Congress के पंजा निशान के पीछे मुस्लिमों का कनेक्शन, असली कहानी का खुलासा। Narendra Modi
बता दें कि बड़ी पार्टियों के चुनाव चिह्न फिक्स होते हैं लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के पास मौजूद लिस्ट में से चुनाव चिह्न का चयन करना होता है | पहले आओ पहले पाओ की बिनाह पर चुनाव चिह्न अलॉट किए जाते हैं | बता दें कि एमएस सेठी को 1950 में ड्राफ्टमैन के रूप में नियुक्त किया गया था | उस वक्त पेंसिल से चुनाव निशान बनते थे| यही चुनाव निशान इस्तेमाल होते रहे | एमएस सेठी के द्वारा बनाई गई तस्वीरों का इस्तेमाल आज भी चुनाव में होता है | चुनावों में जानवरों की तस्वीरों वाले का भी खूब इस्तेमाल होता था | हालांकि 1991 में इसका विरोध किया गया और इसके बाद जानवरों और पक्षियों की तस्वीरों का इस्तेमाल बंद हो गया | हालांकि अब भी कुछ पार्टियों के पास ऐसे चुनाव निशान हैं, जैसे कि बीएसपी का निशान हाथी है, एमजीपी का शेर और नागा पीपुल्स फ्रंट का निशान मुर्गा है |
सबसे पहले देखते हैं कि बीजेपी को कैसे मिला कमल का निशान | उसके बाद कांग्रेस को हाथ का निशान मिलने की कहानी देखेंगे | बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है | इसकी नींव 1980 में पड़ी थी | वैसे तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में ही जनसंघ की नींव डाली | उससे पहले इसका चुनाव निशान दीपक हुआ करता था | आपातकाल खत्म होने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हो गया और इसका निशान हलधर किसान हो गया | 1980 में जब भाजपा बनी तो इसके पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे | इसके बाद हिंदू परंपरा से जोड़कर इस पार्टी का चुनाव निशान कमल चुना गया | भाजपा ने इसलिए भी कमल को चुना क्योंकि इसका इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन में भी अंग्रेजों के खिलाफ किया गया था |
इसी तरह कांग्रेस को पंजा निशान मिलने के पीछे भी एक कहानी है | पहले कांग्रेस का चुनावी निशान दो बैलों की जोड़ी हुआ करता था | हालांकि जब कांग्रेस में फूट पड़ी तो जगजीवन राम वाली कांग्रेस(R) को असली कांग्रेस माना गया | वहीं निजलिंगप्पा कि अध्यक्षता वाली कांग्रेस (O) को दो बैलों की जोड़ी निशान नहीं दिया गया | झगड़ा बहुत बढ़ गया | इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगा दी और कहा कि दोनों ही गुट अब पुराने निशान का इस्तेमाल नहीं करेंगे | दरअसल किसी भी पार्टी में टूट की स्थिति में चुनाव आयोग अक्सर पार्टी के चुनाव चिन्ह को जब्त कर लेता है और दावेदारों को नए चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाते है | इसके बाद 1971 में कांग्रेस (O) को चरखा और कांग्रेस (R) को बछड़ा और गाय चुनाव निशान दे दिया गया |
इमरजेंसी के बाद, 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के हाथों कांग्रेस की हार हुई थी | सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस के जो 153 सांसद जीते उनमें 76 सांसदों ने इंदिरा का साथ छोड़ दिया | तब 1978 में इंदिरा गांधी ने अपने गुट को कांग्रेस (आई) नाम दिया और अपनी अलग पार्टी बना ली |
बाद में कांग्रेस (R) फिर टूट गई | अब इंदिरा गांधी की कांग्रेस (I) को 'हाथ के पंजे' का निशान दिया या इंदिरा गांधी गाय और बछड़ा वाला ही निशान चाहती थीं लेकिन चुनाव आयोग ने उनके सिंबल को फ्रीज कर दिया था | इसलिए उनकी मांग को खारिज कर दिया था | बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा | इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग के ही फैसले को बरकरार रखा |
नए चुनाव चिन्ह के लिए कांग्रेस (आई) के महासचिव बूटा सिंह ने चुनाव आयोग में अर्जी दी | उन्हें चुनाव निशान के तौर पर हाथी, साइकिल और हाथ के पंजे में से किसी एक को चुनने का विकल्प मिला |
जाहिर है ये फैसला बूटा सिंह नहीं कर सकते थे लिहाजा उन्होंने दिल्ली से दूर विजयवाड़ा में मौजूदा इंदिरा गांधी को फोन लगाया | इंदिरा गांधी के साथ उस वक्त पीवी नरसिम्हा राव भी थे | फोन पर बूटा सिंह जब इंदिरा गांधी को तीसरे विकल्प ‘हाथ’ के बारे में बता रहे थे तो उन्हें हाथ की जगह हाथी सुनाई दिया | वो इसके लिए लगातार इनकार करती रहीं और फिर उन्होंने फोन का रिसीवर नरसिम्हा राव को दे दिया | इस तरह पार्टियां टूटने के बाद निशान बदलते गए और 1978 से अब तक कांग्रेस का चुनावी निशान हाथ का पंजा ही है |