हर साल 73% पुरुष करते हैं आत्महत्या, जाने कौन है जिम्मेदार, समाज या मानसिक दबाव?
आधुनिक जीवनशैली, मानसिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच पुरुष आत्महत्या के आंकड़े एक गहरी चिंता का विषय बन गए हैं। हाल ही में बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने इस गंभीर समस्या पर देश का ध्यान खींचा। यह मामला सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि समाज में गहराई तक पैठी उस समस्या का प्रतीक है जिसे लंबे समय तक अनदेखा किया गया है, क्योंकि हर साल हजारों पुरुष ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हुए अपनी जान गंवा देते हैं।
आधुनिक समाज में पुरुषों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों ने चिंतन का एक नया मोर्चा खोल दिया है। यह समस्या न केवल व्यक्तिगत स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य का सवाल खड़ा करती है, बल्कि समाज में गहराई तक फैली उन जड़ों को भी उजागर करती है, जो पुरुषों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर करती हैं। हाल ही में बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने इस समस्या पर ध्यान आकर्षित किया।
बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित AI इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपने परिवार और ससुराल वालों से हो रही मानसिक प्रताड़ना के चलते आत्महत्या कर ली। उन्होंने अपने अंतिम पलों को रिकॉर्ड करते हुए एक डेढ़ घंटे लंबा वीडियो पोस्ट किया और 24 पन्नों का एक सुसाइड नोट लिखा। इस नोट में उन्होंने अपने साथ हुए अत्याचार और मानसिक पीड़ा का वर्णन किया। अतुल के इस कदम ने केवल उनके परिवार को नहीं, बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया। इस मामले में उनकी पत्नी और ससुराल वालों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है। परंतु, यह घटना केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि पुरुषों की मानसिक समस्याओं और सामाजिक अपेक्षाओं के गहरे संकट की ओर इशारा करती है।
सांख्यिकी के आईने में सुसाइड का सच
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से काफी अधिक है। हर साल लगभग 7 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जो ब्रेस्ट कैंसर, मलेरिया और एचआईवी जैसी जानलेवा बीमारियों से होने वाली मौतों से अधिक है। भारत में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या करने वाले हर 100 लोगों में 70 पुरुष होते हैं। साल 2021 में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 73% (1,18,989) पुरुष थे। इन आंकड़ों के मुताबिक हर पांच मिनट में एक पुरुष आत्महत्या करता है।
किस उम्र के पुरुष सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं?
आत्महत्या के मामलों में उम्र के आधार पर भी बड़े अंतर देखे गए हैं। 30-45 साल की आयु वर्ग में सबसे अधिक आत्महत्या के मामले दर्ज हुए। 52,054 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 78% पुरुष थे, जबकि 18-30 साल की उम्र के 56,543 आत्महत्याओं में से 67% पुरुष थे। बात अगर 45-60 आयु वर्ग की करें तो इस उम्र 30,163 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 81% पुरुष शामिल थे। आत्महत्या के मामलों में शादीशुदा पुरुषों की संख्या भी चौंकाने वाली है। 2021 में आत्महत्या करने वाले 1,09,749 शादीशुदा लोगों में 74% पुरुष थे। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि वैवाहिक जीवन में आने वाली चुनौतियां पुरुषों को मानसिक रूप से कितना प्रभावित कर सकती हैं।
पुरुषों के आत्महत्या करने का क्या है कारण?
मानसिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाएं: पुरुषों से यह उम्मीद की जाती है कि वे अपने परिवार की आर्थिक और भावनात्मक जिम्मेदारियों का पूरी तरह निर्वहन करें। समाज में पुरुषों की भावनाओं को अनदेखा करना: पुरुषों को अक्सर अपने दर्द और भावनाओं को छिपाने के लिए कहा जाता है। यह मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी और चिकित्सा सुविधाओं तक सीमित पहुंच भी बड़ी समस्याएं हैं। यह जरूरी है कि सरकार और समाज मिलकर इस गंभीर समस्या का समाधान खोजें। मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देना, हेल्पलाइन सेवाओं को मजबूत करना, और सामाजिक ढांचों में बदलाव लाना बेहद जरूरी है।
पुरुष आत्महत्या के आंकड़े केवल एक संख्या नहीं हैं, बल्कि उन हजारों कहानियों का दर्द हैं, जो कभी किसी ने सुनी ही नहीं। यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह इन आवाजों को सुने और बदलाव की दिशा में कदम उठाए। आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है, बल्कि यह उन अनगिनत समस्याओं की शुरुआत है, जो पीछे छूटने वाले परिवारों के लिए और भी बड़ा संघर्ष बन जाती हैं।