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जानिए तलाक के बाद संपत्ति और गुजारा भत्ता को लेकर क्या कहता है हमारा कानून?

बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी के सुसाइड केस ने तलाक और गुजारा भत्ता (एलिमनी) के कानूनों पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। 24 पन्नों के सुसाइड नोट और डेढ़ घंटे के वीडियो में अतुल ने पत्नी निकिता और ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाए। इस केस ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता, संपत्ति में हिस्सेदारी और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर चर्चा को नया आयाम दिया है। जानिए, कोर्ट के 8 अहम फैक्टर्स जो एलिमनी की रकम तय करने में मदद करते हैं।
जानिए तलाक के बाद संपत्ति और गुजारा भत्ता को लेकर क्या कहता है हमारा कानून?
बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित AI इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी का हालिया आत्महत्या मामला न केवल भावनात्मक स्तर पर झकझोरता है, बल्कि समाज के कई गहरे सवाल भी उठाता है। अतुल ने अपनी जान लेने से पहले जो वीडियो और सुसाइड नोट छोड़ा, उसमें उन्होंने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर मानसिक उत्पीड़न और आर्थिक दबाव डालने के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कोर्ट सिस्टम पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि रिश्वत के बिना न्याय मिलना असंभव है। यह केस तलाक और गुजारा भत्ता के नियम-कायदों को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कारण बन गया है।

2019 में शादी के बंधन में बंधे अतुल और निकिता, शादी के एक साल बाद ही अलग हो गए। तलाक की प्रक्रिया के दौरान निकिता ने अपने नाबालिग बेटे के लिए हर महीने 2 लाख रुपये गुजारा भत्ता और 3 करोड़ रुपये के सेटलमेंट की मांग की। अतुल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि उनकी पत्नी ने उन पर कई झूठे केस लगाए और लगातार मानसिक उत्पीड़न किया। अतुल का आरोप था कि फैमिली कोर्ट की जज ने भी रिश्वत की मांग की।ऐेसे में यह सवाल भी उठाता है कि क्या हमारे कानूनी ढांचे में पारदर्शिता की कमी है?
गुजारा भत्ता पर क्या कहता है कानून?
गुजारा भत्ता (Alimony) किसी भी तलाकशुदा महिला, बच्चों और माता-पिता को उनके जीवनयापन के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता है। भारतीय कानून के तहत, पुरुष अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता को आर्थिक सहायता देने के लिए बाध्य हैं, अगर वे स्वयं अपना खर्च नहीं उठा सकते।

कानूनी प्रावधान
धारा 125, सीआरपीसी (CrPC) और अब BNSS की धारा 144 में गुजारा भत्ता का प्रावधान है।
पत्नी को तभी गुजारा भत्ता मिलेगा जब वह अपने पति से तलाक ले चुकी हो और दोबारा शादी न की हो।
पति से अलग रहने वाली पत्नी को तभी गुजारा भत्ता मिलेगा, जब वह वैध कारण से अलग हो।
किन स्थितियों में नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता?
यदि पत्नी किसी अन्य पुरुष के साथ रह रही है।
अगर पत्नी बिना कारण पति से अलग रहती है।
आपसी सहमति से अलग होने पर भी गुजारा भत्ता नहीं मिलता।
गुजारा भत्ता की राशि कैसे तय होती है?
गुजारा भत्ता की राशि मजिस्ट्रेट तय करते हैं। यह राशि पति की आय, पत्नी की आवश्यकताओं, बच्चों की जिम्मेदारी, और दोनों पक्षों की सामाजिक स्थिति के आधार पर तय की जाती है। तलाक के बाद पत्नी का पति की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। हालांकि, पति की निजी संपत्ति में वह दावा कर सकती है। दूसरी ओर, बच्चों को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 8 ऐसे फैक्टर्स बताए हैं, जिन्हें ध्यान में रखते हुए गुजारा भत्ता तय किया जाना चाहिए। जैसे पति-पत्नी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति। बच्चों की देखभाल और उनकी जरूरतें। पति की कमाई और पत्नी की रोजगार की स्थिति। पत्नी का मुकदमेबाजी पर खर्च। परिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ। 

अतुल सुभाष का मामला यह सवाल उठाता है कि क्या तलाक और गुजारा भत्ता के मामलों में पुरुषों की मानसिक स्थिति को नजरअंदाज किया जा रहा है? अतुल का कहना था कि उनका जीवन झूठे आरोपों और कानूनी खींचतान में उलझ गया था। अतुल सुभाष का यह केस एक कड़वी हकीकत को सामने लाता है कि तलाक और गुजारा भत्ता के मामलों में मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न किस कदर हावी हो सकता है। इस विषय पर समाज और न्याय प्रणाली को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है ताकि सभी पक्षों को समान और निष्पक्ष न्याय मिल सके।
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