Rajendra Kumar: ऐसा Actor जिसे लोगों ने Muslim समझा, भूत बंगले में रहे और बन गए Jubli Kumar
ये वो अभिनेता था जो अपने पिता की महंगी घड़ी महज़ 63 रूपये में बेच कर बंबई में अपनी क़िस्मत आज़माने चला आया था. जिसकी पैदाइश तो पाकिस्तान में हुई, लेकिन बँटवाने ने उसके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया था. उसका सबकुछ बिखर गया था, लेकिन फिर भी अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत इस अभिनेता ने बॉलिवुड में अपना मुक़ाम हासिल किया. और बाद में इसे बॉलिवुड का जुबली कुमार कहा जाने लगा. लेकिन एक ऐसा वक़्त भी आया जब इस बेमिसाल शख़्सियत की मौत गुमनामी में ही हो गई. इस अभिनेता का नाम है राजेंद्र कुमार. जी हाँ, इस वीडियो में हम आपको राजेंद्र कुमार की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताएँगे जो शायद ही आपको पता हो.
मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता । अगर तुफान नहीं आता किनारा मिल गया होता । बहारों फूल बरसाओं । मेरा महबूब आया है । हवाओं रागिनी गाओ मेरा महबूब आया है । ये गीत जब भी हमारे कानों में दस्तक देते हैं ।तो हमारी स्मृतियां 60 और 70 के दशक के भ्रमण पर निकल जाती हैं । बॉलिवुड में ये दौर ऐसा था जब एक सितारा आसमान की बुलंदियों को छू रहा था । हर तरफ़ उसकी अदाकारी के कसीदे पढ़े जा रहे थे । ये वो अभिनेता था जो अपने पिता की महंगी घड़ी महज़ 63 रूपये में बेच कर बंबई में अपनी क़िस्मत आज़माने चला आया था ।जिसकी पैदाइश तो पाकिस्तान में हुई । लेकिन बँटवाने ने उसके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया था। उसका सबकुछ बिखर गया था । लेकिन फिर भी अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत इस अभिनेता ने बॉलिवुड में अपना मुक़ाम हासिल किया । और बाद में इसे बॉलिवुड का जुबली कुमार कहा जाने लगा ।
लेकिन एक ऐसा वक़्त भी आया जब इस बेमिसाल शख़्सियत की मौत गुमनामी में ही हो गई । इस अभिनेता का नाम है राजेंद्र कुमार । जी हाँ । इस वीडियो में हम आपको राजेंद्र कुमार की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताएँगे जो शायद ही आपको पता हो । हम आपको बताएँगे कि पाकिस्तान में पैदा हुए राजेंद्र कुमार भारतीयों के दिलों पर कैसे राज करने लगे । उन्होंने अभिनेता बनने का कैसे सोचा? वे पाकिस्तान से दिल्ली और फिर बंबई कैसे पहुंचे? उन्हें किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? राजेंद्र कुमार की क़िस्मत कैसे बदली? उस्ताद बिस्मिल्ला खान जैसे फ़नकार उनके फ़ैन कैसे बन गए? लोग राजेंद्र कुमार को मुसलमान क्यों समझने लगे थे? उनकी ज़िंदगी में भूतिया बंगले की क्या कहानी है?
ये तमाम दिलचस्प और अनसुनी दास्तां हम आपको इसी वीडियो में बताएँगे । इसलिए इसे अंत तक ज़रूर देखिएगा ।सबसे पहले तो आपको बता दें कि
राजेंद्र कुमार का जन्म 20 जुलाई 1927 को सियालकोट के संखटरा गाँव में हुआ । ये वो दौर था जब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था । राजेंद्र कुमार एक ऐसे परिवार से थे जो आर्थिक रूप से काफ़ी समृद्ध था । एक छह मंज़िला मकान में 42 कमरे थे और उसी मकान में राजेंद्र कुमार का पूरा परिवार एक साथ रहा करता था ।
राजेंद्र कुमार को बचपन से ही फ़िल्मों का चस्का था । एक दिन वाक़या है जब राजेंद्र कुमार कराची के सिटी सिनेमा में फ़िल्म देखने गए थे । लौटने में रात हो गई थी और घर के सभी लोग सो गए थे । ये देखकर राजेंद्र कुमार चुपचाप दबे पांव अपने कमरे में जाने लगे थे । तभी पीछे से एक कड़कती आवाज़ आई । “आ गए”?
घबराएँ राजेंद्र कुमार ने पीछे पलटकर देखा तो सामने दादा जी खड़े थे । राजेंद्र कुमार अभी कुछ जवाब दे ही पाते कि दादा जी ने कहा कि फ़िल्म देखने का ऐसा चस्का लगा है । कि तुम पढ़ाई-लिखाई भी छोड़ दिए हो । राजेंद्र ये सब छोड़ दो वरना एक दिन फ़िल्म के एक्टर ही बनकर रह जाओगे. वैसे अगर आप जो बनना चाहते हैं । और आपको डाँट में भी वहीं सुनने को मिले तो वो डाँट । डाँट नहीं होती । राजेंद्र कुमार के लिए भी दादा जी की वो डांट । डांट नहीं थी । वे ऐसी डांट सुनकर मन ही मन बहुत खुश हुए थे । खैर । राजेंद्र कुमार सपना देखते थे कि बड़े होकर वो भी लाहौर जाएँगे और फ़िल्मों में काम करेंगे । लेकिन उनके इस सपने को देश के बँटवारे ने चकनाचूर कर दिया. क्योंकि बंटवारे के बाद राजेंद्र कुमार का पूरा परिवार दिल्ली आ गया । और यहाँ फिर से एक नए जीवन की शुरूआत करने में जुट गया । वहीं, बँटवारे के बाद बंबई भारत में फ़िल्म निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा ।
राजेंद्र कुमार का सपना एक बार फिर से उफान मारने लगा । वे किसी भी हाल में बंबई आना चाहते थे । लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे यहाँ आ सके ।कहते हैं न कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है । राजेंद्र कुमार ने भी कुछ ऐसा ही किया ।चुंकि, उनके पैसे नहीं थे ।तो उन्होंने अपने पिता द्वारा दी गई महंगी घड़ी को सिर्फ़ 63 रूपये में बेच दिया । वो घड़ी उनके पिता ने उन्हें बड़े ही प्यार से गिफ़्ट के तौर पर दिया था ।हालाँकि, वो बेचते समय राजेंद्र दुखी तो बहुत हुए थे । लेकिन क्या करते, बंबई जाने का वही एक मात्र उपाय था । खैर, घड़ी बेचकर राजेंद्र सपनों की नगरी बंबई तो चले गए ।लेकिन असल संघर्ष तो अब शुरू हुआ था । एक अनजान शहर में उन्हें कोई नहीं जानता था । राजेंद्र कुमार ने फिर डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के ऑफिसों में धक्के खाने शुरू किए । सुबह अपने कमरे से निकलते ।दिन भर ऑफिसों के चक्कर काटते और शाम को फिर अपने कमरे पर वापिस आते। ऐसा ही कई महीनों तक चलता ।
लेकिन कहते हैं न मंज़िल मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नही । राजेंद्र कुमार की ज़िंदगी में वो दिन भी आ ही गया जब उन्हें उस ज़माने के दिग्गज डायरेक्ट एचएस रवैल ने इन्हें अपना एडी यानी असिस्टेंट डायरेक्टर बना लिया । अगले पाँच सालों तक राजेंद्र उनके यहाँ असिस्टेंट डायरेक्टर की हैसियत से काम करते रहे। इस दौरान पतंगा, पॉकेटमार और सगाई जैसी फ़िल्मों के डायरेक्शन में इन्होंने असिस्टेंट के तौर पर काम किया । ऐसे ही काम करते हुए राजेंद्र की ज़िंदगी में एक ऐसा लम्हा भी आया जब उन्हें पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर काम करने का मौक़ा मिला ।
दरअसल, एचएस रवैल साहब उन दिनों एक फ़िल्म बना रहे थे । नाम था जोगन। रवैल साहब को मशहूर अदाकार दिलीप कुमार साहब के दोस्त के किरदार के लिए एक कलाकार की तलाश थी । हालाँकि, वो बहुत छोटा सा था । लेकिन रवैल साहब को कोई कलाकार मिल ही नहीं रहा था । तभी उनके दिमाग़ में राजेंद्र कुमार नाम आया । राजेंद्र कुमार दिखने में खूबसूरत भी थे । और वे उस रोल में भी फ़िट हो रहे थे । बस राजेंद्र कुमार को उस किरदार के लिए रवैल साहब ने लॉक कर दिया । और यही पहला मौक़ा था जब राजेंद्र कुमार को पहली बार सिल्वर स्क्रीन शेयर करने का मौक़ा मिला । यूँ तो राजेंद्र कुमार जोगन फ़िल्म में थोड़ी देर ही नज़र आए थे ।लेकिन प्रोड्यूसर राजेंद्र गोयल ने उन्हें इस छोटे से रोल में नोटिस कर लिया था । उसके बाद जब उन्होंने साल 1955 में फ़िल्म वचन बनाई तो उसमें राजेंद्र कुमार को एक बहुत ही शानदार रोल दिया । और इस तरह से राजेंद्र कुमार ने अपने करियर की शुरूआत एक फ़ुल टाइम अभिनेता के तौर पर कर दिया ।
वचन फ़िल्म के बाद राजेंद्र कुमार की क़िस्मत पूरी तरह पलट गई। फ़िल्म इंडस्ट्री को अब एक नया स्टार मिल चुका था । हर तरफ़ उनके अभिनय की चर्चा होने लगी थी । राजेंद्र कुमार ने मदर इंडिया, संगम । झुक गया आसमान । सूरज । गोरा और काला । ससुराल । साथी । गुंज उठी शहनाई । मेरा नाम जोकर । साजन की सहेली ।शतरंज । पतंग । दो जासूस ।ऐसी कई फ़िल्मों में काम किया। एक बार की बात है. राजेंद्र कुमार ने प्रख्यात शहनाई वादक रहे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को अपनी फ़िल्म गुंज उठी शहनाई के स्पेशल प्रीमियर में बुलाया था । प्रीमियर जैसे ही ख़त्म हुआ तो राजेंद्र साहब ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से पूछा, खां साहब । “मेरी परफ़ॉर्मेंस आपको कैसी लगी”? खां साहब ने जवाब दिया । “आपकी परफ़ॉर्मेंस? भई, हमें तो आप फ़िल्म में कहीं दिखे ही नहीं।” उस्ताद बिमस्मिल्लाह खां के मुँह से ये बात सुनकर राजेंद्र कुमार थोड़े दुखी हुए । लेकिन खां साहब ने आगे बोला ।
“अरे भई, हमें तो फ़िल्म के हीरों को देखकर ऐसा लगा जैसे हम अपने आप को देख रहे हैं” खां साहब के मुँह से ये तारीफ़ सुनकर राजेंद्र कुमार बहुत खुश हुए थे । इसी तरह उनकी ज़िंदगी में एक वक़्त ऐसा आया जब राजेंद्र साहब को लोग मुसलमान समझने लगे थे । दरअसल, फ़िल्म मेरे महबूब में राजेंद्र कुमार ने अनवर नाम के एक मुस्लिम नौजवान शायर का किरदार निभाया था । इस फ़िल्म में राजेंद्र साहब ने ऐसी जबदस्त एक्टिंग की थी । कि उनके बहुत सारे फैंस ये समझने लगे थे कि राजेंद्र कुमार वास्तव में मुस्लिम ही हैं । उस समय उनके पास जितनी भी चिट्ठियाँ आती थी । उसमें यही सवाल होता था कि आप अपना असली नाम बताएँ । खैर, ये उनके किरदार का कमाल था जो लोग उन्हें उनके किरदार की वजह से कन्फ्यूज हो गए थे ।
ठीक इसी तरह राजेंद्र की ज़िंदगी से जुड़ी दास्तान की बात हो और उनके भूतिया बंगले का ज़िक्र न हो तो ये अधूरा सा लगेगा । राजेंद्र कुमार अब तक फ़िल्म इंडस्ट्री में बहुत नाम और शोहरत कमा चुके थे । अब ज़रूरत थी तो उन्हें एक बंगले की । राजेंद्र साहब बंबई में एक बड़ा मकान ख़रीदना चाहते थे । तभी उन्हें कोई बताया कि कार्टर रोड पर एक बंगला मौजूद है जो बिकाऊ है । बस ये उस बंगले को देखने चले गए । और पहली नज़र में ही राजेंद्र साहब को वो बंगला पसंद आ गया. लेकिन जब वे बंगला ख़रीद रहे थे तो लोगों का कहना था कि वो भूतिया बंगला है । वहाँ से कई तरह की आवाज़ें आती है । लेकिन फिर भी राजेंद्र कुमार ने इन बातों को इग्नोर करते हुए वो बंगला ख़रीद लिया और पूरे परिवार के साथ वे वहाँ रहने लगे ।
ये भूतिया बंगाल उनके लिए इतना लकी साबित हुआ. कि राजेंद्र कुमार यहीं से जुबली कुमार बन गए। और अपनी ज़िंदगी में उन्होंने वे सारी उपलब्धियाँ हासिल की जो वे चाहते थे । लेकिन कहते हैं न अगर किसी का उरूज है तो ज्वाल भी आता है । राजेंद्र कुमार की ज़िंदगी में भी ऐसा वक़्त आया । सत्तर के दशक के शुरूआती सालों में राजेंद्र का करियर अपने ढलान की तरफ़ बढ़ने लगा । उनको चुनौती देने वाले एक और सुपरस्टार का जन्म हो चुका था. नाम था राजेश खन्ना । अब वक़्त बदल चुका था । राजेश खन्ना नौजवान दिलों की धड़कन बन चुके थे । और राजेंद्र कुमार भी वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए उन्होंने सपोर्टिंग रोल्स करना शुरू कर दिया था । धीरे-धीरे वक़्त ने ऐसा करवट मारा कि राजेंद्र की आर्थिक स्थिति ख़राब होने लगी । और उन्हें अपने बंगले तक को बेचना पड़ा । जी हाँ । वही बंगला जिसे राजेंद्र कुमार ने बड़े ही प्यार से ख़रीदा था । जहां से राजेंद्र कुमार, जुबली कुमार बने थे । और पता है? उस बंगले को ख़रीदा किसने था? उसे ख़रीदने वाले कोई और नहीं । बल्कि उस ज़माने के उभरते हुए सितारे राजेश खन्ना थे ।
राजेंद्र कुमार की ज़िंदगी के आख़िरी कुछ साल बहुत ही मुश्किलों में गुजरे थे । वे कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो गए । लेकिन अपनी शर्तों पर ज़िंदगी गुज़ारने वाले राजेंद्र साहब ने दवाई खाने से साफ़ इन्कार कर दिया । और आख़िरकार 12 जुलाई 1999 को 71 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट के चलते उनकी मौत हो गई । इस तरह से फ़िल्मी दुनिया का एक चमकता सितारा हमेशा-हमेशा लिए डूब गया । तो ये राजेंद्र कुमार की पूरी जीवनी थी । कैसी लगी आपको ये स्टोरी, कमेंट करके ज़रूर बताएँ ।