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कैसे बनी CAG रिपोर्ट, जिसने AAP सरकार की खोली पोल, जानिए दिल्ली की शराब नीति घोटाले का पूरा सच

दिल्ली विधानसभा के मौजूदा सत्र में CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की 14 रिपोर्ट पेश होने जा रही हैं, जिनमें सबसे चर्चित है शराब नीति घोटाले से जुड़ी रिपोर्ट। आरोप है कि इस नीति की वजह से सरकार को 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। लेकिन सवाल यह है कि CAG रिपोर्ट कैसे तैयार होती है? इसकी ताकत क्या होती है? और क्या सरकार इसे नकार सकती है?
कैसे बनी CAG रिपोर्ट, जिसने AAP सरकार की खोली पोल, जानिए दिल्ली की शराब नीति घोटाले का पूरा सच
नवगठित विधानसभा का सत्र जारी है, और इस बार जो रिपोर्ट पेश होने वाली है, वह दिल्ली की सियासत में बड़े बदलाव का संकेत दे रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने ऐलान किया है कि 27 फरवरी तक विधानसभा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की पेंडिंग सभी 14 रिपोर्ट पेश की जाएंगी। इनमें सबसे ज्यादा सुर्खियों में है दिल्ली सरकार की शराब नीति से जुड़े कथित घोटाले की रिपोर्ट, जिसमें अनुमानित 2000 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान की बात कही जा रही है। सवाल यह है कि आखिर CAG की रिपोर्ट इतनी ताकतवर कैसे होती है? यह कैसे तैयार होती है? और क्या सरकार के पास इसे नकारने का कोई विकल्प होता है? आइए, समझते हैं इस पूरी प्रक्रिया को और जानते हैं कि कैसे CAG की रिपोर्ट एक मुख्यमंत्री की कुर्सी तक हिला सकती है!

CAG की ताकत

CAG यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General), भारतीय संविधान के तहत गठित एक स्वायत्त संस्था है। इसका मुख्य काम सरकार के वित्तीय लेन-देन और नीतियों की निष्पक्ष जांच करना होता है। CAG को न तो सरकार हटा सकती है और न ही इसके काम में कोई हस्तक्षेप कर सकती है। इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और हटाने की प्रक्रिया उतनी ही कठिन होती है, जितनी कि सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को हटाने की। इसका मुख्य उद्देश्य है कि सरकार द्वारा किए गए खर्च और फैसले पारदर्शिता के दायरे में रहें। यही वजह है कि जब CAG की रिपोर्ट किसी घोटाले का खुलासा करती है, तो सरकारों में हड़कंप मच जाता है।
कैसे तैयार होती है CAG की रिपोर्ट?
CAG की रिपोर्ट किसी भी घोटाले या सरकारी नीति की गड़बड़ी का खुलासा करने से पहले एक लंबी प्रक्रिया से गुजरती है। इसमें दो प्रमुख ऑडिट तरीके अपनाए जाते हैं। पहला रेग्युलेरिटी ऑडिट (Regularity Audit) या कंप्लायंस ऑडिट, इसमें सरकारी दफ्तरों के वित्तीय रिकॉर्ड की गहरी जांच की जाती है। देखा जाता है कि क्या सभी लेन-देन तय नियमों और कानूनों के तहत किए गए हैं या नहीं। वही दूसहा है परफॉर्मेंस ऑडिट (Performance Audit), इसमें जांच होती है कि सरकारी योजनाओं और नीतियों को सही तरीके से लागू किया गया या नहीं? क्या कम लागत में बेहतर नतीजे मिले? अगर नहीं, तो किस स्तर पर गड़बड़ी हुई? CAG अपने निष्कर्षों को रिपोर्ट के रूप में तैयार करता है और इसे संसद या विधानसभा में पेश करता है। इसके बाद सार्वजनिक लेखा समिति (PAC) और पब्लिक अंडरटेकिंग्स समिति (PUC) इसकी जांच करती हैं। यदि रिपोर्ट में किसी बड़े घोटाले की पुष्टि होती है, तो मामला अदालत या जांच एजेंसियों तक पहुंच सकता है।
दिल्ली की शराब नीति घोटाला
2021 में, AAP सरकार ने नई शराब नीति लागू की, जिसका उद्देश्य राजस्व बढ़ाना और शराब व्यापार में पारदर्शिता लाना था। हालांकि, इस नीति के तहत लाइसेंस आवंटन और अन्य प्रक्रियाओं में अनियमितताओं के आरोप लगे। कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस नीति के कारण सरकार को 2026 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।  इस रिपोर्ट के बाद, भाजपा ने AAP पर तीखे हमले किए हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता जेपी नड्डा ने कहा, "कैग रिपोर्ट ने अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार की पोल खोल दी है।" अब सबकी नजर दिल्ली विधानसभा में पेश होने वाली CAG रिपोर्ट पर टिकी है। CAG की रिपोर्ट में क्या कुछ नया सामने आएगा, यह तो विधानसभा में पेश होने के बाद ही साफ होगा, लेकिन अगर इसमें बड़े घोटाले की पुष्टि होती है, तो इसका सीधा असर AAP की साख पर पड़ सकता है।
नई सरकार की चुनौतियाँ
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में नई भाजपा सरकार के सामने कई चुनौतियाँ हैं खाली खजाना। रेखा गुप्ता ने आरोप लगाया है कि पिछली AAP सरकार ने सरकारी खजाना खाली छोड़ दिया है, जिससे नई योजनाओं को लागू करने में कठिनाई हो रही है।  चुनावी वादों में शामिल इस योजना के तहत महिलाओं को प्रति माह 2500 रुपये देने का प्रावधान है। हालांकि, खाली खजाने के चलते इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। कैग रिपोर्ट के मद्देनजर, नई सरकार को पिछली शराब नीति की समीक्षा करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी अनियमितताएँ न हों।
कैग रिपोर्ट से हिली कई सरकारें 
CAG की रिपोर्ट ने इतिहास में कई बार सरकारों को मुश्किल में डाला है। आइए, ऐसे कुछ बड़े मामलों पर नजर डालते हैं
1. 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010) – सरकार की विदाई का कारण बना!
CAG की रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि 2G स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि दूरसंचार मंत्री ए राजा गिरफ्तार हुए और कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार को भारी राजनीतिक नुकसान हुआ।
2. गुजरात के CM केशुभाई पटेल की कुर्सी गई (2001)
CAG की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने दो बार अनावश्यक विदेश यात्राएं कीं और लाखों रुपये खर्च किए। रिपोर्ट के आने के बाद पार्टी ने दबाव बनाया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
3. रामविलास पासवान पर रिपोर्ट (1989)
जब वीपी सिंह सरकार में रामविलास पासवान मंत्री थे, तो उन्होंने अपने सरकारी आवास को सजाने के लिए निर्धारित सीमा से ज्यादा खर्च कर दिया। CAG रिपोर्ट में यह उजागर हुआ, जिससे सरकार की काफी किरकिरी हुई।
नई सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दे। कैग रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर उचित कार्रवाई करना और जनता के विश्वास को बहाल करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, वित्तीय प्रबंधन में सुधार और नई नीतियों के माध्यम से राजस्व बढ़ाने के प्रयास भी महत्वपूर्ण होंगे। दिल्ली की जनता अब नई सरकार से सकारात्मक बदलावों की उम्मीद कर रही है, जो न केवल भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन प्रदान करे, बल्कि विकास और समृद्धि की दिशा में ठोस कदम उठाए।
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