भारत के सबसे बड़े गद्दार, जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया
भारत का इतिहास में कुछ ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने अपने ही लोगों से गद्दारी कर देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का काम किया। अगर इन गद्दारों ने विदेशी आक्रांताओं का साथ न दिया होता, तो शायद भारत पर सैकड़ों साल तक मुगलों और अंग्रेजों का राज नहीं होता।

भारत का इतिहास वीरता, बलिदान और संघर्ष की कहानियों से भरा हुआ है, लेकिन इस इतिहास के कुछ पन्नों पर ऐसी कहानियां भी दर्ज हैं, जो विश्वासघात और गद्दारी की काली कहानियां बन गईं। अगर भारत पर विदेशी ताकतों का राज लंबे समय तक रहा, तो इसका एक बड़ा कारण देश के भीतर बैठे कुछ गद्दार भी थे। इन्हीं गद्दारों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए दुश्मनों को अपने ही देश की ज़मीन पर पैर जमाने का मौका दिया। इस लेख में हम भारत के इतिहास के पांच सबसे बड़े गद्दारों की कहानी बताएंगे, जिनकी वजह से भारत 331 साल तक मुगलों और 200 साल से अधिक अंग्रेजों का गुलाम बना रहा।
1. जयचंद
अगर भारत के इतिहास में सबसे बड़े गद्दार की बात की जाए, तो सबसे पहला नाम राजा जयचंद का आता है। जयचंद कन्नौज के गहड़वाल वंश का राजा था और वह दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान से घृणा करता था। जयचंद और पृथ्वीराज के बीच की दुश्मनी की दो मुख्य वजहें थीं। पहली दिल्ली का सिंहासन, जयचंद खुद को भारत का सबसे शक्तिशाली राजा मानता था और वह दिल्ली का राजा बनना चाहता था, लेकिन पृथ्वीराज चौहान की बढ़ती ताकत उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा थी। और दूसरी वजह थी अपनी बेटी संयोगिता, दरअसल पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद की बेटी संयोगिता को उसके स्वयंवर से भगा कर शादी कर ली थी, जिससे जयचंद का गुस्सा और बढ़ गया।
अपनी दुश्मनी और बदले की भावना में अंधे होकर जयचंद ने भारत की सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल कर दी। उसने गजनी के आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया और पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ उसकी मदद की। जयचंद की इस गद्दारी के कारण तराइन के दूसरे युद्ध (1192) में पृथ्वीराज चौहान पराजित हुए और भारत पर इस्लामी शासन की नींव पड़ गई। लेकिन जयचंद अपनी इस गद्दारी का फल भी भुगता। जब गौरी ने भारत पर कब्जा कर लिया, तो उसने जयचंद को भी नहीं बख्शा और उसकी हत्या कर दी।
2. मान सिंह
जब भारत में मुगलों का शासन स्थापित हो रहा था, तब महाराणा प्रताप जैसे योद्धा पूरी ताकत से मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन इसी समय राजा मान सिंह ने मुगलों का साथ देकर अपने ही देश को कमजोर करने का काम किया। मान सिंह, जो कि अकबर के सबसे करीबी सेनापतियों में से एक था, राजपूत होते हुए भी मुगलों की सेना में शामिल हुआ और उसने हल्दीघाटी के युद्ध (1576) में अकबर की तरफ से महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध लड़ा। अगर मान सिंह उस समय राजपूतों के पक्ष में खड़ा होता, तो शायद इतिहास कुछ और होता और मुगलों को भारत में अपनी जड़ें जमाने में इतनी आसानी नहीं होती।
3. मीर जाफर
अगर किसी एक गद्दार की वजह से अंग्रेजों को भारत पर कब्जा करने का पहला मौका मिला, तो वह मीर जाफर था। मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना का सेनापति था, लेकिन उसने अंग्रेजों के साथ मिलकर अपने ही राजा को धोखा दिया। प्लासी का युद्ध (1757) भारतीय इतिहास का वह काला अध्याय है, जिसने अंग्रेजों को भारत में अपना राज स्थापित करने का पहला बड़ा मौका दिया। इस युद्ध में मीर जाफर ने अंग्रेजों के साथ गुप्त संधि कर ली और नवाब सिराजुद्दौला की सेना को धोखा दे दिया। नतीजा यह हुआ कि सिराजुद्दौला हार गए और अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा कर लिया। अगर मीर जाफर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ता, तो शायद भारत में अंग्रेजी शासन इतनी जल्दी स्थापित नहीं हो पाता। लेकिन उसने चंद सोने के सिक्कों और सत्ता की लालच में अपने ही देश को बेच दिया।
4. राजा नरेंद्र सिंह
1857 की क्रांति भारत की स्वतंत्रता की पहली जंग थी, जिसमें हिंदू और मुस्लिम एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए थे। लेकिन इसी दौरान कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया और इस क्रांति को कुचलने में मदद की। पटियाला के महाराजा नरेंद्र सिंह उन्हीं गद्दारों में से एक थे। जब 1857 की क्रांति पूरे उत्तर भारत में फैल रही थी, तब उन्होंने सिखों को अंग्रेजों का समर्थन करने के लिए मजबूर किया। अगर सिख क्रांतिकारियों का साथ देते, तो शायद भारत को आजादी बहुत पहले ही मिल जाती। लेकिन उन्होंने अंग्रेजों से अपनी दोस्ती निभाई और इस क्रांति को दबाने में अंग्रेजों की मदद की, जिसका नतीजा यह हुआ कि 1857 की क्रांति असफल रही और भारत को अगले 90 साल तक अंग्रेजों की गुलामी सहनी पड़ी।
5. राजा अमर सिंह
अगर भारत के इतिहास में प्राचीन काल के गद्दारों की बात करें, तो राजा अमर सिंह का नाम सबसे पहले आता है। जब सिकंदर महान (Alexander the Great) भारत पर आक्रमण करने आया था, तब भारत में राजा पौरव (पोरस) ने उसकी सेना को रोकने के लिए युद्ध लड़ा। लेकिन राजा पौरव के दरबार में ही उसके खिलाफ एक गद्दार मौजूद था – राजा अमर सिंह, जिसने सिकंदर की सेना को भारतीय सेना की गुप्त जानकारियां दीं और अपनी ही सेना को कमजोर करने में मदद की। अगर अमर सिंह अपने राजा के साथ रहता, तो शायद सिकंदर भारत में कभी प्रवेश नहीं कर पाता। लेकिन उसने अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते पूरे देश से गद्दारी कर दी।
इतिहास गवाह है कि जो अपने देश से गद्दारी करता है, उसका अंजाम भी हमेशा बुरा ही होता है। जैसे जयचंद की हत्या कर दी गई। मीर जाफर को अंग्रेजों ने बेइज्जत करके सत्ता से हटा दिया। मान सिंह को राजपूतों ने कभी स्वीकार नहीं किया। नरेंद्र सिंह की पहचान इतिहास में एक गद्दार के रूप में रह गई। और अमर सिंह की गद्दारी ने भारत को सिकंदर के आक्रमण के सामने कमजोर बना दिया।
अगर इन लोगों ने अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचा होता, तो शायद भारत का इतिहास कुछ और होता। लेकिन इन्होंने अपने ही देश के खिलाफ जाकर उसे गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का काम किया। यही कारण है कि इतिहास में इन्हें वीर नहीं, बल्कि गद्दारों के रूप में याद किया जाता है।