अब यूपी में ऐसे चुने जाएंगे DGP, नहीं भेजना होगा UPSC को पैनल, जानें पहले क्या थे इसे लेकर नियम
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि अब डीजीपी के चयन के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) को पैनल भेजने की आवश्यकता नहीं होगी। नए नियम के तहत, एक विशेष कमेटी राज्य में डीजीपी का चयन करेगी, जिसमें हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, मुख्य सचिव, यूपीएससी का एक नामित सदस्य, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और एक रिटायर्ड डीजीपी जैसे अनुभवी सदस्य शामिल होंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस बल के सर्वोच्च पद, पुलिस महानिदेशक (DGP), के चयन में एक बड़ा बदलाव किया है। इस फैसले के तहत अब राज्य सरकार को डीजीपी के पद के लिए उम्मीदवारों का पैनल केंद्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) को नहीं भेजना पड़ेगा। इस नए प्रावधान के मुताबिक यूपी सरकार खुद ही डीजीपी का चयन कर सकेगी, जिससे राज्य की पुलिस प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधारों की उम्मीद है।
कैसे बदल गया नियम?
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की याचिका पर निर्णय देते हुए आदेश दिया था कि किसी भी राज्य में डीजीपी की नियुक्ति यूपीएससी द्वारा चुने गए पैनल के माध्यम से ही होनी चाहिए। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट ने इस आदेश को चुनौती देते हुए नया नियम पारित किया है, जिससे राज्य सरकार को अपनी पुलिस व्यवस्था के फैसले लेने की स्वायत्तता मिल गई है। राज्य सरकार का यह कदम उत्तर प्रदेश में पुलिस व्यवस्था के सुधार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह परिवर्तन प्रशासनिक प्रक्रिया को अधिक सुगम, तेज़ और राज्य केंद्रित बनाएगा। यूपी सरकार ने इस बदलाव के पीछे यह तर्क दिया है कि राज्य की कानून-व्यवस्था को बनाए रखने में अब राज्य की जिम्मेदारी बढ़ गई है और इस तरह के फैसले स्थानीय प्रशासन को और अधिक सशक्त बनाने में मदद करेंगे।
कैबिनेट बैठक में डीजीपी चयन प्रक्रिया के साथ-साथ अन्य कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए। राज्य में कानून-व्यवस्था और सुरक्षा के मुद्दों को और अधिक मज़बूत करने के लिए नई नीतियाँ बनाई जा रही हैं। राज्य की जनता के प्रति पारदर्शिता और जवाबदेही को और बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सुधारों को लागू किया जाएगा।
इस निर्णय के दूरगामी परिणामों में सबसे बड़ा लाभ यह है कि राज्य सरकार अब डीजीपी का चयन स्वयं कर सकती है। इससे यूपी की पुलिस व्यवस्था में अनुशासन और उत्तरदायित्व का स्तर भी बढ़ेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनुपालना करते हुए राज्य सरकार को चयन प्रक्रिया में संतुलन और पारदर्शिता बनाए रखनी होगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था के मुखिया के रूप में एक सक्षम और योग्य व्यक्ति का चयन हो, जो राज्य की सेवा में पूरी निष्ठा और मेहनत से लगे।
कैसे होगा अब डीजीपी का चयन?
नए प्रावधान के अनुसार, डीजीपी के चयन के लिए एक विशेष कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी की अध्यक्षता हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज करेंगे। इसके अन्य सदस्यों में यूपी के मुख्य सचिव, यूपीएससी का एक नामित सदस्य, यूपी लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनके द्वारा नामित सदस्य, अपर मुख्य सचिव (गृह) और एक रिटायर्ड डीजीपी शामिल होंगे।
अहर्ता: डीजीपी पद के उम्मीदवार के पास कम से कम 6 महीने का सेवा समय शेष होना चाहिए। चयनित डीजीपी का कार्यकाल 2 वर्षों का होगा।
सेवा विस्तार: यदि कार्यकाल के दौरान डीजीपी की सेवा अवधि कम हो जाती है तो उनके कार्यकाल को बढ़ाया भी जा सकता है, जिससे उनकी सेवा में किसी प्रकार की रुकावट नहीं आएगी।
अनुभवी नेतृत्व का चयन: इस चयन प्रणाली में विभिन्न अनुभवी लोगों को शामिल किया गया है जो एक योग्य और योग्य पुलिस अधिकारी के चयन में मदद करेंगे।
इस बदलाव के बाद, वर्तमान में यूपी के कार्यकारी डीजीपी प्रशांत कुमार के स्थाई नियुक्ति की संभावना बढ़ गई है। प्रशांत कुमार अपने सेवा में प्रभावशाली कार्य के लिए जाने जाते हैं और उनकी सेवा का कार्यकाल भी दो साल का हो सकता है।
क्या बदलने की जरूरत थी?
उत्तर प्रदेश, भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक होने के कारण, कई प्रशासनिक और कानून व्यवस्था की चुनौतियों का सामना करता है। इस स्थिति में राज्य सरकार ने महसूस किया कि डीजीपी का चयन यूपीएससी के माध्यम से करने में समय की बर्बादी होती है और राज्य सरकार के पास इस संबंध में स्वतंत्रता होनी चाहिए। इससे ना केवल चयन प्रक्रिया तेजी से पूरी होगी बल्कि राज्य की जरूरतों के अनुसार अधिकारी का चयन भी किया जा सकेगा।
योगी सरकार का यह फैसला राज्य के पुलिस तंत्र में सुधार की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। इस निर्णय के बाद राज्य सरकार की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है कि वह डीजीपी के पद पर ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करे जो न केवल योग्य हो बल्कि राज्य की कानून व्यवस्था को और अधिक मजबूत बना सके।