
चुनावी आयोग का पक्ष: भारतीय चुनाव आयोग बार-बार EVM की सुरक्षा और पारदर्शिता की बात करता है। उनका दावा है कि भारतीय EVM अन्य देशों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं।
भविष्य की तकनीक: चुनाव आयोग अब VVPAT और अन्य तकनीकों के जरिए EVM को और अधिक पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रहा है।
EVM ने चुनाव प्रक्रिया को सरल और तेज बना दिया है, लेकिन इसे पूरी तरह दोषरहित नहीं कहा जा सकता। नीदरलैंड, जर्मनी और आयरलैंड जैसे देशों का इसे नकारना बताता है कि तकनीकी खामियां लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकती हैं। भारत में EVM का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार और चुनाव आयोग इसे कितना सुरक्षित और पारदर्शी बना पाते हैं। लोकतंत्र में जनता का विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। चाहे वह EVM हो या बैलेट पेपर, चुनावी प्रक्रिया का हर हिस्सा ऐसा होना चाहिए जो जनता के भरोसे को बनाए रखे।