कोचिंग हब से सुसाइड हब तक क्या है कोटा की दर्दनाक सच्चाई?
राजस्थान का कोटा शहर कभी छात्रों के सपनों को पंख देने के लिए जाना जाता था। हर साल देशभर से लाखों छात्र यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं। यह शहर देश का सबसे बड़ा कोचिंग हब बन चुका है। लेकिन इन सपनों की चमक के पीछे एक गहरी और दर्दनाक सच्चाई छुपी है।
राजस्थान के कोटा शहर को देशभर में शिक्षा की राजधानी कहा जाता है। यहां हर साल लाखों छात्र अपने सपनों को साकार करने के लिए आते हैं। जेईई (JEE), नीट (NEET), और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए यह शहर सबसे बड़ा कोचिंग हब है। लेकिन कोटा का यह सुनहरा सपना अब एक कड़वा सच बनता जा रहा है।
छात्रों के आत्महत्या के बढ़ते मामले न केवल इस शहर की, बल्कि पूरे देश की चिंता का विषय बन गए हैं। बीते कुछ सालों में, कोटा में छात्रों के बीच आत्महत्या की घटनाओं में खतरनाक वृद्धि देखी गई है। जहां एक ओर कोटा का नाम छात्रों की सफलता से जुड़ा था, वहीं अब यह शहर छात्रों के जीवन के सबसे दुखद पहलुओं को उजागर कर रहा है।
एक दिन, दो आत्महत्याएं
दरअसल हाल ही में, 24 घंटे के भीतर कोटा में दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली। पहला मामला हरियाणा के 19 वर्षीय छात्र नीरज का था, जो राजीव गांधी नगर के आनंद कुंज रेजीडेंसी में रहकर जेईई की तैयारी कर रहा था। नीरज ने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर जान दे दी। दूसरी घटना मध्य प्रदेश के गुना निवासी 20 वर्षीय अभिषेक की थी, जो पिछले साल से कोटा में जेईई की तैयारी कर रहा था। अभिषेक ने अपने पीजी रूम में पंखे से लटककर आत्महत्या की। पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला, जिससे यह पता चल सके कि अभिषेक ने यह कदम क्यों उठाया।
क्या कहता है आंकड़ों का कड़वा सच?
साल 2024 की शुरुआत में अब तक कोटा में 17 छात्रों ने आत्महत्या की है। इससे पहले, 2023 में यह आंकड़ा और भी भयावह था, जब 26 छात्रों ने अपनी जान दे दी थी। यह तथ्य हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कोटा के छात्रों पर ऐसा क्या दबाव है, जो उन्हें आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने के लिए मजबूर करता है। कोटा में आत्महत्या के मामलों की मुख्य वजहें प्रतिस्पर्धा का दबाव, असफलता का डर, और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी हैं। ज्यादातर छात्र अपने परिवार से दूर रहते हैं, और उन्हें एक ऐसी जिंदगी का सामना करना पड़ता है, जहां केवल पढ़ाई ही सबकुछ है।
प्रतिस्पर्धा के इस माहौल में, छात्रों को लगता है कि अगर वे सफल नहीं हुए, तो उनकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं है। जब परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आते, तो वे अपने परिवार और समाज की उम्मीदों को पूरा करने में असफल महसूस करते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, 18 से 25 साल के छात्रों में डिप्रेशन और एंजायटी जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। कोचिंग संस्थानों में लगातार क्लासेस, मॉक टेस्ट, और कड़े रूटीन से छात्रों पर मानसिक दबाव बढ़ता है। इन समस्याओं पर न तो कोचिंग संस्थान ध्यान देते हैं और न ही छात्र खुद इसे गंभीरता से लेते हैं।
कहां चूक रहा है सिस्टम?
कोटा में छात्रों के लिए एक ऐसी व्यवस्था की कमी है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रख सके। कोचिंग संस्थान केवल शैक्षिक परिणामों पर ध्यान देते हैं, लेकिन छात्रों की भावनात्मक और मानसिक स्थिति की अनदेखी करते हैं। छात्रों के बीच आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए, सरकार और कोचिंग संस्थानों को कदम उठाने की जरूरत है।
वही इसके समाधान की बात करें तो कोचिंग संस्थानों में काउंसलिंग सेशंस को अनिवार्य करना चाहिए। साथ ही छात्रों को परिवार और दोस्तों का साथ मिलना चाहिए।वहीं कोचिंग का माहौल छात्रों को प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए, न कि केवल परीक्षा पास करने पर केंद्रित। साथ ही साथ छात्रों को अपनी समस्याएं खुलकर साझा करने का मौका देना चाहिए। कोटा कोचिंग के लिए एक शानदार जगह है, लेकिन यह शहर अब अपने छात्रों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ माहौल बनाने में असफल हो रहा है। जो शहर लाखों सपनों को जन्म देता था, वही अब कई परिवारों के लिए दुःख का कारण बन गया है।
इस समस्या का समाधान केवल सिस्टम में बदलाव से ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की भागीदारी से होगा। छात्रों की उम्मीदों का बोझ अगर कम किया जाए, तो यह शहर फिर से "सपनों का शहर" बन सकता है।