Captain Vikram Batra Birth Anniversary: शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा: भारतीय सेना का ‘शेरशाह’
कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से जाना जाता है, ने 1999 के कारगिल युद्ध में अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया।हिमाचल प्रदेश में जन्मे विक्रम ने बचपन से ही सेना में जाने का सपना देखा था और 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में शामिल हुए। कारगिल युद्ध के दौरान प्वाइंट 5140 और प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने के उनके मिशन ने उन्हें दुश्मनों के बीच ‘शेरशाह’ के नाम से प्रसिद्ध किया।
Captain Vikram Batra Birthday: भारतीय सेना में कुछ नाम ऐसे हैं जो साहस, बलिदान और देशभक्ति की एक अलग मिसाल बनकर रह गए हैं। ऐसे ही एक वीर सपूत थे शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें भारतीय सेना का ‘शेरशाह’ भी कहा जाता है। दरअसल कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी केवल एक सैनिक की नहीं, बल्कि एक नायक की रही जो देश के लिए जीता और मरा भी। साल 1999 के कारगिल युद्ध में अपने असाधारण साहस और नेतृत्व के कारण उन्होंने न केवल अपने साथियों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि दुश्मनों को भी पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। आइए जानते हैं क्या थी विक्रम बत्रा की प्रेरणादायक कहानी।
विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। उनके पिता जी. एल. बत्रा एक शिक्षक और मां कमलकांता बत्रा स्कूल में प्रिंसिपल थीं। बचपन से ही विक्रम का झुकाव सेना की ओर था। पढ़ाई में होशियार होने के साथ-साथ वे खेलों में भी बेहद रूचि रखते थे। उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की, हालांकि स्तानक की पढ़ाई के दौरान ही विक्रम मर्चेंट नेवी के लिए हॉन्गकॉन्ग की एक कंपनी में चयनित हुए थे। लेकिन उनका सपना सेना में भर्ती होने का था।
सेना में शामिल होने का उनका जुनून इतना गहरा था कि उन्होंने साल 1996 में CDS (Combined Defence Services) परीक्षा उत्तीर्ण कर भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून में प्रवेश लिया। ट्रेनिंग के दौरान ही उनके साहस और नेतृत्व की क्षमता को देखकर सभी प्रभावित हुए। 6 दिसम्बर 1997 में, वे भारतीय सेना की 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स (13 JAK Rifles) में लेफ़्टिनेंट के पद पर शामिल हुए।
कारगिल युद्ध और शेरशाह का उदय
1999 का कारगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था। विक्रम बत्रा की बटालियन को प्वाइंट 5140 और प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का जिम्मा सौंपा गया था। दुश्मन की कड़ी सुरक्षा और कठिन परिस्थितियों के बावजूद, विक्रम बत्रा ने ‘ये दिल मांगे मोर’ के नारे के साथ अपने साथियों का मनोबल बढ़ाया और प्वाइंट 5140 पर जीत हासिल की।
इसके बाद प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना एक कठिन चुनौती थी, जिसे ‘शेरशाह’ ने अपने नाम कर दिखाया। इस मिशन के दौरान, विक्रम बत्रा ने दुश्मनों को नजदीकी मुकाबले में हरा कर बंकरों को साफ किया। उनकी आक्रामक रणनीति और नेतृत्व ने दुश्मनों को हिलाकर रख दिया। इस अदम्य साहस के लिए उन्हें ‘शेरशाह’ का कोड नाम दिया गया था, जो उनके वीरता और निडरता को दर्शाता है।
विक्रम बत्रा की शहादत
कारगिल युद्ध के अंतिम चरण में प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना सबसे महत्वपूर्ण मिशन था। विक्रम बत्रा ने अपने साथी लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ मिलकर दुश्मनों पर जबरदस्त हमला किया। युद्ध के दौरान, जब एक साथी सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गया, तो विक्रम बत्रा उसे बचाने के लिए खुद आगे बढ़े और उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाने का प्रयास किया। इस दौरान वे दुश्मन की गोलियों का शिकार हो गए और मातृभूमि के लिए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस वक्त विक्रम बत्रा अपनी आखिरी सांसे गिन रहे थे तो उनके आखिरी शब्द थे जय माता दी। जिसने यह साबित कर दिया कि उनके लिए देश की सेवा सबसे बड़ा धर्म था।
कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी और बलिदान को देखते हुए, उन्हें मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, और साथ ही प्वाइंट4875 को 'बत्रा टॉप' नाम दिया गया। उनकी प्रेरक कहानी आज भी युवा पीढ़ी को देश सेवा के लिए प्रेरित करती है। उनकी वीरता के किस्से कारगिल के हर पत्थर और भारतीय सेना के हर जवान की जुबां पर होते हैं।