Vijay Diwas 2024: जब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के आगे कर दिया था आत्मसमर्पण, मान ली थी हार
पाकिस्तान से भागकर आए शरणार्थियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि भारत पर भारी सामाजिक और आर्थिक दबाव पड़ने लगा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस समस्या को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया, लेकिन जब पाकिस्तान की आक्रामकता कम नहीं हुई, तो भारत ने सैन्य हस्तक्षेप का फैसला किया। 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भारत के हवाई अड्डों पर हमला कर दिया। इसके जवाब में भारतीय सेना ने युद्ध का ऐलान कर दिया। इस युद्ध में तीनों सेनाओं—थल सेना, वायु सेना और नौसेना ने अद्वितीय समन्वय का प्रदर्शन किया।
Vijay Diwas 2024: 16 दिसंबर, 1971—यह तारीख भारत के इतिहास में विजय दिवस के रूप में दर्ज है। यह वह दिन है जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 13 दिनों तक चले युद्ध में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की और विश्व मानचित्र पर एक नए देश, बांग्लादेश का उदय हुआ। विजय दिवस न केवल भारतीय सेना की वीरता का प्रतीक है, बल्कि यह उस संघर्ष और त्याग का प्रतीक है जिसने लाखों बांग्लादेशी नागरिकों को उनके अधिकार दिलाए।
1971 का भारत-पाक युद्ध केवल दो देशों के बीच सैन्य संघर्ष नहीं था; यह एक संघर्ष था स्वतंत्रता, न्याय और मानवाधिकारों के लिए। उस समय पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था—पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान)। पूर्वी पाकिस्तान के लोग, जिनमें बंगाली संस्कृति और भाषा का बोलबाला था, पश्चिमी पाकिस्तान के शासन से त्रस्त थे। मार्च 1971 में, पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान और प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की जीत को नकारते हुए सत्ता पर कब्जा बनाए रखा। इस घटना ने पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया। 25 मार्च, 1971 को ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत पाकिस्तान की सेना ने ढाका में बर्बर कार्रवाई शुरू की। लाखों निर्दोष लोग मारे गए, महिलाओं पर अत्याचार हुआ और लाखों लोगों ने भारत की ओर शरण ली।
भारत की भूमिका, युद्ध की शुरुआत
पाकिस्तान से भागकर आए शरणार्थियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि भारत पर भारी सामाजिक और आर्थिक दबाव पड़ने लगा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस समस्या को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया, लेकिन जब पाकिस्तान की आक्रामकता कम नहीं हुई, तो भारत ने सैन्य हस्तक्षेप का फैसला किया। 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भारत के हवाई अड्डों पर हमला कर दिया। इसके जवाब में भारतीय सेना ने युद्ध का ऐलान कर दिया। इस युद्ध में तीनों सेनाओं—थल सेना, वायु सेना और नौसेना ने अद्वितीय समन्वय का प्रदर्शन किया।
भारतीय सेना की रणनीति और सफलता
भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में एक सुनियोजित रणनीति के तहत हमला किया। कमांडर-इन-चीफ जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारतीय सेना ने बांग्लादेश को पाकिस्तानी सेना के चंगुल से मुक्त करने के लिए तेज़ गति से अभियान चलाया। भारतीय वायु सेना ने दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले किए, जबकि भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर हमला करके पाकिस्तान की समुद्री आपूर्ति को बाधित कर दिया।
13 दिनों के भीतर, भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने लगभग 93,000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह विश्व इतिहास में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था। इस ऐतिहासिक घटना के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
विजय दिवस का महत्व
विजय दिवस न केवल भारतीय सेना की शक्ति और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर भी है जो हमें यह याद दिलाता है कि न्याय और स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाते। हर साल 16 दिसंबर को पूरे भारत में इस दिन को बड़े सम्मान और गर्व के साथ मनाया जाता है। 2024 में विजय दिवस केवल 1971 के युद्ध की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह भी बताता है कि भारत शांति और न्याय के लिए हमेशा खड़ा रहेगा। यह दिन हमारे सैनिकों के बलिदान और हमारी राष्ट्रीय एकता का उत्सव है।
1971 का भारत-पाक युद्ध केवल एक सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि यह मानवता और स्वतंत्रता की जीत थी। बांग्लादेश का उदय न केवल भारतीय सेना की ताकत का प्रमाण है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब कोई राष्ट्र अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है, तो इतिहास बदल सकता है। विजय दिवस हमें यह सिखाता है कि न्याय और साहस के साथ हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।