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2 करोड़ में नीलाम हुआ था हिटलर का ‘मौत का टेलीफोन',जानिए इसका डरावना इतिहास

यह टेलीफोन हिटलर के आदेशों का सजीव गवाह था, जिससे लाखों लोगों की मौत का रास्ता तय हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हिटलर ने इसी फोन का उपयोग कर खतरनाक आदेश दिए थे। इसे ‘मौत का फोन’ कहा जाता है।
2 करोड़ में नीलाम हुआ था हिटलर का ‘मौत का टेलीफोन',जानिए इसका डरावना इतिहास
इतिहास में कई ऐसी चीजें हैं, जो अपनी भयानक कहानियों और अतीत के गहरे निशानों को अपने साथ लेकर चलती हैं। इन्हीं में से एक है एडोल्फ हिटलर का टेलीफोन। यह टेलीफोन न सिर्फ द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे काले पन्नों का गवाह है, बल्कि लाखों मासूमों की मौत का मूक गवाह भी रहा है। 2017 में यह फोन नीलामी में 2 करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमत में बेचा गया। आखिर ऐसा क्या खास था इस फोन में, जो इसे इतना मूल्यवान और विवादित बनाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे छिपी कहानी।

हिटलर का टेलीफोन

यह फोन साधारण नहीं था। यह वही फोन था, जिसका इस्तेमाल नाजी जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने अपने आदेशों को देने और अपने अधिकारियों से संवाद करने के लिए किया था। "ब्लैक एंड रेड" कलर का यह फोन उस समय के खतरनाक फैसलों और योजनाओं का केंद्र था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसी फोन के जरिए हिटलर ने नरसंहार और युद्ध रणनीतियों के आदेश दिए थे।

यह फोन नाजी पार्टी का आधिकारिक उपकरण था, जिसे विशेष रूप से हिटलर के लिए बनाया गया था। इसमें हिटलर का नाम और स्वस्तिक का निशान भी उकेरा हुआ था। यह उस वक्त का एक प्रतीक बन गया था, जो हिटलर की शक्ति और निर्दयता को दर्शाता था।
दर्दनाक इतिहास का गवाह
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने लाखों यहूदियों, पोलिश नागरिकों और अन्य अल्पसंख्यकों को क्रूरता से मौत के घाट उतारा। इतिहासकार बताते हैं कि हिटलर के आदेश पर 60 लाख यहूदियों की हत्या हुई, जिसे 'होलोकॉस्ट' के नाम से जाना जाता है। इस फोन के जरिए हिटलर ने अपने सेनाओं और अधिकारियों को न केवल युद्ध की रणनीतियों के लिए निर्देश दिए, बल्कि मासूमों की हत्या के लिए भी आदेश दिए। यह फोन एक तरह से नाजी शासन की क्रूरता और अन्याय का प्रतीक बन गया। जब 1945 में बर्लिन पर सोवियत संघ ने कब्जा किया, तब यह फोन हिटलर के बंकर से मिला। इसे सोवियत सैनिकों ने कब्जे में ले लिया और बाद में इसे एक ब्रिटिश अधिकारी को सौंप दिया गया।

2017 में अमेरिका के मैरीलैंड में इस फोन को नीलामी में 2,43,000 डॉलर (लगभग 2 करोड़ रुपये) में बेचा गया। सवाल उठता है कि आखिर इस 'मौत के फोन' की इतनी बड़ी कीमत क्यों लगी?  तो आपको बता दूं कि यह फोन द्वितीय विश्व युद्ध और नाजी शासन के इतिहास का अहम हिस्सा है। यह उस समय की घटनाओं का एक दुर्लभ प्रमाण है, जब दुनिया ने सबसे भयावह युद्ध और नरसंहार का सामना किया। ऐतिहासिक वस्तुओं के कलेक्टर ऐसे आइटम्स में दिलचस्पी रखते हैं, जो किसी महत्वपूर्ण घटना या व्यक्ति से जुड़े हों। हिटलर का फोन नाजी इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्मृति चिन्ह है। दुनिया में ऐसी चीजें बहुत कम हैं, जो सीधे हिटलर या नाजी शासन से जुड़ी हुई हैं। यह फोन न केवल दुर्लभ है, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व इसे और भी कीमती बनाता है।

हिटलर का नाम आज भी विवादित और चर्चित है। यह फोन उस युग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे लोग कभी नहीं भूल सकते। इसकी नीलामी ने भी काफी चर्चा बटोरी, जिससे इसकी कीमत और बढ़ गई। हिटलर के फोन की नीलामी पर कई सवाल उठे। मानवाधिकार संगठनों और होलोकॉस्ट पीड़ितों के परिवारों ने इस पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि यह फोन उन लाखों मासूमों की मौत का प्रतीक है और इसे बेचकर पैसे कमाना अनैतिक है।

हिटलर का फोन एक ऐसा प्रतीक है, जो मानवता के सबसे काले दौर की याद दिलाता है। यह उन मासूमों की चीखों का गवाह है, जो नाजी शासन की निर्दयता के शिकार हुए। इतिहास के ये पन्ने हमें यह सिखाते हैं कि सत्ता का दुरुपयोग और निर्दयता किस तरह से पूरी दुनिया को बर्बाद कर सकती है। यह फोन भले ही एक ऐतिहासिक वस्तु के रूप में नीलाम हुआ हो, लेकिन इसके पीछे छिपी कहानियां हमें हमेशा मानवता और शांति के महत्व का एहसास कराती रहेंगी।

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