Raj Kapoor Biography: महंगी शराब पीने और जमीन पर सोने की दिलचस्प है कहानी
राज कपूर की 72 फ़िल्मों में से हर एक फ़िल्म नई कहानी, नए ट्रेंड और फ़िल्म मेकिंग से जुड़ी नई सीख बनकर सामने आती हैं. और आज की नई पीढ़ी राज कपूर की फ़िल्मों को देखकर ही फ़िल्म मेकिंग सीखती है. उनकी फ़िल्मों से प्रेरणा लेती है, हिंदी सिनेमा में राज कपूर एक ऐसी शख़्सियत गुजरे हैं, जिन्हें चलती-फिरती लाइब्रेरी कहा जाता था. उनका विजन बिल्कुल अलग था. वे अपनी हर फ़िल्म में एक नया एक्सपेरिमेंट करते थे. इसलिए राज कपूर को हिंदी सिनेमा का शो मैन कहा जाता है.
हिंदी सिनेमा के शो मैन कैसे बन गए राज कपूर? राज कपूर ने किससे ली थी प्रेरणा? महंगी कार होने के बाद भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से क्यों जाते थे स्कूल? यहाँ तक पहुँचने के लिए ज़िंदगी में उन्होंने कितना किया था संघर्ष? सब कुछ होने के बाद भी ज़मीन पर क्यों सोते थे राज कपूर? राज कपूर की ज़िंदगी से जुड़े ये कुछ सवाल हैं जिसे हर कोई जनना चाहता है. हिंदी सिनेमा को जिन्होंने जिया है, हिंदी सिनेमा को जिन्होंने सींचा है, हिंदी सिनेमा को जिन्होंने एक नई राह, एक नई पहचान दी है, जिन्हें हिंदी सिनेमा में प्रेरणा के तौर पर देखा जाता है. उन नामों में एक नाम शो मैन के नाम से मशहूर दिग्गज कलाकार राज कपूर साहब का है.
उनकी फ़िल्में आम इंसान की ज़िंदगी से जुड़ी हर पहलू को सामने रखती है. ‘बूट पॉलिश’, ‘श्री 420’, ‘जागते रहो’,’मेरा नाम जोकर’, ‘अनाड़ी’, ऐसी कई फ़िल्में राज कपूर साहब ने बनाई हैं. जिसे देखने देखने के बाद हर कोई उन किरदारों में ख़ुद को देखता है. खूद को महसूस करता है. और ऐसा लगता है मानो ये उन्हीं की ज़िंदगी को पर्दे पर उतारा गया है. राज कपूर की 72 फ़िल्मों में से हर एक फ़िल्म नई कहानी, नए ट्रेंड और फ़िल्म मेकिंग से जुड़ी नई सीख बनकर सामने आती हैं. और आज की नई पीढ़ी राज कपूर की फ़िल्मों को देखकर ही फ़िल्म मेकिंग सीखती है. उनकी फ़िल्मों से प्रेरणा लेती है, हिंदी सिनेमा में राज कपूर एक ऐसी शख़्सियत गुजरे हैं, जिन्हें चलती-फिरती लाइब्रेरी कहा जाता था. उनका विजन बिल्कुल अलग था. वे अपनी हर फ़िल्म में एक नया एक्सपेरिमेंट करते थे. इसलिए राज कपूर को हिंदी सिनेमा का शो मैन कहा जाता है.
राज कपूर सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों की धरती पर भी उतने ही प्रसिद्ध थे. राज कपूर के बारे में 50 के दशक की एक कहानी बहुत ही मशहूर है. जब नेहरू रूस गए थे तो सरकारी भोज के दौरान नेहरू के बाद वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिक के बोलने की बारी आई, तब उन्होंने अपने मंत्रियों के साथ 1951 में आई फ़िल्म ‘आवारा’ का एक गाना ‘आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं, आवारा हूं’ गाकर उन्हें हैरान कर दिया था.
राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ऐसे ही एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताती है कि साल 1993 में जब रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन भारत आए थे और उन्हें बताया गया कि वो उनसे मिलना चाहती हैं, तो न सिर्फ़ येल्तसिन इसके लिए तैयार हो गए, बल्कि उन्होंने एक नोट लिखकर भी उन्हें दिया, जिसमें लिखा था, “मैं आपके पिता से प्रेम करता था, वो हमारी यादों में आज भी मौजूद हैं” ऐसी अनगिनत कहानियां हैं जो राज कपूर की शख़्सियत को बयां करती हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि राज कपूर को राज कपूर बनाने वाला कौन था? ये कोई और नहीं बल्कि उनके पिता और हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार पृथ्वीराज कपूर थे.
आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने राज कपूर के कहने पर उन्हें एक रूपये प्रति माह की नौकरी दी थी और उनका काम था स्टूडियो में झाड़ू लगाना। राज कपूर जिस घराने से ताल्लुक़ रखते थे, वहां ऐश-ओ-आराम से ज़िंदगी जीना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें एक आम बच्चों की तरह ही सहुलियतें दी और पाला. राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा बताती है, "राज कपूर दूसरे बच्चों की तरह ट्राम से स्कूल जाते थे. एक दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी. राज ने अपनी माँ से पूछा कि क्या वो आज कार से स्कूल जा सकते हैं? उन्होंने कहा मैं तुम्हारे पिता से पूछ कर बताती हूँ. पृथ्वीराज कपूर ने जब ये सुना तो उन्होंने कहा इस बारिश में पानी के थपेड़े झेलते हुए स्कूल जाने में भी एक 'थ़्रिल' है. उसको इसका भी तज़ुर्बा लेने दो."
राज कपूर दरवाज़े के पीछे ये बातचीत सुन रहे थे. उन्होंने अपने पिता से खुद कहा, "सर, मैं ट्राम से ही स्कूल जाउंगा." आगे वो बताती हैं, "पृथ्वीराज कपूर ने जब बालकनी से राज को भीगते हुए स्कूल जाते देखा तो उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, एक दिन इस लड़के के पास उसके पिता से कहीं ज़्यादा फ़ैंसी कार होगी.'
ऐसे ही एक और वाक़या का ज़िक्र करते हुए वे बताती हैं: " एक बार जब पृथ्वीराज कपूर अपने घर से बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि राज कपूर खड़े हुए हैं. उन्होंने पूछा कि तुम अब तक स्टूडियो क्यों नहीं गए? वो अपनी कार में बैठे और तेज़ी से आगे निकल गए. दोनों को एक ही जगह जाना था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें अपनी कार में नहीं बैठाया और राज कपूर को वहाँ जाने के लिए बस लेनी पड़ी."
इन छोटी-छोटी घटनाओं से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर ने अपने बेटे की परवरिश कैसे की थी. बचपन के इन्हीं पालन-पोषन और संघर्षों ने उन्हें हिंदी सिनेमा का शो मैन बना दिया. और वे दूसरों के लिए मिसाल बन गए. बड़े होने के बाद भी राज कपूर एक साधारण सी ज़िंदगी जीते थे. राज कपूर की ज़िंदगी का एक और क़िस्सा बड़ा ही मशहूर है कि वो भले ही महंगी से महंगी शराब पी लें, लेकिन हमेशा ज़मीन पर ही सोते थे. उनकी बेटी ऋतु नंदा इसके बारे में बताती हैं, "राज कपूर जिस भी होटल में ठहरते थे, उसकी पलंग का गद्दा खींच कर ज़मीन पर बिछा लेते थे. इसकी वजह से वो कई बार मुसीबतों में फंसे. लंदन के मशहूर हिल्टन होटल में जब उन्होंने ये हरक़त की तो होटल के प्रबंधकों ने उन्हें चेताया कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. लेकिन जब उन्होंने दोबारा वही काम किया, तो उन्होंने उन पर जुर्माना लगा दिया. वो पाँच दिन उस होटल में रहे और उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी पलंग का गद्दा ज़मीन पर खींचने के लिए रोज़ जुर्माना दिया."
राज कपूर की ज़िंदगी से जुड़ी ऐसी कई कहानियां हैं. जो उनकी सरल और सादी ज़िंदगी को दर्शाती है. राज कपूर ने बचपन में जो संघर्ष किया, एक आम आदमी की तरह ज़िंदगी जी कर जो अनुभव प्राप्त किया, उन्हीं अनुभवों को उन्होंने पर्दे पर भी उतारा. और हिंदी सिनेमा जगत के शो मैन बन गए. साल 1988 में उन्हें बॉलीवुड में उनके योगदान के लिए ‘दादा साहेब फाल्के’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
जब पुरस्कार लेने के लिए वो ऑडिटोरियम में पहुँचे तो उन्हें दमे का ज़बरदस्त दौरा पड़ा. जब उनके नाम का ऐलान हुआ तो राज कपूर खड़े नहीं हो पा रहे थे. तब राष्ट्रपति वेंकटरमण सारे प्रोटोकॉल तोड़ते वो ख़ुद उनके पास आ गए और उन्हें सम्मानित किया. उसके बाद उन्हें वहाँ से सीधे एंबुलेंस से एम्स अस्पताल ले जाया गया. राज कपूर जब एम्स पहुँचे तो तबीयत में थोड़ी सुधार आई. लेकिन थोड़ी देर बाद ही उनकी तबीयत फिर से ख़राब होने लगी. ये सब देखकर डॉक्टरों ने आईसीयू में भर्ती कर दिया. उनका इलाज चलता रहा लेकिन फिर भी आराम नहीं हुआ. राज कपूर को लग गया था कि अब उनका आख़िरी समय आ गया है.
फिर उन्होंने कहा- ‘मुझे आराम नहीं आ रहा. लगता है कि अब मैं ठीक नहीं होऊँगा. लेट मी डाई’. ये उनके आख़िरी शब्द थे. उसके थोड़ी देर बाद ही वो कोमा में चले गए. पूरे एक महीने तक वो इसी हालत में रहे और आख़िरकार 2 जून 1988 को रात 9 बजे उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. तो ये थी हिंदी सिनेमा के शो मैन राज कपूर की कहानी. कैसे लगी आपको ये स्टोरी कमेंट करके ज़रूर बताएँ. और ऐसे ही बॉलीवुड की दिलचस्प कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूले.