जज के खिलाफ संसद में महाभियोग कैसे लाया जाता है? जानें जज को हटाने की पूरी प्रक्रिया
किसी जज के खिलाफ महाभियोग भारतीय न्यायपालिका और लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 218 के तहत लागू होती है, जिसमें संसद में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित कर जज को हटाया जा सकता है। हाल ही में जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित बयान के बाद उनके खिलाफ महाभियोग की मांग उठी है।
भारत का लोकतंत्र और न्यायिक व्यवस्था दुनिया के सबसे मजबूत संस्थानों में से एक है। लेकिन जब किसी जज की निष्पक्षता या आचरण पर सवाल उठते हैं, तो एक बेहद संवेदनशील प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है जिसे महाभियोग कहते हैं। हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के विवादित बयानों के बाद उनके खिलाफ महाभियोग की मांग उठी है। इस लेख में हम जानेंगे कि किसी जज के खिलाफ महाभियोग कैसे लाया जाता है, इसकी प्रक्रिया क्या होती है, और आखिरकार कौन इस पर अंतिम फैसला सुनाता है।
महाभियोग है क्या?
महाभियोग एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के जज को उनके आचरण या अयोग्यता के आधार पर हटाने का प्रावधान है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 218 के तहत यह प्रक्रिया तय की गई है। इसके तहत जज को हटाने के दो आधार दिए गए हैं, पहला मिस बिहेवियर, जब जज अपने आचरण से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं। दूसरा इनकैपेसिटी, यानी जब जज मानसिक या शारीरिक रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने में अक्षम हो जाते हैं। महाभियोग लाने की प्रक्रिया काफी जटिल और चरणबद्ध है। यह प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में शुरू की जा सकती है।
1. प्रस्ताव का प्रारंभ
लोकसभा में: कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर से प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।
राज्यसभा में: कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है।
2. जांच समिति का गठन
प्रस्ताव पेश होने के बाद संबंधित सदन के अध्यक्ष (लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में सभापति) एक जांच समिति का गठन करते हैं। इस समिति में तीन सदस्य होते हैं:
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या उनका प्रतिनिधि।
किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश।
एक प्रतिष्ठित कानूनविद् जिसे स्पीकर या सभापति नामित करते हैं।
3. जांच समिति की प्रक्रिया
समिति संबंधित जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की गहन जांच करती है। जज को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाता है।
4. रिपोर्ट की सिफारिश
जांच पूरी होने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट संबंधित सदन को सौंपती है।
यदि रिपोर्ट में आरोप गलत पाए जाते हैं, तो महाभियोग प्रस्ताव वहीं खारिज हो जाता है।
अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो संसद में बहस के बाद प्रस्ताव पारित किया जाता है।
5. संसद में मतदान
दोनों सदनों में प्रस्ताव को पारित करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है:
सदन में मौजूद और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन।
कुल सदस्यों का कम से कम आधा समर्थन।
6. राष्ट्रपति की मंजूरी
यदि प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जज को उनके पद से हटा दिया जाता है।
भारत में अब तक महाभियोग की प्रक्रिया बहुत कम बार पूरी हुई है। 2011 में, कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन यह संसद में पास नहीं हो पाया। दरअसल महाभियोग लाना आसान नहीं है। यह प्रक्रिया जटिल और समय-साध्य है। इसमें कई बार राजनीतिक हस्तक्षेप और पक्षपात की आशंका रहती है। जस्टिस शेखर कुमार यादव के मामले ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। अल्पसंख्यकों पर की गई उनकी टिप्पणी से विवाद खड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को इस मामले में शिकायत की गई है, और विपक्षी दल उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं।
महाभियोग भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता बनी रहे। हालांकि, इस प्रक्रिया की जटिलता और राजनीतिक सहमति की आवश्यकता इसे बेहद दुर्लभ बनाती है। जस्टिस शेखर कुमार यादव का मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे जजों के आचरण पर निगरानी जरूरी है। यदि महाभियोग सफल होता है, तो यह न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक कदम होगा।